राजनाथ सिंह ने बिना नाम लिए चीन को लताड़ा, सीमा पर खड़े जवानों के शौर्य को जमकर सराहा
राजनाथ सिंह ने कहा कि जो देश अपनी संप्रभुता की रक्षा कर पाने में समर्थ नहीं होते हैं, उनकी हालत हमारे पड़ोसी देश जैसी हो जाती है।
नई दिल्ली। रक्षा मंत्रालय के केंद्रीय सैनिक बोर्ड द्वारा आयोजित CSR कॉन्क्लेव में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि जो देश अपनी संप्रभुता की रक्षा कर पाने में समर्थ नहीं होते उनकी हालत हमारे पड़ोसी देश जैसी है। जो न खुद अपनी सड़क बना सकते हैं न उस पर चल सकते हैं न खुद व्यापार कर सकते हैं न ही किसी को व्यापार करने से रोक सकते हैं। राजनाथ सिंह ने कहा कि जैसा कि आप सभी को मालूम है, आज का यह कार्यक्रम हमारे उन वीरों को समर्पित है, जिनके त्याग और बलिदान की वजह से हम, और हमारा देश खुद को हर तरफ से महफूज समझता है। चाहे भारत की अखंडता, और संप्रभुता की रक्षा के लिए लड़े गए बहुआयामी युद्धों में जीत हासिल करना हो, या फिर सीमा पार से हो रही आतंकी गतिविधियों का मुकाबला करना हो, हमारी सशस्त्र सेनाओं ने बड़ी मुस्तैदी से चुनौतियों का मुंहतोड़ जवाब दिया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कोविड काल में तो हमारे इन पूर्व सैनिकों की समस्याएं और भी प्रकार से बढ़ी हैं। इसके बावजूद, आपको यह जानकर आश्चर्य, और सुखद अनुभूति होगी, कि इस महामारी में भी हमारे पूर्व-सैनिक पीछे नहीं रहे। जिस समय कोविड अपने पांव पसार रहा था, और हम असहाय होकर अपने घरों में बैठ गए थे, उस समय भी हमारे वीर जवान निडर होकर पूरे जोश और बहादुरी से सीमाओं की सुरक्षा में लगे हुए थे। उन्होंने न केवल मुस्तैदी से सीमा की सुरक्षा की, बल्कि जरूरत पड़ने पर अपना सर्वोच्च बलिदान भी दिया।
भारत में समर्थ लोगों के सहयोग की बड़ी पुरानी परंपरा मिलती है
राजनाथ सिंह ने कहा कि जो देश अपनी संप्रभुता की रक्षा कर पाने में समर्थ नहीं होते हैं, उनकी हालत हमारे पड़ोसी देश जैसी हो जाती है। जो न खुद से अपनी ‘सड़क’ बना सकते हैं, न उस पर चल सकते हैं, न खुद व्यापार कर सकते हैं, और न ही किसी दूसरे को व्यापार करने से रोक सकते हैं। हमारे यहाँ देश और समाज के प्रति हर क्षेत्र में, समर्थ लोगों के सहयोग की बड़ी पुरानी परंपरा मिलती है। प्राचीन काल में 'दधीचि' या 'कर्ण' जैसी महान विभूतियाँ हों, या मध्यकाल में ‘भामाशाह’ या ‘रहीम’ सभी समाज और राष्ट्र की सेवा में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। रहीम के बारे में तो कहा जाता है कि जब वह दान दिया करते थे, तो हमेशा शीश नीचे झुका करके। उनसे एक बार पूछा गया, कि आप दान देते समय नज़रें नीची क्यों रखते हैं? क्या सुंदर उत्तर उन्होंने दिया, कि देनहार कोउ और है , भेजत है दिन रैन। लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥
‘फ्लैग डे' Fund में कई गुना की बढ़ोतरी हुई
रक्षा मंत्री ने कहा कि कुछ सालों से, ‘फ्लैग डे' Fund में कई गुना की बढ़ोतरी हुई है। आप लोगों का यह सहयोग, आपको उन स्वतंत्रता सेनानी उद्योगपतियों की कतार में लाकर खड़ा कर देता है, जिन्हें आज हम स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सेवा, समर्पण, और सहयोग के कारण याद करते हैं। सन 1962 के युद्ध में राष्ट्र के आह्वान पर इस देश की जनता ने ‘गर्म ऊन से लेकर गर्म खून’ तक का खुशी-खुशी दान कर दिया था। रूपए-पैसे, गहने की तो कोई गिनती नहीं थी। यह है राष्ट्र के प्रति हमारी भावना। राजनाथ सिंह ने आगे कहा कि एक और उदाहरण देने से मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। राजस्थान के बर्धना खुर्द गांव के लोगों ने, आपस में मिलकर यह निश्चय किया कि हम-हर परिवार से एक-एक बेटे को सीमा पर भेजेंगे। सीमा पर जाने का परिणाम क्या हो सकता था, यह उन्हें अच्छी तरह मालूम था। अपने राष्ट्र की सुरक्षा के प्रति हमारा उत्तरदायित्व, जिसे निभाने के लिए हमें 'बड़े', और 'खुले' मन से आगे आना चाहिए। यह हमारा 'नैतिक' और 'राष्ट्रीय' दायित्व है।
'सीएसआर कॉन्क्लेव' में सम्मिलित हुए लोगों का किया धन्यवाद
रक्षा मंत्री ने कहा कि हमें यश, प्रतिष्ठा और सम्मान से ऊपर उठकर अपने देश, अपने समाज, अपने लोगों की सेवा के लिए काम करना है। आप लोगों को ज्ञात होगा, कि 'आर्म्ड फोर्सेज फ्लैग डे' में आप द्वारा दिया गया योगदान आयकर से बिल्कुल मुक्त है। मैं आप सभी का आभार व्यक्त करना चाहूंगा, कि आप अपना बहुमूल्य वक्त निकालकर 'सीएसआर कॉन्क्लेव' में सम्मिलित हुए। मैं उन सभी संस्थाओं को धन्यवाद देना चाहूंगा, जिन्होंने पिछले वर्ष अपना कीमती योगदान इस निधि में दिया, और इस वर्ष वेबिनार में उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों से अपील करूंगा, कि वह इस महान पर्व के सदैव सहभागी बने।