घर लौटने को बेताब प्रवासियों की निगाहें अब अपने-अपने प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की ओर
लॉकडाउन के कारण फंसे और किसी तरह अपना गुजारा कर रहे 23 वर्षीय आमिर सोहेल को अब बस घर जाना है, अपने बेटे को गले लगाना है और घर के आंगन में चारपाई डालकर सुख से सोना है, अब उसका मन नहीं लग रहा है।
नयी दिल्ली: लॉकडाउन के कारण फंसे और किसी तरह अपना गुजारा कर रहे 23 वर्षीय आमिर सोहेल को अब बस घर जाना है, अपने बेटे को गले लगाना है और घर के आंगन में चारपाई डालकर सुख से सोना है, अब उसका मन नहीं लग रहा है। बिहार में मुजफ्फरपुर के रहने वाले सोहेल को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों के बाद अब उस बस का इंतजार है, जो उन्हें अपने घर, अपनों तक ले जाएगी।
गुजरात के सूरत में पेशे से दर्जी का काम करने वाला सोहेल पिछले 40 दिन से खाने और खुद को जिंदा रखने की कोशिश करते-करते थक चुका है, अब बस उसे अपनी सरकार की उस बस का इंतजार है जो उसे सूरत से मुजफ्फरपुर ले जाएगी। उसने फोन पर पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘मैं अब बस घर जाना चाहता हूं। हम यहां संघर्ष कर रहे हैं। बड़ी मुश्किल से खाना मिल रहा है। मैं सोचता रहता हूं कि, दूसरों की तरह मुझे भी घर लौटने की कोशिश करनी चाहिए थी। लेकिन अगर मैं मर जाता तो, मेरे परिवार का क्या होता। अब बस मुझे मेरे बेटे के पास जाना है। उसे सीने से लगाना है।’’
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने बुधवार को जारी ताजा दिशा-निर्देशों में लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी कामगारों, छात्रों, पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को सशर्त अपने-अपने घर जाने की अनुमति दी है। आदेश के अनुसार, ये लोग सिर्फ बसों में ही यात्रा कर सकेंगे और इसके लिए गृह राज्य तथा जिस राज्य में व्यक्ति फंसा हुआ है, दोनों के बीच आपसी सहमति होना आवश्यक है। घर लौटने के इच्छुक सभी लोगों की बस में बैठने से पहले और गंतव्य पर पहुंचने के बाद जांच की जाएगी तथा अन्य सुरक्षा निर्देशों का भी कड़ाई से पालन किया जाएगा।
कुछ ऐसे ही हालात राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के यमुना स्पोर्टस कॉम्पलेक्स में रह रहे करीब 1,000 प्रवासी कामगारों का भी है। दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन के दौरान यहां करीब 1,000 प्रवासी कामगारों को रखा हुआ है, उन्हें भोजन के साथ अन्य सुविधाएं भी मिल रही हैं, लेकिन अब किसी को यहां नहीं रहना, सभी को बस घर जाना है। गृहमंत्रालय के ताजा निर्देशों के बाद इन कामगारों के मन में कुछ आशा जागी थी और उनमें से कुछ अपना-अपना आधार कार्ड लेकर आज दोपहर के भोजन के बाद वहां मौजूद अधिकारी के पास पहुंच गए। उन्हें लगा कि शायद आधार कार्ड दिखाने के बाद उन्हें घर जाने की अनुमति मिल जाएगी। लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी। अधिकारियों ने बताया कि सिर्फ उन्हीं को जाने की अनुमति है जिनके पास दिल्ली का पता होने का प्रमाण है और उन्हें भी सत्यापन के बाद जाने दिया जा रहा है।
इसी कॉम्पलेक्स में बाकि लोगों के साथ रह रहे 19 वर्षीय मन्नू और उसके मित्र सतीश का कहना है, ‘‘मैंने सुना कि आधार कार्ड दिखाने के बाद कुछ लोगों को जाने की अनुमति मिल गई। इसलिए हमने सोचा कि हम भी घर जा सकते हैं।’’ कुमार ने कहा,‘‘यहां हमारे पास सुविधाएं हैं। लेकिन अब हम घर, अपने परिवार के पास जाना चाहते हैं। हमारे पास ना तो कोई काम है और ना हीं पैसा।’’ उत्तर प्रदेश में बहराइच के रहने वाले मन्नू और सतीश हरियाणा में एक विनिर्माण स्थल पर काम कर रहे थे। दोनों ने घर लौटने के लिए नयी सायकिल भी खरीद ली थी, लेकिन रास्ते में पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और 27 अप्रैल को यहां ले आयी।
इन कामगारों के बारे में बात करने पर यमुना स्पोर्टस कॉम्पलेक्स (आश्रय गृह) के कार्यकारी मजिस्ट्रेट सोहन लाल ने कहा, ‘‘अभी तक हमने उन्हें केन्द्रीय गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के बारे में नहीं बताया है क्योंकि हमें अभी तक इस संबंध में कोई निर्देश नहीं मिला है।’’ उनका कहना है कि जब तक चीजें स्पष्ट नहीं हो जाती हम इन लोगों को सूचना देकर, इनमें आशा नहीं जगाना चाहते हैं, और फिर उनमें बेचैनी पैदा होने का भी डर है।
वहीं, महाराष्ट्र के नागपुर में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले सुमन ने फैसला किया था कि वह पैदल ही अपने घर मध्यप्रदेश के मेघनगर लौट जाएंगे, लेकिन उसके साथ के लोगों ने उसे रोक लिया। सभी को सूचना मिली थी कि पुलिस पैदल घर जा रहे लोगों को हिरासत में ले रही है। सुमन ने बताया, ‘‘मैं पैदल घर जाने को तैयार था। मैं भोजन और अन्य सामान्य चीजों के लिए इंतजार करते-करते थक गया हूं। जब हम कमाते थे, फिर चाहे वह थोड़ा ही क्यों नहीं था, हम अपनी शर्तों पर जीते थे। अब हमें हर चीज के लिए मांगना पड़ता है। अब जब बसें आएंगी, तो मैं सबसे पहले उससे जाना चाहता हूं। वैसे तो मैं सात महीने से यहां हूं, लेकिन पहले कभी घर की इतनी याद नहीं आयी।’’ 22 वर्षीय कामगार ने बताया, ‘‘लॉकडाउन की इस अनिश्चितता के कारण मुझे अपने घर की बहुत याद आती है। घर जाकर मैं सबसे पहले मां के हाथ का बना हुआ खाना खाना चाहता हूं।’’
इन प्रवासी मजदूरों को घर कैसे लाया जाए या भेजा जाए, इसकी रूपरेखा अगले कुछ दिन में तय होगी, लेकिन घर वापसी को बेकल ये मजदूर चाहते हैं कि उनका नाम उस सूची में जरूर शामिल हो, जिन्हें सरकार घर लेकर जाएगी। लॉकडाउन के कारण 21 अन्य लोगों के साथ मंगलोर में फंसे बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के ही 34 वर्षीय रामनाथ ने बताया, ‘‘हमें बताया गया है कि इसके लिए पास की जरुरत होगी। मुझे पास कहां से मिलेगा? क्या आप मुझे बता सकती हैं? मैं घर जाने का यह अवसर गंवाना नहीं चाहता।’’ दो बच्चों के पिता रामनाथ का कहना है कि अगर उन्हें गांव जाकर वहां कोई काम मिल जाता है तो वह फिर कभी वापस नहीं आना चाहेंगे। नागपुर में फंसे उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के रहने वाले 23 वर्षीय अविनाश कुमार का कहना है, ‘‘हमने टीवी पर देखा कि हमारे मुख्यमंत्री हमें वापस ले जाने में मदद करेंगे। आशा करता हूं कि वे जल्दी ही कुछ करेंगे। मैं बस जाना चाहता हूं, फिर वो मुझे कैसे भी ले जाएं, बस, ट्रेन या कार, कैसे भी। मैं बस जाना चाहता हूं। यहां ना तो खाना है और न ही पैसे बचे हैं।’’