जयंती स्पेशल: देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारे में जानिए जरूरी बातें, मिलेगी प्रेरणा
देश के पहले राष्ट्रपति के तौर पर डॉ राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक रहा। आज उनकी जयंती, तो चलिए उनसे जुड़ी कुछ बातें जानतें हैं।
भारत को आजाद हुए ढाई साल बीत चुके थे। हिंदुस्तान में स्वतंत्र तौर पर नई हुकूमत का उदय हुआ था। गुलामी से उभरकर भारत अपने अस्तित्व को नए छोर से तो तलाश ही रहा था साथ ही नए कायदे-कानून, नियम बनाए जा रहे थे। भारत में कायदे-कानून और नियमों का मतलब भारतीय संविधान है। और, डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। लेकिन, भविष्य को उनसे ज्यादा की उम्मीद थी।
26 जनवरी 1950 को जब देश में संविधान लागू हुआ तभी देश को उसका पहला राष्ट्रपति भी मिला, डॉ राजेंद्र प्रसाद। राजेंद्र प्रसाद जैसी लोकप्रियता वाले नेताओं उस वक्त उंगलियों पर गिना जा सकता है। प्सार से उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न से संबोधित किया जाता। कहा जाता है उन्होंने सरकार को राष्ट्रपति पद के बीच ऐसा रास्ता साध लिया था कि वो जब तक राष्ट्रपति के पद पर रहे उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया।
उनकी कर्मठता और कार्य प्रेम को लेकर कहा जाता है कि भारतीय संविधान के लागू होने और उनके राष्ट्रपति पद संभालने से एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया था। लेकिन, उन्होंने बहन के दाह संस्कार को छोड़कर भारतीय गणराज्य के स्थापना समारोह में शामिल होने का फैसला किया, वो अपनी बहन के दाह संस्कार में नहीं गए थे।
12 साल तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने वाले राजेंद्र प्रसाद ने 1962 में अपने छुट्टी की घोषणा की थी। तभी उनकी पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया। इसके बाद प्रसाद भी ज्यादा दिन लोगों के बीच नहीं रहे। 28 फरवरी 1963 को उन्होंने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन, इससे पहले देश के सामने कई मिसालें परोस गए। राष्ट्रपति के रूप में मिलने वाले वेतन का आधा हिस्सा वो राष्ट्रीय कोष में दान कर देते थे।
आज उनकी जयंती है। बिना उनके जन्म का जिक्र किए बात पूरी नहीं हो सकती है। दिल्ली में राष्ट्रपति भवन तक का सफर तय करने वाले प्रसाद का जन्म बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई बिहार में ही हुई लेकिन फिर कोलकाता का रुख कर आगे की पढ़ाई वहीं की। उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की है। उस वक्त भारत के ज्यादातक लोगों की तरह वो भी गांधी जी से प्रभावित थे। उन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।