गोडावण संकट में, राजस्थान को ढूंढना पड़ सकता है नया राज्य पक्षी
थार का सबसे खूबसूरत और शर्मीला सा पक्षी गोडावण लुप्त हो जाएगा और राजस्थान को राज्य पक्षी का दर्जा देने के लिए किसी और पक्षी की तलाश करनी होगी।
जयपुर: ज्यादा से ज्यादा डेढ़ सौ। पूरे देश में अब इतने ही गोडावण बचे हैं। अगर इन्हें भी बचाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब थार का यह सबसे खूबसूरत और शर्मीला सा पक्षी लुप्त हो जाएगा और राजस्थान को राज्य पक्षी का दर्जा देने के लिए किसी और पक्षी की तलाश करनी होगी। इसी सप्ताह सीमावर्ती जैसलमेर जिले में एक और गोडावण की मौत ने इस मामले को फिर चर्चा में ला दिया है। तीन प्रमुख वन्य जीव संरक्षण संगठनों ने एक ऑनलाइन याचिका अभियान शुरू किया है। इसमें देश के बिजली मंत्री से मांग की जा रही है कि जिन इलाकों में गोडावण का बसेरा है वहां से गुजरने वाली बिजली के उच्च शक्ति वाले तारों को भूमिगत किया जाए।
गोडावण को बचाने के अब तक के सरकारी प्रयास बहुत ही निराश करने वाले रहे हैं और कई साल गुजरने के बाद भी न तो हेचरी (नियंत्रित परिस्थितियों में दुर्लभ प्रजातियों का प्रजनन) बन पाई है और न ही रामदेवरा में अंडा संकलन केंद्र अस्तित्व में आ सका है। गैर सरकारी संगठनों से मिले बर्ड डायवर्टर बिजली कंपनियों के गोदामों में धूल फांक रहे हैं। सोहन चिड़िया और हुकना के नाम से जाना जाना वाला गोडावण दिखने में शुतुरमुर्ग जैसा होता है और यह देश में उड़ने वाले पक्षियों में सबसे वजनी पक्षियों में है।
यह एक कड़वी सच्चाई है कि आम भाषा में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) के नाम से पुकारा जाने वाला यह सुंदर परिंदा आईयूसीएन की दुनिया भर की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' पक्षी के तौर पर दर्ज है। इसे भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में रखा गया है। भारत सरकार के बहुप्रचारित 'प्रजाति रिकवरी कार्यक्रम’ में चयनित 17 प्रजातियों में गोडावण भी है।
पहले संख्या की बात की जाए। कुछ दशक पहले देश भर में इनकी संख्या 1000 से अधिक थी। एक अध्ययन के अनुसार 1978 में यह 745 थी जो 2001 में घटकर 600 व 2008 में 300 रह गयी। दिल्ली के इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में सह आचार्य और गोडावण बचाने के लिए काम कर रहे डा सुमित डूकिया के अनुसार अब ज्यादा से ज्यादा 150 गोडावण बचे हैं जिनमें 122 राजस्थान में और 28 पड़ोसी गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में हैं। इसमें भी गोडावण अंडे अब फिलहाल केवल जैसलमेर में देते हैं।
अब बात इन पर मंडराते खतरे की। शिकारियों के अलावा इस पक्षी को सबसे बड़ा खतरा विशेष रूप से राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में लगी विंड मिलों के पंखों और वहां से गुजरने वाली हाइटेंशन तारों से है। दरअसल गोडावण की शारीरिक रचना इस तरह की होती है कि वह सीधा सामने नहीं देख पाता। शरीर भारी होने के कारण वह ज्यादा ऊंची उड़ान भी नहीं भर सकता। ऐसे में बिजली की तारें उसके लिए खतरनाक साबित हो रही हैं। जैसलमेर के उप वन संरक्षक (वन्य जीव) अशोक महरिया के अनुसार बीते लगभग 18 महीने में गोडावण की मौत के पांच साबित मामलों में से चार ‘हिट’ के मामले हैं। हालांकि वहां के हालात के हिसाब से कहा जा सकता है कि उनकी मौत बिजली की तारों की चपेट में आने से हुई होगी।
गोडावण पक्षी के संरक्षण व बचाव के लिए जून 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड शुरू किया था। लेकिन इसके कुछ ही महीने बाद ही उनकी सरकार चली गयी और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। वसुंधरा सरकार ने रामदेवरा के पास गोडावण अंडा संकलन केंद्र और कोटा में हेचरी बनाने के प्रस्ताव को इसी साल अंतिम रूप दिया था। जमीन अधिग्रहण वगैरह की कार्रवाई अब चल रही है। उप वन संरक्षक महरिया को उम्मीद है कि यह प्रोजेक्ट सिरे चढ़ने पर गोडावण को बचाने की दिशा में प्रभावी काम होगा क्योंकि अबू धाबी में होउबारा बस्टर्ड के संरक्षण की ऐसी ही एक परियोजना सफल रही है।
इस बीच तीन वन्य जीव संगठनों ने साथ मिलकर एक आपात अभियान चलाया है। ये संगठन द कार्बेट फाउंडेशन, कंजर्वेशन इंडिया व सेंक्चुरी नेचर फाउंडेशन इस याचिका के जरिए बिजली और नवीकरणीय उर्जा विभाग से मांग कर रहे हैं कि गोडावण के रहवास वाले इलाकों में उच्च शक्ति वाली बिजली की तारों को भूमिगत किया जाए। अदाकारा दिया मिर्जा ने भी इस अभियान का समर्थन करते हुए ट्वीट किया है और अब तक 10000 से अधिक लोग इस याचिका पर आनलाइन हस्ताक्षर कर चुके हैं।
पक्षी प्रेमी हैरान हैं कि कुछ दशक पहले तक जिस गोडावण को राष्ट्रीय पक्षी बनाने की बात हो रही थी उसका अस्तित्व आज संकट में है। डा डूकिया के शब्दों में,‘गोडावण को बचाने का यह अंतिम मौका है। अगर हम भी नहीं चेते और कुछ मजबूत पहल नहीं की तो बचे खुचे गोडावण भी अगले 10-15 साल में गायब हो जाएंगे और राजस्थान को अपने राज्य पक्षी के दर्जे के लिए कोई और पक्षी तलाशना पड़ेगा।’