आचार्य का मानना था कि जिस धर्म में दया का भाव न दिखाई दे उस धर्म को नहीं अपनाना चाहिए। जिस गुरु में ज्ञान न हो उसे भी छोड़ देना चाहिए। वहीं चाणक्य ने पत्नी के बारे में कहा कि अगर आपकी पत्नी हमेशा क्रोध में ही रहती है उसका त्याग करना चाहिए। साथ ही अगर आपके भाई-बहन भी स्नेहहीन हों तो भी उन्हें छोड़ देना चाहिए।
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