नई दिल्ली। महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड के किसान कह रहे हैं कि नए कानूनों से उन्हें फायदा मिला और वो फायदा उठा रहे हैं, इससे ये बात तो साफ हो गई कि कम से कम देश के सभी किसान ना तो नए कानूनों से नाराज हैं और ना नए कृषि कानूनों को किसानों के खिलाफ बता रहे हैं। अब सवाल ये है कि आखिर फिर दिल्ली के बॉर्डर पर किसान धरने पर क्यों बैठे हैं, उन्हें क्या दिक्कत है, उन्हें नए कृषि कानूनों के किन प्रोविजन्स पर एतराज है। इस सवाल पर किसानों के गिने-चुने नेता तो बोल रहे हैं, लेकिन जब ये सवाल सड़क पर ठंड में बैठे किसानों से पूछा गया तो भोले-भाले किसानों ने जो जबाव दिए वो सुनकर आप हैरान रह जाएंगे।
राशन-पानी की कमी नहीं है...
पंजाब के गांवों से ट्रैक्टर की ट्राली में बैठकर पांच-पांच सौ किलोमीटर की दूरी तय करके दिल्ली पहुंचे किसानों से जब पूछा गया कि भाई क्या दिक्कत है, कानून में क्या कमी है तो ज्यादातर किसान भाइयों ने कहा कि काला कानून है, जब तक सरकार वापस नहीं लेगी तब बैठे रहेंगे, राशन-पानी की कमी नहीं है। फिर पूछा कि कानून से क्या दिक्कत है, कानून काला क्यों है तो कुछ किसान चुप हो जाते हैं। कुछ कहते हैं कि इतने पढ़े लिखे नहीं हैं। बस इतना पता है सरकार ने काला कानून बनाया है, उसे वापस कराने आए हैं।
ये तो साफ है कि इन भोले-भाले लोगों को दिल्ली लाया गया है, लेकिन क्यों लाया गया है जो आंदोलन हो रहा है, उससे उनका क्या लेना-देना है ये सब नहीं बताया गया। बस ये भरोसा दिया गया कि खाने-पीने की दिक्कत नहीं होगी और ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है। जरा सोचिए सीधे-साधे किसान नहीं जानते कि नया कृषि कानून क्या है, न उन्होंने कानून पढ़ा है और न ही किसी ने उन्हें समझाने की कोशिश की है और इन कानूनों को काला कानून बताकर जो लोग नेतागिरी कर रहे हैं वो न तो किसान की भावना को जानते हैं और न किसान को फायदा पहुंचाना चाहते हैं, वो तो किसानों की परेशानी का फायदा उठाना चाहते हैं। वो तो कह रहे हैं कि अवॉर्ड वापसी होगी, रास्ता जाम होगा, मोदी-अंबानी-अडानी के पुतले जलेंगे।
पंजाब में 2 साल बाद होने हैं चुनाव
इन सारी बातों का किसानों से क्या मतलब है, लेकिन नेतागिरी करने पहुंचे चंद्रशेखर और पप्पू यादव जैसे नेता अपनी दुकान चलाएंगे। हमेशा आंदोलन के लिए खड़ी रहने वाली मेधा पाटेकर और योगेन्द्र यादव फिर से लाइमलाइट में आ जाएंगे। ज्यादातर किसान पंजाब से हैं और पंजाब में 2 साल बाद चुनाव होने हैं तो कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी पूरी तरह एक्टिव हैं। वामपंथी नेताओं ने अपने ट्रेड यूनियन वालों को किसान के बीच खड़ा कर दिया है। लेफ्टिस्ट छात्र नेता भी वहां डपली बजाने और नारे लगाने पहुंच गए हैं, लेकिन इन सब बातों को स्वीकार भी किया जा सकता है और बर्दाश्त भी किया जा सकता है क्योंकि ये अपने लोग हैं। लेकिन जब इस आंदोलन का फायदा विदेशी ताकतें उठाने लगे तो चिंता होती है।
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