BLOG: सुर्खियों में लगातार बने रहने की चाहत में सुशील नहीं रहते 'मोदी'
बिहार सूबे की पूरी सियासत भले ही सत्तासीन जेडीयू-आरजेडी गठबंधन में दरार और वाक युद्ध के इर्द-गिर्द घूम रही हो, पर सुशील मोदी ऐसे नेता हैं जो गठबंधन की परिधि से बाहर होते हुए भी सियासी घटनाक्रम के केंद्र में बने हुए हैं और...
बिहार सूबे की पूरी सियासत भले ही सत्तासीन जेडीयू-आरजेडी गठबंधन में दरार और वाक युद्ध के इर्द-गिर्द घूम रही हो, पर सुशील मोदी ऐसे नेता हैं जो गठबंधन की परिधि से बाहर होते हुए भी सियासी घटनाक्रम के केंद्र में बने हुए हैं और अपने बयानों से अखबारी सुर्खियों में छाए हुए हैं। सुशील मोदी कभी हिम्मत का वास्ता देकर आरजेडी को ललकारते हैं, तो कभी जेडीयू को। सुशील मोदी के बयानों को स्वाभाविक करार नहीं दिया जा सकता। दरअसल, बयानों के पीछे गहरे सियासी निहितार्थ छिपे होते हैं। सियासी दिग्गजों के अनुसार सुशील मोदी आरजेडी और जेडीयू पर इसलिए निशाना साध रहे हैं ताकि आरजेडी भी सब लड़ाई छोड़कर उनसे लड़े और जेडीयू भी उनके आरोपों का जवाब देने को मजबूर हो। दोनों ही दशा में वह सूबे की सियासी केंद्र में बने रहें और उनकी टीआरपी बरकरार रहे।
वैसे भी बिहार में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष तो बस अध्यक्ष भर होता है। मंगल पांडेय गये तो नित्यानंद राय आये। प्रदेश अध्यक्ष का पद भले ही किसी और के पास रहा हो, सुशील मोदी कद्दावर नेता के तौर पर खुद को बनाए रखते रहे हैं। सुशील मोदी के हालिया बयानों को देखें तो साफ है कि बयान इस अंदाज से दिए गए कि एक बयान से कई हित एक साथ सधें। बेनामी संपत्ति मामले में लालू यादव के रिश्तेदारों पर प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग का छापा पड़ा। सुशील मोदी ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि लालू यादव के खिलाफ बेनामी संपत्ति मामले में सारे सबूत उन्हें नीतीश सरकार के लोग ही दे रहे हैं। सुशील मोदी के इस दावे से जहां एक तरफ आरजेडी और जेडीयू नेताओं में मतभेद और संदेह का दायरा बढ़ा, वहीं सुशील मोदी गठबंधन से बाहर होते हुए भी तकरार के बीच आ गए।
जेडीयू-आरजेडी गठबंधन के हालिया आरोप-प्रत्यारोप के बीच भी सुशील मोदी कूद पड़े। सुशील मोदी ने लालू यादव को चुनौती देते हुए कहा कि लालू यादव में गठबंधन तोड़ने की हिम्मत नहीं है, वे सिर्फ गीदड़ भभकी दे रहे हैं। दूसरी तरफ जेडीयू को भी ललकारा कि 'जेडीयू कोई भी डेडलाइन तय करें सीएम नीतीश कुमार का अपमान करने वाले अपने बयानवीरों पर लालू यादव कार्रवाई नहीं करने वाले हैं। बयान का असर यह हुआ कि लालू यादव के बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को सुशील मोदी के बयान पर पलटवार करते हुए फेसबुक पोस्ट लिखना पड़ा। ऐसा नहीं कि सुशील मोदी ने पहली बार विरोधियों को हिम्मत का हवाला देकर ललकारा है। इससे पहले भी सीएम नीतीश को हिम्मत का हवाला दिया था और कहा था कि आयकर विभाग की कार्रवाई के बाद भी नीतीश में हिम्मत नहीं है कि लालू यादव के बेटों उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव को कैबिनेट से बर्खास्त कर सकें।
सुशील मोदी मजे हुए रणनीतिकार की तरह एक तीर से कई निशाने साधते रहे हैं और मुद्दा कोई भी हो सियासी केंद्र में बने रहते हैं। इसी क्रम में कभी-कभी तो वह मार्यदित शब्दों के दायरे के पार चले जाते हैं। कुछ दिन पहले अपने ही पार्टी के नेता शत्रुघ्न सिन्हा को गद्दार तक कह डाला था, और लालू यादव को 'कान छिदवा लो, सिर छिलवा लो' तक कह डाला था। लालू यादव सुशील मोदी के बयान से खासा नाराज हुए, उन्होंने कहा कि सुशील मोदी 'ओले' खाते हैं इसलिए उनके मुंह में खुजली होती रहती है और अनाप-शनाप बयान देते रहते हैं। खुद की पार्टी के हित से जुड़े मामले में भी पार्टी लाइन से हटकर बयान देने से पीछे नहीं हटते।
हाल में ही नीतीश कुमार ने जब एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के समर्थन का दावा किया, तो बीजेपी के आला नेताओं ने भी नीतीश को समर्थन के लिए शुक्रिया कहा, एनडीए के घटक दलों ने भी नीतीश के समर्थन पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई। लेकिन उस वक्त भी सुशील मोदी अपने बयान से सुर्खियों में आ गए। दरअसल सुशील मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार ने रामनाथ कोविंद को समर्थन देकर अपनी ऐतिहासिक भूल को सुधारने की शुरुआत की है। उन्होंने कहा कि नीतीश जयप्रकाश नारायण के अनुयायी रहे हैं और उन्होंने आपातकाल लगाने वाली कांग्रेस से समझौता कर बड़ी भूल की थी, अब उसे ही सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। सियासी दिग्गजों का कहना है कि थुक्काफजीहत चाहे जितनी भी हो, सुशील मोदी सियासत के केंद्र में बने रहने के लिए बयानबाजी से पीछे नहीं हटने वाले।
(इस ब्लॉग के लेखक शिवाजी राय पत्रकार हैं और देश के नंबर वन हिंदी न्यूज चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं)