प्रदूषण कम करना नेताओं के बस की बात नहीं! सियासी फायदे के लिए होने दिया जा रहा पर्यावरण को नुकसान
किसानों का बड़ा वोट बैंक है, जो किसी भी नेता को कोई ठोस कदम लेने से रोकता है। पराली जलाने वालों के खिलाफ दिखाने के लिए मामले तो दर्ज किए जाते हैं लेकिन सियासत में होने वाले नुकसान को न होने देने के लिए पर्यावरण को नुकसान होने दिया जाता है।
नई दिल्ली. दीपावली त्योहार के साथ ही पूरे उत्तर भारत में वायु गुणवत्ता बहुत खराब हो गई है। ये ऐसे नहीं है कि सिर्फ दीपावली पर जलाए गए पटाखों की वजह से हवा में प्रदूषण बढ़ गया है। राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत के तमाम शहरों में हवा का पहले से ही बुरा हाल था लेकिन दीपावली पर जलाए गए पटाखों ने इसमें इजाफा ही किया। अब हालात ये हैं कि अगर तेज हवा न चले या फिर बारिश न हो तो वायु गुणवत्ता ऐसे ही खराब रहेगी और दिल्ली समेत आसपास के तमाम शहर गैस चैंबर बने रहेंगे।
आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त सियासी दल
दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में दीपावली के बाद और ज्यादा गंभीर हुई वायु प्रदूषण को लेकर सियासी दल आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त हैं। आम आदमी पार्टी का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी ने लोगों को पटाखे फोड़ने के लिए उकसाया है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पटाखे फोड़ने को धर्म से जोड़कर लोगों को इस पर प्रतिबंध का उल्लंघन करने के लिए उकसाया। राय ने कहा कि राजधानी की वायु गुणवत्ता पराली जलाने की घटनाओं और प्रतिबंध के बावजूद कुछ लोगों द्वारा दीपावली पर पटाखे फोड़ने के कारण खराब हुई है।
वहीं दूसरी तरफ भाजपा का कहना है कि अरविंद केजरीवाल सरकार वायु प्रदूषण को काबू करने में नाकाम रही है। भाजपा के आईटी विभाग के राष्ट्रीय प्रभारी अमित मालवीय ने कहा कि राय दिल्ली में ''खतरनाक'' वायु गुणवत्ता की पृष्ठभूमि में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अच्छा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। मालवीय ने ट्वीट किया, ''पटाखे जलाए जाने से पहले ही दिल्ली का एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका था। अन्यथा सुझाव दे रहे लोग अरविंद केजरीवाल को अच्छा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं, जिन्होंने दिल्ली वालों को पटाखे जलाने से रोकने के लिए एक द्वेषपूर्ण अभियान चलाया था।''
पटाखों और पराली का वायु प्रदूषण में कितना हिस्सा
सरकारी वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान एजेंसी ‘सफर’ के अनुसार शुक्रवार को दिल्ली के पीएम 2.5 प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान 36 प्रतिशत रहा, जो इस मौसम में अब तक का सबसे अधिक उत्सर्जन है। पिछले साल, दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी पांच नवंबर को 42 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। वर्ष 2019 में एक नवंबर को दिल्ली के पीएम 2.5 प्रदूषण में पराली के प्रदूषण का हिस्सा 44 प्रतिशत था। दिल्ली के पीएम 2.5 प्रदूषण में पराली जलाने से हुए उत्सर्जन की हिस्सेदारी पिछले साल दिवाली पर 32 प्रतिशत थी, जबकि 2019 में यह 19 प्रतिशत थी।
पराली जलाने वालों पर सख्त नहीं पंजाब-हरियाणा और यूपी सरकार!
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पहले ही पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ मामले वापस ले चुकी है। पंजाब में भी पराली जलाने के बड़ी संख्या में मामले सामने आ रहे हैं, वहां की सरकार भी इसको लेकर कुछ खास गंभीर मालूम नहीं पड़ती है। पंजाब-हरियाणा में दीपावली से पहले भी कई जगहों से पराली जलाने की खबरें सामने आईं। इसकी एक वजह किसानों का बड़ा वोट बैंक है, जो किसी भी नेता को कोई ठोस कदम लेने से रोकता है। पराली जलाने वालों के खिलाफ दिखाने के लिए मामले तो दर्ज किए जाते हैं लेकिन सियासत में होने वाले नुकसान को न होने देने के लिए पर्यावरण को नुकसान होने दिया जाता है।
पटाखों पर बैन के बावजूद बिक्री कैसे?
दिल्ली की सरकार लगातार अपने देहात क्षेत्र में पराली जलाने पर पूरी तरह काबू पान के दावे कर रही है। केजरीवाल सरकार बकायदा विज्ञापन के जरिए इसका क्रेडिट ले रही है लेकिन इसके ठीक उलट उनकी नाक के नीचे राजधानी में पटाखों का कारोबार जारी है। इस दीपावली पर भी दिल्ली की हर गली-हर मोहल्ले में पटाखे आसानी से उपलब्ध थे इतना ही नहीं बड़ी तादाद में पटाखे दिल्ली के जरिए ही आसपास के राज्यों में पहुंचते हैं। ऐसे में सिर्फ दूसरे राज्यों और दलों को ठहराने से अपनी जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
विशेषज्ञों का कहना है कि पटाखों पर रोक के प्रति घोर अनादर की वजह से राष्ट्रीय राजधानी में दिवाली त्योहार के सप्ताह में गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है। दिल्लीवालों को शुक्रवार को भारी वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि हरित दिवाली मनाने को लेकर समझ का अभाव इसके बड़े कारणों में एक है क्योंकि लोग मानते हैं कि त्योहार और पटाखे एक दूसरे के पूरक हैं। इंटीग्रेटेड हेल्थ ऐंड वेलबिइंग काउंसिल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कमल नारायण ने कहा कि कई लोग वायु प्रदूषण की परवाह नहीं करते हैं और मानते हैं कि पटाखों के बिना दिवाली नहीं हो सकती है। यह सोच बदलने की जरूरत है और राज्य सरकार को पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल रोकने के लिए कदम उठाने की जरूरत है।
अन्य कारणों से भी इंकार नहीं किया जा सकता
विशेषज्ञों ने हालांकि माना कि इस मौसम में प्रदूषण के अन्य कारकों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कमल नारायण का कहना है कि 80 प्रतिशत प्रदूषण मौसम, वायुमंडल की स्थिति और वाहनों आदि से होने वाले उत्सर्जन पर निर्भर करता है। प्रदूषण में 20 प्रतिशत योगदान पराली और पटाखे फोड़ने से है। इसलिए हमें अपना आधार पहले कम करना चाहिए। स्काईमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन के उपाध्यक्ष महेश पालावत ने तापमान में गिरावट और हवा की गति में आई कमी को शहर के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया