राफेल विमान सौदे को लेकर उठे विवाद पर अब विराम लगना चाहिए
राफेल डील पर पिछले कई महीनों से देश में जो विवाद जारी है वह अब तेजी से खत्म होने की ओर बढ़ रहा है, लेकिन कई ऐसे बिंदु हैं जिनपर विचार करने की जरूरत है
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को राफेल सौदे पर दो बैठकों में लंबी सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल और याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलील सुनी और बाद में इसपर अपने आदेश को सुरक्षित रख लिया। राफेल डील की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ को तकनीकी सवालों की जानकारी देने के लिए रक्षा मंत्रालय और भारतीय वायुसेना के अधिकारी भी मौजूद थे।
राफेल डील पर पिछले कई महीनों से देश में जो विवाद जारी है वह अब तेजी से खत्म होने की ओर बढ़ रहा है, लेकिन कई ऐसे बिंदु हैं जिनपर विचार करने की जरूरत है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रिलायंस अनिल धीरुभाई अंबानी ग्रुप के मालिक अनिल अंबानी पर जो आरोप लगाए थे उनमें ज्यादातर आरोपों को फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने एक भारतीय समाचार एजेंसी को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में नकारा है।
ट्रैपियर ने साफ तौर पर कहा है कि रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर के तौर पर चुना जाना पूरी तरह से उनकी कंपनी का फैसला है। उन्होंने यह भी कहा कि ऑफसेट पार्टनर के तौर पर सिर्फ एक कंपनी का चुनाव नहीं हुआ है बल्कि 30 कंपनियों को ऑफसेट पार्टनर के तौर पर चुना गया है।
डसॉल्ट के सीईओ ने यह जानकारी भी दी कि रिलायंस के साथ हुए ज्वाइंट वेंचर में उनकी कंपनी ने शुरुआत में 40 करोड़ रुपए का निवेश किया है और पांच सालों में कुल 360 करोड़ रुपए का निवेश होना है। यह तथ्य पूरी तरह से राहुल गांधी के उस आरोप के विपरीत है जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री ने रिलायंस को 30000 करोड़ रुपए का फायदा पहुंचाया है। कोई नहीं जानता कि राहुल गांधी को यह जानकारी कहां से मिली, इस जानकारी का स्रोत बताने में खुद राहुल गांधी ही सही व्यक्ति हो सकते हैं।
अपने इंटरव्यू में एरिक ट्रैपियर ने यह भी बताया कि भारतीय वायुसेना ने 36 राफेल विमानों को जिस कीमत पर खरीदा है वह पूर्व की यूपीए सरकार में तय हुई कीमत से 9 प्रतिशत कम है। उन्होंने यह भी बताया कि सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने खुद राफेल डील में ऑफसेट पार्टनर बनने से इंकार किया था। दूसरे शब्दों में कहें तो डसॉल्ट पर अनिल अंबानी की कंपनी को चुने जाने के लिए भारत सरकार की तरफ से किसी तरह का दबाव नहीं बनाया गया।
डसॉल्ट के सीईओ ने यह खुलासा भी किया कि भारतीय वायुसेना को अगले साल सितंबर तक राफेल विमान सौंप दिए जाएंगे, जो विमान मिलेंगे उनमें रडार वार्निंग सिस्टम, हेलमेट माउंटेड सिग्नल, रेडियो अल्टीमीटर और डॉप्लर रडार पहले से लगे होंगे। जबकि लड़ाकू विमान में जो मिसाइलें फिट की जाएंगी वह मिसाइल बनाने वाली कंपनी के साथ हुई एक अलग डील का हिस्सा है।
राहुल गांधी और विपक्ष के दूसरे नेता विमान की सटीक कीमत की जानकारी दिए जाने की मांग कर रहे हैं जिसपर विमान की खरीद हुई है। सरकार सुप्रीम कोर्ट को पहले ही सीलबंद लिफाफे में कीमत की जानकारी दे चुकी है।
राहुल गांधी अपनी रैलियों और प्रेस कॉन्फ्रेंसों में कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने उनके आरोपों का जवाब नहीं दिया है। प्रधानमंत्री ने फिलहाल इस मुद्दे पर किसी तरह की प्रतिक्रिया से परहेज किया है, लेकिन वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और भारतीय वायुसेना प्रमुख ने उनके अधिकतर आरोपों का जवाब दे दिया है।
अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है और राष्ट्रहित में यह अच्छा होगा कि इस विवाद को यहीं पर रोक दिया जाए।