BLOG: ‘भारत बंद’ राजनैतिक लड़ाई या शक्ति प्रदर्शन
लोकतंत्र में विरोध करने का सबको हक़ हैं, विरोध करना भी चाहिए, लेकिन इस तरह से हिंसा फैला के नहीं।
अर्चना सिंह | एक बार फिर भारत बंद। वैसे इसे भारत बंद नहीं 'गुंडागर्दी की खुलेआम छूट' कहना चाहिए। बंद में तीन साल की बच्ची और एक युवक की जान चली गई क्यूंकि बंद वाले गुंडों ने उन्हें अस्पताल जाने से रोका। बंद करवाने वाले राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता नहीं बल्कि गुंडे हैं जिन्होंने आम लोगों की गाड़ियां तोड़ीं, दुकानें जबरन धमकाकर बंद करवाईं, ट्रेनों में पथराव किया, आम आदमी के टैक्स से बनी सावर्जनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया, गोया उसपे तुर्रा ये, कि बंद सफल हुआ, पूरा हिंदुस्तान हमारे बंद के साथ था। कौन से हिन्दुस्तान की बात कर रहे हैं आप, राजनीति का चश्मा हटाइए, आप को नजर आएगा आम लोग त्रस्त हैं आतंकित है बंद से।
विपक्ष को अपनी एकता दिखानी थी, अपनी राजनीति चमकानी थी, इसलिए बंद बुलाया।। बंद 'सफल' का क्रेडिट लेने वाले दो मौत की ज़िम्मेदारी क्यों नहीं लेते, जो गुंडे कैमरे पर क़ैद हुए हैं उनपर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। आम लोगों की और सार्वजनिक सम्पत्ति का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई इन राजनैतिक दलों से की जानी चाहिए। बंद सरकार के फैसले पर लोगों की नाराज़गी प्रकट करने का तरीका होता है, बंद की ज़रिए लोग सरकार को चेतावनी देते हैं तो ज़ाहिर सी बात है, ऐसे आयोजन में लोगों की बढ़-चढ़ के भागीदारी होनी चाहिए। लेकिन अब बंद का मतलब बदल गया है। अब बंद का मतलब है जिसने बंद का आवाह्न किया, उसे किस-किस का समर्थन मिल रहा है, उस के साथ कितने राजनैतिक दल हैं, उनकी ज़मीनी हक़ीक़त क्या है।
आम लोग इस से बंद से दूरी ही नहीं बनाते, बल्कि दहशत में रहते हैं। उनके लिए बंद, मुद्दों की राजनैतिक लड़ाई नहीं, बल्कि राजनैतिक दलों का शक्ति प्रदर्शन है। अब बंद आम आदमी की आवाज़ उठाने का जरिया नहीं बल्कि आम जन-जीवन को बंधक बनाने का हथियार बन गया है। लोकतंत्र में सरकार की नीति, फैसलों का विरोध होना ही चाहिए लेकिन हिंसा से नहीं। लोकतंत्र में हिंसा की कोई जगह नहीं है। विरोध का लोकतांत्रिक तरीका भी है, हिंसा से किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ है, न ही होगा। याद रखिए,' मेरा बंद अच्छा तुम्हारा ख़राब' से कोई हल नहीं निकलेगा। सैद्धांतिक रूप से बंद की खिलाफत करनी होगी। लोकतंत्र में विरोध करने का सबको हक़ हैं, विरोध करना भी चाहिए, लेकिन इस तरह से हिंसा फैला के नहीं, लोगों को डरा के नहीं,उनको बंधक बना के नहीं, लोगों की जान ले के नहीं।
(ब्लॉग की लेखिका अर्चना सिंह इंडिया टीवी में न्यूज ऐंकर हैं। इस लेख में व्यक्त विचार उनके अपने हैं)