मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि यह सही समय है कि महाराष्ट्र सरकार और झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण (एसआरए) पुनर्विकास योजनाओं में "पेशेवर और समयबद्ध" तरीके से काम सुनिश्चित करने के लिए तंत्र तैयार करें। न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की एकल पीठ ने कुछ कदम सुझाए हैं, जिनमें उन डेवलपरों को बाहर करना जो वास्तविक नहीं हैं, परियोजनाओं का निष्पक्ष तरीके से आवंटन और झुग्गी पुनर्वास अधिनियम में ग्रे क्षेत्रों की पहचान करने के लिए अध्ययन करना शामिल है।
शहर के एक डेवलपर ने शीर्ष शिकायत निवारण समिति की ओर से 2017 में दिए गए एक आदेश को चुनौती दी थी। समिति की स्थापना महाराष्ट्र झुग्गी क्षेत्र (सुधार, मंजूरी एवं पुनर्विकास) अधिनियम 1971 के तहत की गई थी। समिति ने अपने आदेश में झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के फैसले सही ठहराया था। अधिकारी ने याचिकाकर्ता की डेवलपर के रूप में नियुक्ति को रद्द कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, "वर्तमान में, झुग्गियों में रहने वाले लोग साल 1997 से पुनर्वास के अधूरे सपने को जी रहे हैं कि उनके सिर पर स्थायी छत होगी और वह भी मानवीय तरीके से जीवनयापन करेंगे।" अदालत ने कहा कि यह सही समय है कि राज्य सरकार और झुग्गी प्राधिकरण अध्ययन करके स्थायी और पक्का तंत्र करे और झुग्गी पुनर्वास अधिनियम के तहत ग्रे क्षेत्रों की पहचान करे।
न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने कहा, "पुनर्विकास का काम पेशेवर और समयबद्ध तरीके से होना आज की जरूरत है। झुग्गी-झोपड़ी रहित आदर्श शहर बनाने के उद्देश्य को हासिल करने के लिए ये सभी प्रयासों आवश्यक हैं।" उन्होंने सोमवार को अपने फैसले में कहा, "अभी भी बहुत देर नहीं हुई है।"
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