BLOG: ''DSP अयूब पंडित की हत्या दुखद, पर संकेत शुभ हैं''
बीते दिनों श्रीनगर के नौहट्टा में जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को एक मस्जिद के बाहर भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। निसंदेह डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित की हत्या बेहद दुखद है लेकिन इसके पीछे जो संकेत दिख रहे हैं वो कश्मीर, कश्मीरी
बीते दिनों श्रीनगर के नौहट्टा में जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को एक मस्जिद के बाहर भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। निसंदेह डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित की हत्या बेहद दुखद है लेकिन इसके पीछे जो संकेत दिख रहे हैं वो कश्मीर, कश्मीरी और भारत के लिए शुभ हैं...हत्या को किसी भी लिहाज से जायज नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इस तथ्य को भी स्वीकार करने में हिचक नहीं होनी चाहिए कि सरकार कश्मीर घाटी को आज एक ऐसे मुकाम पर लाने में सफल हो गई है, जहां पर पाकिस्तान समर्थित कश्मीरी नेताओं और आतंकवादियों को अब पुलिस और सुरक्षाबलों में कार्यरत कश्मीरियों को मारना पड़ रहा है।
कश्मीर घाटी में आतंकवादियों द्वारा हत्या करना कोई नई बात नही है लेकिन कश्मीर में पाक समर्थित आतंकवादियों द्वारा, सुरक्षाबलों में कार्यरत कश्मीरियों की हत्या करना जरूर नई बात है...यह हत्याएं बताती हैं कि पाकिस्तान समर्थित कश्मीरी नेता और आतंकवादी दोनों ही भारत सरकार और सेना की सफल रणनीति में फंसते जा रहे हैं और दिनोंदिन घाटी में उनके खिलाफ माहौल बन रहा है..जिसकी वजह से अपनों की हत्या का आत्मघाती कदम उठाना ही उनकी मजबूरी हो गई है।
यह नहीं कहा जा सकता कि स्थानीय आतंकी दूसरों की हत्या के खूनी खेल के इतने आदी हो गए हैं कि आज वह अपने ही लोगों की हत्या पर उतर आए हैं...बल्कि कश्मीरियों की हत्या घाटी में ढीली होती पकड़ की बौखलाहट का नतीजा है। इसके साथ ही घाटी में उठ रही आवाज पर भी गौर करें तो बदली हवा साफ दिखेगी। डीएसपी मोहम्मद अयूब और लेफ्टिनेंट उमर फैयाज के परिजनों और उनके जनाजे में शामिल लोगों की आवाज सुनें तो यह साफ है कि वह आज यहां एक बड़ा तबका बुलंद आवाज़ में खुद हिंदुस्तानी होने का खुलेआम ऐलान कर रहा है। हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तान भेजने की आवाज लगा रहा है।
हत्या किसी की भी हो दुखद है, उसमें भी जनता की सुरक्षा में लगे लोगों की हत्याएं तो और भी दुखद है...परन्तु दूसरे नजरिए से देंखे तो ये हत्याएं आतंकियों के हताशा को दर्शाती हैं...यहां होने वाली एक-एक कश्मीरी की हत्या, पाकिस्तान समर्थित कश्मीरियों और आतंकवादियों को कश्मीर की जनता से दूर कर रही है। यह स्पष्ट है कि किसी भी आतंकवाद से प्रभावित इलाकों से आतंकवादियों को वहां मिल रही स्थानीय सहायता पर तब तक विराम नही लग सकता है जब तक खुद वहां का जनमानस उनके द्वारा फैलाय गये आतंक से त्रस्त नही हो जाता है।
इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो साफ नजर आएगा कि पंजाब में आतंकवाद के खात्मे के पीछे यही वजहें थीं...कहा जा सकता है कि पंजाब और कश्मीर में बड़ा अंतर है...पंजाब में एक छोटा तबका खालिस्तान के समर्थन में था और कश्मीर में पाकिस्तान परस्त और कट्टर इस्लाम परस्त वर्ग का साथ है... जो सैद्धान्तिक रूप से या तो कश्मीर को भारत से अलग किये जाने को स्वीकारता है या फिर इस्लाम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के तहत वहां इस्लामिक शासन ही चाहता है। लेकिन इसके साथ यह भी समझना जरूरी है कि घाटी में आज तक आतंकवाद को इसीलिए समर्थन मिलता आ रहा है क्योंकि कश्मीरियों के एक बड़े तबके को लगता था कि वो सम्मान से रहने की लड़ाई लड़ रहे हैं, वो बुनियादी इंसानी हक की मांग के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वो अपना राजनीतिक मुस्तकबिल खुद तय करने की राह पर हैं...पर यह सोच आज लगातार धुंधली पड़ती जा रही है।
आज धीरे-धीरे कश्मीरी गलत रास्ते को समझ चुके हैं। आने वाली पीढियों का अंधकारमय भविष्य देख रहे हैं...इसी वजह से स्थानीय लोगों का आतंकियों से दुराव बढ़ रहा है। इसी दूरी की वजह से पंजाब में आतंकवाद खत्म हुआ था। कश्मीरियों की आतंकियों से बढ़ती दूरी साफ बताती है कि कश्मीर में भी आतंकवाद के दिन पूरे हो गए हैं लेकिन इसका मतलब कतई नहीं की यह सहज हो जाएगा...इसकी कीमत तो बतौर बलिदान कश्मीर, कश्मीरियों और भारतवासियों को चुकानी ही पड़ेगी...मोहम्मद अयूब और फैयाज अहमद उसी बलिदान की कड़ी हैं.....!!
(इस ब्लॉग के लेखक शिवाजी राय पत्रकार हैं और देश के नंबर वन हिंदी न्यूज चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं)