भोपाल गैस त्रासदी : तत्कालीन जिलाधिकारी व एसपी को मिली राहत बरकरार
गैस हादसे के समय पदस्थ तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिंह और पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए भोपाल के सीजेएम की अदालत में दायर याचिका पर जबलपुर उच्च न्यायालय ने रोक जारी रखी है।
जबलपुर: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में अब से 33 वर्ष पूर्व हुए गैस हादसे के समय पदस्थ तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिंह और पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए भोपाल के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की अदालत में दायर याचिका पर जबलपुर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आर. के. दुबे ने रोक जारी रखी है। साथ ही निचली अदालत से दस्तावेज तलब किए हैं। सिंह और पुरी के अधिवक्ता ए.पी. सिंह ने संवाददाताओं को गुरुवार को बताया कि भोपाल गैस त्रासदी के दौरान यूनियन कार्बाइड कंपनी के मालिक वारेन एंडरसन को भगाने के आरोप में तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिंह तथा तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी के खिलाफ भोपाल न्यायालय में चल रहे प्रकरण की सुनवाई पर लगाई गई रोक को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आर के दुबे ने बरकरार रखा है। एकलपीठ ने शासकीय अधिवक्ता को निर्देशित किया है कि वह निचली अदालत में दायर की गई शिकायत व दर्ज किए गए बयान से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करें। एकलपीठ ने याचिका पर अगली सुनवाई 10 जनवरी को निर्धारित की है।
भोपाल गैस त्रास्दी के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिंह तथा तत्कालीन पुलिस अधिक्षक स्वराज पुरी की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि दो दिसंबर 1984 की देर रात को यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में हुए रिसाव के कारण 38 सौ से अधिक लोगों की जान चली गई थी और 18 हजार से अधिक लोग घायल हुए थे। इसी तरह करीब 10 हजार लोग विकलांग हो गए थे।
ज्ञात हो कि इस मामले को लेकर भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार और अधिवक्ता शहनवाज खान ने भोपाल के सीजेएम की कोर्ट में परिवाद दायर करके आरोप लगाया था कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के मालिक वारेन एण्डरसन को भगाने में याचिकाकर्ता तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी और तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिंह की अहम भूमिका थी, ऐसे में उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाए।
भोपाल सीजेएम ने 19 नवंबर, 2016 को भादंवि की धारा 212, 217 और 221 के तहत परिवाद दर्ज करने के निर्देश दिए थे। इसके खिलाफ सिंह और पुरी की ओर से उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी। याचिका में आवेदक की तरफ से कहा गया कि हादसे के तीन दशक बाद दायर हुए परिवाद पर निचली अदालत ने संज्ञान लिया है, जो कि गलत है।
याचिका में कहा गया कि यह परिवाद सिर्फ किताब में प्रकाशित अंशों के आधार पर दायर किया गया है। आवेदक सरकार के जिम्मेदार अधिकारी थे और उन पर कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी थी। उच्च न्यायालय ने पूर्व में याचिका की सुनवाई करते हुए भोपाल न्यायालय में दर्ज प्रकरण की सुनवाई पर रोक लगा दी थी।
याचिका पर गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान एकलपीठ ने भोपाल न्यायालय में सुनवाई पर रोक जारी रखने के साथ सरकारी अधिवक्ता राजेश तिवारी को आदेश दिया कि दस्तावेज व दर्ज बयान के दस्तावेज पेश करें। अनावेदकों (जब्बार व शहनवाज) की तरफ से अधिवक्ता ए.उस्मानी उपस्थित हुए।