A
Hindi News भारत राष्ट्रीय AIIMS ने बनाया कीर्तिमान, हार्ट ट्रांसप्लांट में पूरा किया अर्धशतक

AIIMS ने बनाया कीर्तिमान, हार्ट ट्रांसप्लांट में पूरा किया अर्धशतक

नई दिल्ली: एम्स अस्पताल ने हार्ट ट्रांस्प्लांट में अपना अर्धशतक पूरा कर लिया है। एक वक्त था जब दिल की बिमारी उम्रदराज लोगों में होने वाली बीमारी मानी जाती थी। लेकिन बदलते वक्त के साथ

aiims heart transplant- India TV Hindi aiims heart transplant

नई दिल्ली: एम्स अस्पताल ने हार्ट ट्रांस्प्लांट में अपना अर्धशतक पूरा कर लिया है। एक वक्त था जब दिल की बिमारी उम्रदराज लोगों में होने वाली बीमारी मानी जाती थी। लेकिन बदलते वक्त के साथ अब ये युवाओं से लेकर बूढों तक को अपने काल में घेर रही है।

(देश-विदेश की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें)

एक वक्त था कि जब हार्ट को दान करने वाले आसानी से नहीं मिलते थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल की बात के कार्यक्रम मे अंग दान करने की लोगों से जो अपील की है। उसका अब रंग दिखने लगा है। ‘दिल दे के देखों दिल दे के’ इस गाने के बोल भले ही आप को फिल्मी लगे पर इन शब्दो के पीछे छिपे  भाव सही है।

एक शोध के मुतबिक हमारे देश में हर साल लगभग 5 हजार मरीजों के दिल बदलने की जरुरत पड़ती है। लेकिन सिर्फ 300 से 500 मरीजो के दिल फिर धड़क पाते है। बाकि के मरीज के दिल या तो दवाईयों के जरिए धड़कते या फिर उनकी धड़कन बंद हो जाती है। एम्स के डारेक्टर एम सी मिश्रा का कहना है जब से पीएम मोदी ने अपने मन की बात के कार्यक्रम में लोगों से अंग दान करने के अपिल की है उसके बाद से काफी संख्या में लोग अंग दान करने के लिए आगे आ रहे है।

डॉक्टर के मुताबिक जिन मरीजों के दिल वक्त पर नही बदल जाते उसके पीछे कई वजह मानते है-

  • अंगों का दान करने वालों लोगों की खासी कमी के साथ हर सरकारी अस्पताल में इस का इलाज संभव नहीं है।
  • कई बार मरीज मंहगे खर्च के साथ परिवारिक कारणों के चलते दिल बदलवानें में आऩा कानी करता है।
  • कई बार तो अंग दान करने वाला भी मिल जाता और मरीज इलाज का खर्च भी उठा लेता है पर वक्त पर वो अस्पताल नहीं पहुंचता ऐसे में 6 घंटे से ज्यादा हार्ट को संभाल पाना मुश्किल हो जाता है।

प्रो बलराम सर्जन कॉड्रोलोजी जरुरी इस बात को लेकर है कि सही समय पर मरीज को हार्ट मिले ताकि समय रहते हम इसे ट्रांसप्लांट कर पाएं। हार्ट ब्लॉकेज में इंसान की धड़कन सही से काम करना बंद कर देती हैं। इस दौरान धड़कन रूक-रूक कर चलती है। कुछ लोगों मे यह बीमारी पैदाइशी होती है जबकि कुछ लोगों को नशा करने से होती है। डॉक्टर के मुताबिक जन्मजात ब्लॉकेज की समस्या को कोनगेनिटल हार्ट ब्लॉकेज कहते है। जबकि युवा या फिर बुर्जेगों में होने वाली इस बीमारी को एक्वायर्ड हार्ट ब्लॉकेज कहते हैं।

आधुनिक रहन-सहन और खाने-पीने की आदतों के चलते ज्यादातर लोगों में हार्ट ब्लॉकेज की समस्या होना आम है। हार्ट ब्लॉकेज को चैक करने के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम टेस्ट किया जाता है। डॉक्टर्स की माने तो हार्ट ट्रास्पलॉट करवाने के बाद मरीज को एक साल तक बड़ी सावधानी से रहना होता है। एक साल के बाद खतरा कम होने के साथ मरीज अपनी बाकी की जिंदगी आसानी से जी सकता है।

डॉ संदीप सेठ कॉड्रोलोजी डिपार्टमेंट में हार्ट ट्रांसप्लांट के मरीजों का कोर्डिनेशन देखते हैं साथ ही कब किसका ट्रांसप्लांट होना है ये भी तय करते हैं। उनके मुताबिक जागरुकता काफी जरुरी है खासकर ट्रांसप्लांट से पहले और बाद मैं ताकि मरीज ज्यादा सुरक्षित रहे। एम्स ने भले ही हार्ट ट्रास्प्लांट में अपना अर्धशतक लगा लिया हो। जितनी तेजी के साथ हार्ट के मरीजो की संख्या बढ़ रही है। सवाल तो उससे निपटने के लिए है कि आखिर इस बढ़ती बिमारी से कैसे निपटा जाए।

Latest India News