कोच्चि: केरल में सत्तारूढ़ वाम सरकार ने बुधवार को केरल हाई कोर्ट से कहा कि राज्य के वित्तीय संकट को देखते हुए सभी श्रेणी के लोगों के वास्ते कोविड-19 बाद की जटिलताओं का असीमित मुफ्त उपचार प्रदान नहीं किया जा सकता। राज्य सरकार ने यह बात अदालत की इस टिप्पणी के जवाब में कही कि जब कोरोना वायरस की जांच निगेटिव आने के 30 दिनों के बाद भी मृत्यु को एक कोविड-19 से मौत के रूप में माना जाता है, तो उसी तर्क से कोविड-19 बाद की जटिलताओं के लिए उपचार भी कोरोना देखभाल के तहत होना चाहिए।
जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस कौसर एडप्पागथ की पीठ ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा था कि उसने गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के लिए कोविड-19 बाद की जटिलताओं के लिए उपचार शुल्क क्यों तय किया। राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ सरकारी वकील एस कन्नन कर रहे थे। राज्य सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में बुधवार को पीठ को बताया कि उसने ‘BPL, KBF और KASP लाभार्थियों को मुफ्त में कोविड-19 जांच, उपचार और कोविड-19 बाद जटिलताओं के लिए उपचार प्रदान करने के लिए एक नीतिगत निर्णय लिया है।’
राज्य सरकार ने यह भी कहा कि ‘यह सुनिश्चित करने के लिए कि निजी अस्पताल मरीजों से अत्यधिक शुल्क ना वसूलें, उपचार पैकेज की ऊपरी सीमा तय की गई है। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए हैं कि गरीबी रेखा से ऊपर (APL) के रोगियों के लिए सरकारी अस्पतालों में उचित लागत पर कोविड-19 बाद का उपचार उपलब्ध हो। सरकारी अस्पतालों में भुगतान वाले वार्ड के लिए प्रतिदिन 750 रुपये की दर है।’
केरल सरकार ने कहा, ‘सामान्य वार्ड में एक बिस्तर के लिए ‘स्टॉपेज चार्ज’ के रूप में मरीजों से केवल 10 रुपये वसूले जाते हैं। इसलिए, यह रोगी की पसंद है कि वह इलाज के लिए किसी निजी अस्पताल में जाए या किसी सरकारी अस्पताल के भुगतान वाले वार्ड या सामान्य वार्ड में।’
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