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Hindi News भारत राष्ट्रीय अदालतों को ‘सुपर गार्जियन’ नहीं बन जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

अदालतों को ‘सुपर गार्जियन’ नहीं बन जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक लड़की की इच्छा से सहमति जताते हुए आज कहा कि वह अब बालिग है और अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करने की हकदार है तथा अदालतों को ‘सुपर गार्जियन’ नहीं बन जाना चाहिए ।

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नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक लड़की की इच्छा से सहमति जताते हुए आज कहा कि वह अब बालिग है और अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करने की हकदार है तथा अदालतों को ‘सुपर गार्जियन’ नहीं बन जाना चाहिए । दरअसल, इस लड़की को अपने-अपने संरक्षण में रखने के लिए अलग अलग रह रहे उसके माता-पिता कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर तथा जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की सदस्यता वाली एक पीठ ने खचाखच भरे अदालत कक्ष में 18 वर्षीय लड़की से बात की। लड़की ने कहा कि वह बालिग हो गई है और कुवैत में पढ़ाई कर रही है तथा अपने पिता के साथ रहना चाहती है। कोर्ट ने कहा कि लड़की ने बेहिचक कहा है कि वह अपना करियर बनाने के लिए कुवैत वापस जाने का इरादा रखती है। ऐसी स्थिति में हमारा यह मानना है कि बालिग होने के नाते वह अपनी पसंद के अनुसार चलने की हकदार हैं तथा कोर्ट इस पहलू पर विचार नहीं कर सकता कि उस पर उसके पिता का दबाव है या नहीं। 

गौरतलब है कि लड़की की केरल निवासी मां उसे अपने संरक्षण में रखना चाहती है। उसके पिता कुवैत में रहते हैं। कोर्ट केरल निवासी महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो उससे अलग कुवैत में रह रहे अपने पति के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग कर रही थी। महिला की दलील है कि उसकी बेटी और बेटे के संरक्षण के विषय पर इन दोनों के पिता न्यायालय के आदेश की अवमानना कर रहे हैं। लड़की अब बालिग हो गई है जबकि लड़का अब भी नाबालिग है। मामले का निपटारा करते हुए न्यायालय ने कहा कि पिता को अपने बेटे से मिलने के लिए हर यात्रा पर उसकी मां को 50,000 रूपया अदा करना होगा। 

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