नयी दिल्ली: उच्च्तम न्यायालय ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस प्रकरण में सोमवार को लखनऊ की एक अदालत से जानना चाहा कि वह भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती से संबंधित मुकदमे की सुनवाई किस तरह अप्रैल, 2019 की समय सीमा के भीतर पूरी करना चाहती है। न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने निचली अदालत के न्यायाधीश एस के यादव की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से भी जवाब मांगा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस न्यायाधीश की पदोन्नति पर इस आधार पर रोक लगा दी थी कि शीर्ष अदालत ने उन्हें मुकदमे की सुनवाई पूरा करने का निर्देश दिया है। (भारत बंद के चलते बिहार में 2 साल की बच्ची की मौत, BJP ने साधा कांग्रेस पर निशाना )
न्यायालय ने सीलबंद लिफाफे में यह रिपोर्ट मांगी है। शीर्ष अदालत ने 19 अप्रैल, 2017 को कहा था कि भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी, जोशी और उमा भारती पर 1992 के राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आपराधिक साजिश के गंभीर आरोप में मुकदमा चलेगा और रोजाना सुनवाई करके इसकी कार्यवाही 19 अप्रैल, 2019 तक पूरी की जायेगी। शीर्ष अदालत ने मध्यकालीन स्मारक को विध्वंस करने की कार्रवाई को ‘अपराध’ बताते हुये कहा था कि इसने संविधान के ‘धर्मनिरपेक्ष ताने बाने’ को हिला कर रख दिया।
इसके साथ ही न्यायालय ने भाजपा के इन वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप बहाल करने का जांच ब्यूरो का अनुरोध स्वीकार कर लिया था। अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे के विध्वंस की घटना से संबंधित दो मुकदमे हैं। पहले मुकदमे में अज्ञात ‘कारेसवकों’ के नाम हैं जबकि दूसरे मुकदमे में भाजपा नेताओं पर मुकदमा चल रहा है।
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