Bharat Mata Mandir के संस्थापक महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी का निधन, आज दी जाएगी समाधि
भारत माता मंदिर, हरिद्वार के संस्थापक और निवृत्तमान शंकराचार्य महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि (87 साल) का आज मंगलवार सुबह 8:00 बजे के करीब निधन हो गया।
नई दिल्ली। भारत माता मंदिर, हरिद्वार के संस्थापक और निवृत्तमान शंकराचार्य महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि (87 साल) का आज मंगलवार सुबह 8:00 बजे के करीब निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे, उनकी गिनती देश के शीर्ष नेताओं में होती थी। महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद महाराज के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर शोक व्यक्त किया है।
19 सितंबर 1932 को यूपी के आगार में हुआ था जन्म
बता दें कि भारत माता जनहित ट्रस्ट के परमाध्यक्ष भारत माता मंदिर के संस्थापक भानपुरा पीठ के निवर्तमान जगतगुरू शंकराचार्य रानी रंगीली अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद महाराज का निधन उनके आश्रम संत कुटीर ऊपर वाला में हुआ जहां हरिद्वार स्थित भारत माता मंदिर ट्रस्ट के राघव कुटीर में आज बुधवार (26 जून) को उन्हें समाधि दी जाएगी। 19 सिंतबर, 1932 को आगरा में जन्मे स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि के गुरु थे। 3 साल पहले उन्हें भारत सरकार ने पदम विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया था।
कई दिग्गज शीर्ष राजनेताओं से रहे हैं निजी संबंध
बता दें कि स्वामी सत्यमित्रानंद महाराज का देश के शीर्ष राजनेताओं इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, आरएसएस के प्रमुख रहे कई संघचालकों से निजी संबंध थे। राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। भारत माता मंदिर की स्थापना कर उन्होंने देश में समन्वय वादी सोच को नया आयाम दिया। उनके निधन से भारतीय दशनामी संन्यासी परंपरा के एक युग का अंत हो गया है।
26 वर्ष की आयु में मिल गया था जगद्गुरु शंकराचार्य का पद
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने 1983 में हरिद्वार में भारत माता मंदिर की स्थापना की थी। 65 से अधिक देशों की यात्रा की थी। 29 अप्रैल 1960 अक्षय तृतीया के दिन 26 वर्ष की आयु में ज्योतिर्मठ भानपुरा पीठ पर जगद्गुरु शंकराचार्य पद पर उन्हें प्रतिष्ठित किया गया। भानपुरा पीठ के शंकराचार्य के तौर पर करीब नौ वर्षों तक धर्म और मानव सेवा करने के बाद उन्होंने 1969 में स्वयं को शंकराचार्य पद से मुक्त कर लिया था। बता दें कि मधुर भाषी ओजस्वी वक्ता स्वामी सत्यमित्रानंद महाराज कि भारत ही नहीं बल्कि कई देशों के राष्ट्र अध्यक्षों से भी अच्छे रिश्ते थे और उनका सभी धर्मों के धर्माचार्य समान रूप से सम्मान करते थे।
स्वामी जी की बाल्यकाल से आध्यात्म में रुचि थी
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का परिवार मूलत: सीतापुर (उत्तर प्रदेश) का निवासी था। बाल्यकाल से ही संन्यास और अध्यात्म में रुचि के चलते उन्होंने सांसारिक जीवन से बहुत कम उम्र में ही संन्यास ले लिया था। संन्यास से पहले वे अंबिका प्रसाद पांडेय के नाम से जाने जाते थे। उनके पिता शिवशंकर पांडेय को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।