चुनावों में पैसे का गलत इस्तेमाल निर्वाचन व्यवस्था की सबसे बड़ी चिंता: मुख्य चुनाव आयुक्त
मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने भारत में चुनाव के दौरान धन के भारी पैमाने पर दुरुपयोग को चिंताजनक बताया है।
नई दिल्ली: मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने भारत में चुनाव के दौरान धन के भारी पैमाने पर दुरुपयोग को चिंताजनक बताया है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में मौजूदा कानून कारगर नहीं होने के कारण आयोग राज्य से वित्तीय सहायता (स्टेट फंडिंग) से चुनाव लड़ने जैसे सुधारात्मक उपाय तलाश रहा है। रावत ने शनिवार को अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस पर ‘भारत में चुनावी लोकतंत्र की चुनौतियां’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कहा, ‘चुनाव में धन का दुरुपयोग भारत और भारतीय चुनावों के लिये मुख्य चिंता का विषय है। चुनाव प्रचार में वित्तपोषण की पारदर्शिता के लिये कई सुझाव आये हैं, इनमें स्टेट फंडिंग भी शामिल है।’
रावत ने कहा ‘लेकिन मौजूदा कानूनी ढांचा, इस समस्या से निपटने में पूरी तरह से उपयुक्त नहीं है। इसलिये आयोग ने इस दिशा में कई सुधारात्मक उपाय सुझाये हैं।’ उन्होंने कहा कि जहां तक स्टेट फंडिंग का सवाल है, आयोग यह महसूस करता है कि धनबल पर प्रभावी नियंत्रण करना जरूरी है क्योंकि जब तक चुनावी अखाड़े में धनबल के स्रोत मौजूद रहेंगे तब तक स्टेट फंडिंग जैसी पहल अपने उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाएगी। रावत ने कहा कि दिल्ली राज्य निर्वाचन कार्यालय द्वारा आयोजित इस तरह की संगोष्ठियों के माध्यम से चुनाव सुधार के कारगर उपायों को उपयुक्त मंथन के बाद लागू करना प्रभावी पहल साबित होगी।
उन्होंने कहा कि भारत सहित अन्य लोकतांत्रित देशों में चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए तकनीक के दुरुपयोग से डाटा चोरी और फर्जी खबरों (फेक न्यूज) का प्रसारण आज और कल के प्रमुख खतरे है। रावत ने केंब्रिज एनालिटिका मामले का जिक्र करते हुए कहा कि फर्जी खबरों के बढ़ते खतरे से वैश्विक जनमत प्रभावित होने की चिंता भी बढ़ गयी है। उन्होंने दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विजय देव की पहल पर आयोजित संगोष्ठी की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के विमर्श से ही इन समस्याओं का समाधान निकलेगा।
उन्होंने प्रेस की आजादी को बढ़ावा देने और सोशल मीडिया के सदुपयोग की वकालत करते हुए कहा कि मीडिया संगठनों को फर्जी खबरों का प्रसार रोकने के लिये वैश्विक स्तर पर अपनाये जा रहे कारगर उपायों को स्वत: अपनाने की पहल करनी चाहिए। संगोष्ठी में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, समाजशास्त्री प्रो. निरंजन साहू और वरिष्ठ पत्रकार परांजय गुहा ठाकुरता ने भी इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।