BLOG : अगर एक-दूसरे को हम लोग बात-बात पर मारने लगे तो बचेगा कौन??
अधिकतर को यहीं नहीं पता था की वे आंदोलन कर क्यों रहे है? और एससी-एसटी एक्ट किस बला का नाम है?... कुछ लोगों ने राजनैतिक स्वार्थ के लिए अफ़वाह फैलाई कि आरक्षण ख़त्म कर रही है सरकार
एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में “भारत बंद” के नाम पर देश के लगभग 7 राज्यों में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिला..हिंसा उन राज्यों में सबसे ज्यादा हुई जहाँ साल के आखिर तक में चुनाव है. 'भारत बंद आंदोलन' को हिंसा की आग में झोक दिया गया जबकि उनमें से अधिकतर को यहीं नहीं पता था की वे आंदोलन कर क्यों रहे है? और एससी-एसटी एक्ट किस बला का नाम है?... कुछ लोगों ने राजनैतिक स्वार्थ के लिए अफ़वाह फैलाई कि आरक्षण ख़त्म कर रही सरकार... तो निकल पड़े देश को आग लगाने वो भी संविधान निर्माता बाबा साहब के नाम की आड़ लेकर... सबसे पहले ये जानना जरुरी है की आखिर सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट पर क्या नए बदलाव किये है...
सुप्रीम कोर्ट ने ‘अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अधिनियम-1989’ के दूरप्रयोग पर बंदिश लगाने के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाया था...इसमें कहा गया था कि एससी एसटी एक्ट के तहत अब एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी को तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी...पहले आरोपों की डीएसपी स्तर का अधिकारी जाँच करेगा यदि आरोप सही पाए जाते हैं तब ही उसकी गिरफ्तारी होगी... नई गाइड लाइन के तहत यदि किसी सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी के लिए विभागीय अधिकारी की अनुमति जरुरी होगी...वहीं आम आदमी के लिए गिरफ्तारी जिले के एसएसपी की लिखित अनुमति के बाद ही होगी... इसके आलावा बेंच ने देश की सभी निचली अदालतों को भी गाइडलाइन अपनाने को कहा ...इसमें एससी एसटी एक्ट के तहत आरोपी की अग्रिम जमानत पर मजिस्ट्रेट विचार करेंगे..और अपने विवेक पर जमानत याचिका मंजूर या नामंजूर करेंगे..
सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल गिरफ्तारी पर रोक इस लिए लगाई क्योंकि इस एक्ट का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा था... गृह मंत्रालय के मुताबिक, साल 2014 में अनुसूचित जाति के कुल 40300 मामले दर्ज किये गए जिनमें 6144 मामले झूठे पाए गए वहीं अनुसूचित जनजाति के कुल 6826 मामले दर्ज किये गए जिनमें 1265 मामले झूठे पाए गए। साल 2015 में अनुसूचित जाति के कुल 38564 मामले दर्ज किये गए जिसमें 5866 मामले गलत पाए गए..वहीं अनुसूचित जनजाति के कुल 6275 मामले दर्ज हुए जिसमें 1177 मामले गलत पाए गए। साल 2016 में अनुसूचित जाति के कुल दर्ज मामले 40774 जिसमें से 5344 मामले झूठे पाए गए वहीं अनुसूचित जनजाति के कुल 6564 मामले दर्ज हुए जिसमें 912 मामले झूठे साबित हुए। ये आंकड़े 2016-17 की समाजिक न्याय विभागकी वार्षिक रिपोर्ट में प्रकशित किये गए हैं। इन आकड़ों से स्पष्ट है कि इस कानून का दुरुपयोग भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की पुर्नविचार याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जो लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं उन लोगों ने कोर्ट के फैसले को पढ़ा तक नहीं है। उसमें से बहुत लोग ऐसे हैं जो इसका फायदा उठाना चाहते हैं। कोर्ट ने कहा कि समाज के निचले तबके के हितों की रक्षा करना कोर्ट की जिम्मेदारी है पर इसका ये कतई मतलब नहीं कि निर्दोष लोगों को सजा हो जाए और कोर्ट अपनी आँखे बंद कर ले। कोर्ट ने कहा, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कानून को निर्दोष लोगों को डराने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ साफ़ कहा कि वे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एक्ट को कमज़ोर नहीं किया बल्कि सिर्फ इस बात क व्यवस्था की है कि इसकी वजह से कोई निर्दोष गिरफ्तार न हो। साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट साफ किया कि इस कानून के तहत मुआवजा मिलना पहले की तरह जारी रहेगा। एफआईआर दर्ज होने से पहले भी मुआवजा दिया जा सकता है।
दलित युवाओं ने बिना सुप्रीम कोर्ट के आदेश को जाने फेसबुक और व्हाट्सऐप पर आये अफ़वाह संदेशों को पढ़ कर देश में हिंसा का खूब तांडव किया जिसमें 10 लोगों की जान गई। इस हिंसा में जो हानि हुई उसका अहसास उन दलित भाइयों को भी होगा जब उनके खून का उबाल कम पड़ेगा। दलित भाईयों ने एक कहावत को चरितार्थ किया है "कौआ कान ले गया तो लोग कौआ को पकड़ने के लिए भागे पर एक बार खुद के कान छुने की जहमत नहीं उठाई। आंदोलन करने का हक़ हमारा संविधान देता है। अगर आप को लगता है कि आप के अधिकार में कटौती की जा रही है, सरकारें आप से छल कर रही है तो आप को हक़ है आंदोलन करें पर हिंसात्मक आंदोलन की इजाज़त न ही कोई सभ्य समाज और न ही हमारा संविधान देता है।
अगर उस दिन अफवाहों पर ध्यान न देकर दलित भाइयों ने शांतिपूर्ण आंदोलन किया होता तो आज वे 12 लोग जिन्दा होते जो हिंसात्मक आंदोलन की बलि चढ़ गए। आज वो हाजीपुर का बच्चा अपनी माँ की गोद में खेल रहा होता अगर उस दिन एम्बुलेंस को अस्पताल जाते समय रोक न दिया गया होता। पर शर्म से कहना पड़ रहा है कि दलितों की अराजक भीड़ ने एक नवजात बच्चे की जान ले ली। आखिर कोई बताएगा कि उस नवजात बच्चे की गलती क्या थी??.. उसने तो अभी इस दुनिया में केवल आँखे ही खोली थी और उसकी आँखे बंद कर दी गई। उस नवजात बच्चे और 11 अन्य लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन??.. मैं बताता हूँ कौन जिम्मेदार है...उनकी मौत के जिम्मेदार हम,आप और ये समाज है जो अक्सर भीड़ का रूप लेकर जानवर बन जाता है। जिसे फर्क नहीं पड़ता कौन इस भीड़ रूपी जानवर का शिकार बन रहा है। भारत महात्मा गांधी का देश है। अहिंसा जो गांधी का सबसे बड़ा हथियार था... गांधी जिसने विश्व को अहिंसा का रास्ता दिखाया सिर्फ दिखाया ही नहीं बल्कि उस रास्ते पर चल कर भारत को आज़ाद करा दिया। आज उसी गांधी के देश में लोग अपनी मांगों को मनवाने के लिए बात- बात पर देश जला रहे हैं। कभी कोई जाट,पटेल,गुर्जर आरक्षण के लिए देश जला देते हैं तो कभी कोई राजपूत किसी फ़िल्म को बैन करवाने के लिए देश जला देते हैं। इसमें मरता भी हमारा अपना ही कोई है। भारत हम आप से मिलकर ही बनता है अगर एक-दूसरे को हम लोग बात बात पर मारने लगे तो बचेगा कौन?? ये सब बंद होना चहिये। गांधी का अहिंसा वाला रास्ता ही हमें विकास और तरक्की के तरफ ले कर जायेगा... विचार जरुर कीजियेगा।
ब्लॉग लेखक भूपेंद्र बहादुर सिंह इंडिया टीवी न्यूज चैनल में कार्यरत हैं