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Hindi News भारत राष्ट्रीय तीन तलाक के बाद महिलाओं का खतना भी हो बंद, मुस्लिम महिला का पीएम मोदी को खुला पत्र

तीन तलाक के बाद महिलाओं का खतना भी हो बंद, मुस्लिम महिला का पीएम मोदी को खुला पत्र

मासूमा ने लिखा है कि मैं बताती हूं कि मेरे समुदाय में आज भी छोटी बच्चियों के साथ क्या होता है। जैसे ही कोई बच्ची 7 साल की हो जाती है, उसकी मां या दादीमां उसे एक दाई या लोकल डॉक्टर के पास ले जाती हैं। बच्ची को ये नहीं बताया जाता कि उसे कहां ले जाया जा

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नई दिल्ली: भारतीय इतिहास में 22 अगस्त 2017 का दिन काफी अहम रहा क्योंकि इसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने आज के दिन मुस्लिम समुदाय में प्रचलित एक बार में तीन तलाक कह कर तलाक देने की 1400 साल पुरानी प्रथा खत्म करते हुए इसे पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ और इससे इस्लामिक शरिया कानून का उल्लंघन करार दिया। वहीं इस मुद्दे पर फैसला आने के बाद अब मुस्लिम महिलाओं ने खतने को लेकर भी आवाज उठाई है। ये भी पढ़ें: क्या होता है महिलाओं में ख़तना-प्रथा? रोकने के लिये मामला पहुंचा पीएम मोदी के पास

महिलाओं में ख़तना एक ऐसी प्रथा है, जिसका एकमात्र उद्देश्य महिलाओं की यौन आजादी पर पाबंदी लगाना है। महिलाओं में जननांग विकृति से हर साल बहुत सी महिलाओं और बच्चियों की मौत हो जाती है। जो लड़कियां बच भी जाती हैं, इस प्रथा से जुड़ी दर्दनाक यादें ताउम्र उनके साथ रहती है। ख़तना से न सिर्फ़ महिलाओं को मानसिक क्षति पहुंचती है, बल्कि उनको शारीरिक नुकसान भी होता है। विश्व के कई समुदायों में इस प्रथा का पालन किया जाता है।

इस कुप्रथा को रोकने के लिए एक महिला सालों से संघर्ष कर रही है। बोहरा समुदाय की मासूमा रानाल्वी ने देश के प्रधानमंत्री मोदी के नाम एक खुला ख़त लिखकर इस कुप्रथा को रोकने की मांग की है। उन्होंने खत में लिखा है कि आजादी वाले दिन आपने जब मुस्लिम महिलाओं के दर्द और दुखों का जिक्र लालकिले के प्राचीर से किया था, तो उसे देख-सुनकर काफी अच्छा लगा था। हम मुस्लिम औरतों को तब तक पूरी आजादी नहीं मिल सकती जब तक हमारा बलात्कार होता रहेगा, हमें संस्कृति, परंपरा और धर्म के नाम पर प्रताड़ित किया जाता रहेगा। तीन तलाक एक गुनाह है लेकिन इस देश की औरतों की सिर्फ़ यही एक समस्या नहीं है। मैं आपको औरतों के साथ होने वाले खतने के बारे में बताना चाहती हूं, जो छोटी बच्चियों के साथ किया जाता है।

मासूमा ने लिखा है कि मैं बताती हूं कि मेरे समुदाय में आज भी छोटी बच्चियों के साथ क्या होता है। जैसे ही कोई बच्ची 7 साल की हो जाती है, उसकी मां या दादीमां उसे एक दाई या लोकल डॉक्टर के पास ले जाती हैं। बच्ची को ये नहीं बताया जाता कि उसे कहां ले जाया जा रहा है या उसके साथ क्या होने वाला है। दाई या आया या वो डॉक्टर उसके Clitoris को काट देते हैं। इस प्रथा का दर्द ताउम्र के लिए उस बच्ची के साथ रह जाता है। इस प्रथा का एकमात्र उद्देश्य है, बच्ची या महिला के यौन इच्छाओं को दबाना।

मासूमा ने आगे लिखा है कि प्रधानमंत्री जी, हम बोहरा समुदाय की महिलायें अपने हक़ के लिए लड़ रही हैं। कुरान में भी खतना की बात नहीं कही गई है। हमारे देश में सिर्फ़ बोहरा समुदाय में और केरल के कुछ समुदायों में ही इस प्रथा का पालन किया जाता है। हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और कुछ चीज़ें बदलनी ही चाहिए। मैं सरकार से ये दरख़्वास्त करती हूं कि जल्द से जल्द इस कुप्रथा को ख़त्म करने पर काम शुरू किया जाए। इस प्रथा को बैन करके बोहरा बेटी बचाना बहुत ज़रूरी है।

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