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BLOG: भारत-चीन ने कैसे निकाला डोकलाम विवाद का हल?

सितंबर का महीना शुरू होने से पहले ही भारत और चीन ने डोकलाम मसला हल कर लिया है। सिक्किम सीमा के पास 70 दिन तक भारत और चीन के सैनिक आंखों में आंखे डालकर आमने-सामने खड़े रहे। लेकिन बगैर एक भी गोली चलाए दोनों देशों ने गतिरोध को ख़त्म कर लिया

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सितंबर का महीना शुरू होने से पहले ही भारत और चीन ने डोकलाम मसला हल कर लिया है। सिक्किम सीमा के पास 70 दिन तक भारत और चीन के सैनिक आंखों में आंखे डालकर आमने-सामने खड़े रहे। लेकिन बगैर एक भी गोली चलाए दोनों देशों ने गतिरोध को ख़त्म कर लिया। और ये सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन दौरे से ठीक पहले हुआ। पीएम मोदी 3 से 5 सितंबर तक चीन के दौरे पर रहेंगे। चीन के शियामेन शहर में ब्रिक्स देशों का सम्मेलन हो रहा है। जहां भारत और चीन के अलावा रूस, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होंगे।

पीएम मोदी का चीन दौरा जिस वक्त और जिस हालात में हो रहा है वो बेहद अहम है। दरअसल 24 साल पहले सितंबर के महीने में ही भारत और चीन के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ था। इस शांति समझौते पर 7 सितंबर 1993 को दस्तख़त किए गए थे। ये समझौता भारत-चीन के बीच 1987 के गतिरोध के बाद अमल में लाया गया था। 1987 में चीन के सैनिक अरुणाचल प्रदेश के समडोरोंग चो घाटी में घुस आए थे। जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी उनके सामने मोर्चा खोला दिया। ये गतिरोध लंबे समय तक चला। आखिरकार 1988 में तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बीजिंग का दौरा किया और तब जाकर हालात धीरे-धीरे सामान्य हुए।

इसके बाद 1993 में नरसिम्हा राव सरकार ने भारत-चीन के बीच शांति समझौता किया। जिसे आधार मानते हुए पिछले 24 साल से दोनों देश सीमा विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से निपटारा करते आ रहे है। इस समझौते में लिखा है कि दोनों देश बिना ताकत का इस्तेमाल किए सीमा से जुड़े हर विवाद का शांतिपूर्ण ढंग से हल निकालेंगे। इसका सबसे ताज़ा उदाहरण देखने को मिला लद्दाख में जहां के पेंगॉन्ग लेक के पास सीमा पर भारत-चीन के सैनिक आपस में भीड़ गए और एक-दूसरे पर पत्थरबाजी भी की। ये घटना 15 अगस्त की है। हालांकि अगले ही दिन यानी 16 अगस्त को दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों ने बैठक की और मामले को बातचीत से सुलझा लिया।

1993 का शांति समझौता ऐसे ही मुद्दों के निपटारे में काफी कारगर साबित होता है। हालांकि तारीफ करनी होगी दोनों देशों के नेताओं की जो समझौते का सम्मान करते हुए विवादों को बातचीत से निपटाने की हर संभव कोशिश करते हैं। हालांकि चीन कई बार ताकत के बल पर सीमा पर हालात बदलने की कोशिश करता है लेकिन अब भारत ने उसे उसकी ही जबान में जवाब देना शुरू कर दिया है।

डोकलाम में जो भारत ने किया वो न्यू इंडिया का एक बेहतरीन उदाहरण है। एक विवादित इलाके को जबरन अपना इलाका बनाने की जो कोशिश चीन ने की उसका उचित जवाब भारत ने दिया। डोकलाम मसला हल करने में भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल, विदेश मंत्रालय और आर्मी चीफ ने अहम भूमिका निभाई। हालांकि इसके पीछे पीएम मोदी को पूरा समर्थन रहा है। डोकलाम से भारतीय सेना का पीछे हटना चीन अपनी जीत मान रहा है लेकिन भारत ने पहले ही कहा था कि डोकलाम में 15 जून वाली स्थिति बरकरार रखी जाए और चीन वहां सड़क निर्माण का काम रोक दे। आखिरकार चीन को यही करना पड़ा तब जाकर दोनों देशों के बीच सहमति बनी। विदेश मामलों के जानकार इसे भारतीय कुटनीति की बड़ी जीत मान रहे हैं। डोकलाम के मुद्दे पर भारत ने जो रुख अख्तियार किया उससे चीन को साफ संदेश गया है कि भारत अब उसकी धमकियों से डरने वाला नहीं।

डोकलाम के मुद्दों को निपटाने का भारत से ज़्यादा चीन पर दबाव था। चीन पर एक तो अंतरराष्ट्रीय दबाव था और दूसरा ब्रिक्स सम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन। जापान का खुलकर भारत का समर्थन करना और चीन के साथ किसी भी देशा का न आना अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का साफ संदेश था। दूसरी तरफ पीएम मोदी ऐसा संकेत दे चुके थे कि अगर डोकलाम का मसला हल न हुआ तो वो चीन यात्रा रद्द कर सकते हैं। पीएम मोदी के बिना ब्रिक्स सम्मेलन का सफल होना मुमकिन नहीं था। ऐसे में चीन को भारत की बात माननी पड़ी और दोनों देशों ने सेना पीछे हटाने का फैसला किया। अब पीएम मोदी जब चीन जाएंगे तो उम्मीद की जा रही है कि दोनों देश विवादों को शांतिपूर्ण तरीके सुलझाने के साथ-साथ आर्थिक रिश्तों को और मजबूत करने पर चर्चा करेंगे।

(ब्‍लॉग लेखक अमित पालित देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्‍यूज एंकर हैं) 

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