साल 2008, भारतीय संसद का मॉनसून सत्र चल रहा था, संद में भाजपा के तीन सांसद नोटों से भरे दो बैठ लेकर पहुंचे और बीच सत्र के दौरान उन्होंने नोटों के बंडल उठाकर लहराने शुरू कर दिए। उन्होंने अमर सिंह पर दलबदल को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। कहा जाता है कि ये सबकुछ केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार को बचाने के लिए किया गया।
दरअसल साल 2004 में केंद्र की सत्ता में काबिज हुई मनमोहन सिंह सरकार को समाजवादी पार्टी का सहारा मिला था। कई बार जब मनमोहन सिंह सरकार को फैसले लेने में संकट महसूस हुआ तो समाजवादी पार्टी ने बड़ी भूमिका निभाई। राजनीतिक जानकारों की मानें तो साल 2008 में संसद के मॉनसून सत्र में हुए 'कैश फॉर वोट' कांड में भी अमर सिंह की बड़ी भूमिका रही। ये विवाद सिविल न्यूक्लियर डील पर संसद में चर्चा के दौरान हुआ। बाद में अमर सिंह को इन आरोपों से बरी कर दिया गया था।
कभी मुलायम के बेहद खास थे अमर सिंह
यूपी की सियासत में एक दौर ऐसा भी था जब अमर सिंह सपा में नंबर दो की हैसियत रखते थे। उन्हें मुलायम सिंह यादव का सबसे नजदीकी व्यक्ति कहा जाता था। अमर सिंह पार्टी के लिए बेहद अहम हो गए थे। पार्टी के लिए प्रत्याशी तय करने से लेकर प्रचार के लिए बालीवुड कलाकारों के इंतजाम और फंडिंग की व्यवस्था सब अमर सिंह के जिम्मे होती थी। राजनीतिक जानकारों की मानें तो मुलायम सिंह यादव का कोई भी काम बिना अमर सिंह के पूछे नहीं होता था।
कार्यशैली से दिग्गज हुए नाराज
अमर सिंह के काम करने का तरीका बिलकुल अलग था। मुलायम सिंह यादव को ये रास भी आ रहा था, लेकिन इसी दौरान पार्टी के अन्य बड़े नेताओं की नाराजगी बढ़ती ही जा रही थी। आजम खान और बेनी प्रसाद जैसे सपा के बड़े नेता खुलकर अमर सिंह के खिलाफ बयानबाजी करने लगे थे। जिसकी वजह से मुलायम सिंह को साल 2010 में अमर सिंह को पार्टी से निकालना पड़ा।
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