भोपाल गैस हादसे की बरसी आज, उस रात की यादें आज भी लगती है डरावनी!
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में घटित यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी को भले ही 32 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन उस हादसे की रात यहां के लोगों के लिए अभी भी डरावनी बनी हुई है। उनकी आंखों के सामने सड़कों पर बिखरी लाशें और बदहवास भागती भीड़ की तस्वीर ताजा हो जात
भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में घटित यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी को भले ही 32 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन उस हादसे की रात यहां के लोगों के लिए अभी भी डरावनी बनी हुई है। उनकी आंखों के सामने सड़कों पर बिखरी लाशें और बदहवास भागती भीड़ की तस्वीर ताजा हो जाती है।
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गैस हादसे में अपने पति को गंवा चुकीं महिलाओं के लिए गृह निर्माण मंडल द्वारा बसाई गई विधवा कॉलोनी के नाम से चर्चित बस्ती के निवासी लतीफ उर्फ रहमान (54) दो-तीन दिसंबर, 1984 की रात के दृश्य याद कर आज भी सिहर उठते हैं।
उन्होंने कहा, "उस समय उनका परिवार काजी केंट में रहा करता था। हादसे की रात उनके परिवार के सभी सदस्य सो रहे थे, अचानक उन्हें लगा कि आंखों में जलन हो रही है, दम घुट रहा है, घर से बाहर निकल कर देखा तो डरावना मंजर था।"
रहमान ने कहा, "सड़कों पर लोग बेहोशी की हालत में ऐसे पड़े थे, जैसे पतझड़ के मौसम में पत्ते बिखरे पड़े होते हैं। लोग सड़कों पर भागे जा रहे थे। किसी की गोद में बच्चा था तो कोई बच्चों के हाथ पकड़कर भागे जा रहा था। उस रात कितने लोग मरे होंगे, कोई नहीं जानता। उस रात का मंजर आज भी डरवना बना हुआ है।"
रफीका बी (60) को लगता है कि जैसे हादसा बीती रात की बात हो। उन्होंने कहा कि उनका परिवार उस समय काजी कैंप में रहा करता था। उस रात ऐसा लगा जैसे किसी ने मिर्ची जला दी हो। उस रात को उन्हें और उनके पति को ऐसी बीमारी मिली, जिस वे आज तक ढो रहे हैं।
उन्होंने कहा, "मुझे सांस की बीमारी है, पति को आंखों से कम दिखाई देता है। कहने के लिए तो गैस पीड़ितों के लिए कई अस्पताल हैं, मगर इलाज की कोई सुविधा नहीं मिल रही है।"
शारदा बाई (62) अपने पति और चार बच्चों के साथ शाहजहांनाबाद इलाके में रहा करती थीं, इस हादसे ने उन्हें बीमारियां दी तो उनके जेठ महाराज सिंह को अपना ग्रास बना लिया। वह उस हादसे की रात अब भी भूल नहीं पाई हैं। उन्हें सरकार के इस रवैए से भी नाराजगी है कि उन्हें अपना हक नहीं मिल पाया है।
गैस प्रभावित हादसे की रात इसलिए नहीं भूला पाए हैं, क्योंकि उन्हें जो बीमारियां मिली हैं, उसे वे आज भी भुगत रहे हैं। गैस प्रभावित बस्तियों में पहुंचते ही विकलांग बच्चे, हाफते युवाओं से लेकर बुजुर्गो को देखते ही उनकी स्थिति का अंदाजा लग जाता है।
ज्ञात हो कि दो-तीन दिसंबर, 1984 की रात यूनियन कार्बाइड से रिसी जहरीली गैस से तीन हजार से ज्यादा लोगों की एक सप्ताह के भीतर मौत हुई थी। इस गैस से बीमार हुए लोगों की मौतों का सिलसिला अब भी जारी है। प्रभावित बस्तियों में जन्म लेने वाली नई पीढ़ी भी बीमारियों की जद में आती जा रही है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने कहा, "केंद्र और राज्य सरकारों ने इस हादसे के शिकार लोगों के हित की बात करने के बजाय आरोपी कंपनी का साथ देने की कोशिश की है। यही कारण है कि इस हादसे के प्रभावितों को न तो बेहतर चिकित्सा सुविधा मिल पाई और न ही मुआवजा मिला है।"
जब्बार कहते हैं, "गैस पीड़ितों में बीमारियां बढ़ रही हैं, हादसे के बाद जन्मे लोग भी गैस का दुष्प्रभाव झेल रहे हैं, मगर उन्हें चिकित्सा की सुविधा नहीं मिल रही है।"
'संभावना ट्रस्ट' द्वारा अभी हाल ही में किए गए एक शोध से यह बात सामने आई है कि गैर प्रभावित बस्तियों के मुकाबले भोपाल गैस पीड़ितों की 10 गुना ज्यादा दर से कैंसर की वजह से मौतें हो रही हैं। इनमें खासकर गुर्दे, गले और फेफड़े के कैंसर पीड़ित हैं।
इस शोध से यह बात भी सामने आई है कि गैस प्रभावित बस्तियों के लोगों में क्षयरोग, पक्षाघात व कैंसर कहीं ज्यादा तेजी से पनप रहे हैं।