Coronavirus: लॉकडाउन के दौरान हेल्पलाइन नंबरों पर आशंका और व्याकुलता प्रकट कर रहे हैं लोग
कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के लिये लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े परामर्श देने के लिये देश के विभिन्न हिस्सों में शुरू की गई हेल्पलाइन पर लोग तरह-तरह की अपनी आशंका और व्याकुलता प्रकट कर रहे हैं।
नयी दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के लिये लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े परामर्श देने के लिये देश के विभिन्न हिस्सों में शुरू की गई हेल्पलाइन पर लोग तरह-तरह की अपनी आशंका और व्याकुलता प्रकट कर रहे हैं। दिल्ली में कार्यरत और फिलहाल बिहार के अपने गांव में फंसे 57 वर्षीय एक व्यक्ति ने लॉकडाउन तीन मई तक बढ़ने की खबर सुनने के बाद मंगलवार को एक हेल्पलाइन पर फोन किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा किये जाने के बाद से टेलीफोन पर परामर्श संचालित कर रही स्वयंसेवी संस्था ‘स्नेही’ के संस्थापक अब्दुल मबूद ने बताया, ‘‘इस व्यक्ति ने अपनी आशंका और बेचैनी के बारे में घंटों बात की। उसके मुताबिक वह अपने परिवार से अपनी आशंकाओं को साझा नहीं करना चाहता और हेल्पलाइन पर खुल कर अपनी परेशानी साझा करता है।’’
मबूद ने बताया, ‘‘वह अपनी नौकरी जाने और उसे कुछ हो जाने की स्थिति में अपने परिवार के भविष्य से जुड़ी अनिश्चितता के बारे में बात करता है।’’ स्नेही के अलावा कई अन्य हेल्पलाइन पर संवाद कर रहे परामर्शदाता उन लोगों की हिम्मत बढ़ा रहे हैं जो इन दिनों तनाव, आशंका और बेचैनी का सामना कर रहे हैं। मबूद के मुताबिक उनकी टीम में 10 परामर्शदाता हैं और वे रोजाना 60 से 70 फोन कॉल का जवाब देते हैं। उनके पास इतनी अधिक संख्या में फोन कॉल आते हैं कि वे कइयों का जवाब नहीं दे पाते हैं। मनोचिकित्सकों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि महामारी के चलते नौकरी और करियर तथा परिवार की चिंता लोगों को सता रही है ।
इस वजह से अधिक से अधिक लोग मदद के लिये संपर्क कर रहे हैं। देश के कई हिस्सों में शुरू की गई हेल्पलाइनों पर लोगों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। छात्र अपनी परीक्षा के बारे में चिंतित हैं तो बुजुर्ग अपने स्वास्थ्य को लेकर। लोग अपने करियर और नौकरी की चिंता को लेकर भी फोन कर रहे हैं। एक गैर सरकारी संगठन के साथ महाराष्ट्र सरकार और बृहनमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) द्वारा तीन अप्रैल को स्थापित टोल फ्री नंबर पर एक हफ्ते से भी कम समय में 2,000 से अधिक फोन कॉल आये। बेंगलुरु के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंसेज (निमहांस) को एक हफ्ते में करीब 2500 कॉल प्राप्त हुए।
इस हेल्पलाइन की घोषणा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 29 मार्च को की थी। मुंबई के मनोचिकित्सक डॉ हरीश शेट्टी ने कहा कि उन्हें रोजाना पांच से छह नये मामले मिल रहे हैं। उनके मरीजों में एक ऐसा व्यक्ति भी शामिल है जिसने खुद को अस्पताल में भर्ती कराया है। उसे लगता है कि वह संक्रमित है जबकि उसकी कोविड-19 जांच दो बार नेगेटिव आई है। जब लॉकडाउन लागू हुआ तब 15 साल के एक लड़के की परीक्षा चल रही थी और वह कई दिन नहीं सो पाया। वहीं, 35 वर्षीय एक व्यक्ति व्हाट्सऐप संदेश देखता रहता है और वह आक्रामक हो गया है तथा हर चीज को शक की नजरों से देखता है। शेट्टी ने बताया, ‘‘वह कहता है कि वायरस उसकी ओर उड़ता हुआ आएगा और उसकी बांह से होते हुए उसे संक्रमित कर देगा।’’
उन्होंने बताया कि भयभीत होने के कई नये मामले भी आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्रथम सप्ताह में हमारे पास एक भी मामला नहीं था, लेकिन पिछले कुछ दिनों में इसकी भरमार हो गई। शेट्टी ने कहा, ‘‘लॉकडाउन के चलते, लोग अलग-थलग और दुनिया से कटे हुए महसूस कर रहे हैं। लोग नहीं जानते हैं कि क्या करना है। गुस्सा और खीझ बढ़ती जा रही है।’’ विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसे में जब नये मामले सामने आ रहे हैं, तब लोग मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे लोग और बुजुर्ग सर्वाधिक जोखिम में हैं।
वेलनेस वॉलियंटर्स यूनाइटेड की तीशा झावेरी के मुताबिक, ‘‘ये लोग बाहरी दुनिया से जुड़ाव चाहते हैं। हमें लोगों के जीवन, नौकरियों और यहां तक कि उनके संबंधों के बारे में फोन आते हैं। कोई कर्ज के बोझ तले दबा होता है तो कोई जिम्मेदारियों से लदा होता है। ज्यादातर मामलों में हम उनसे बात करते हैं और समझाते बुझाते हैं। ’’ उन्होंने बताया कि हेल्पलाइन को रोजाना 60 से 80 कॉल आते हैं। सभी विशेषज्ञ सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं।