नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार जम्मू कश्मीर में फिर बड़ा कदम उठा सकती है। जमात-ए-इस्लामी को बैन करने के बाद हुर्रियत पर भी बैन लगा सकती है। सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि मोदी सरकार हुर्रियत को बैन करने पर विचार कर रही है। गौरतलब है कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद पिछले दिनों सरकार ने यासीन मलिक, गिलानी समेत 18 अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली थी।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने घाटी के 18 हुर्रियत नेताओं और 160 राजनीतिज्ञों को दी गई सुरक्षा वापस ली है। इसके साथ ही 160 से ज्यादा राजनीतिज्ञों का सुरक्षा कवच भी छीन लिया गया है। इससे पहले केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया था। केंद्र सरकार ने जमात-ए-इस्लामी पर 5 साल के प्रतिबंध की घोषणा की।
मंत्रालय ने अपनी अधिसूचना में यह कहा है कि जमात-ए-इस्लामी ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है जो कि आंतरिक सुरक्षा और लोक व्यवस्था के लिए खतरा हैं। ऐसे में केंद्र सरकार इसे एक कानून विरूद्ध संगठन घोषित करती है। जमात-ए-इस्लामी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों को कश्मीर घाटी में बड़े स्तर पर फंडिंग करता था। ऐसी तमाम जानकारियों के बाद गृह मंत्रालय ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक के बाद जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया।
क्या है हुर्रियत कांफ्रेंस
13 जुलाई 1993 को कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को राजनीतिक रंग देने के मकसद से ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस (एपीएससी) का गठन हुआ था। यह संगठन उन तमाम पार्टियों का एक समूह था, जिसने 1987 में हुए चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन के खिलाफ आए थे। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस मुख्यत: जम्मू-कश्मीर में चरमपंथी संगठनों से संघर्ष कर रही भारतीय सेना की भूमिका पर सवाल उठाने के अलावा मानवाधिकार की बात करती है।
यह गठबंधन भारतीय सेना की कार्रवाई को सरकारी आतंकवाद का नाम देती है। 15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के समारोहों का बहिष्कार भी करती आई है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने अभी तक एक भी विधानसभा या लोकसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ख़ुद को कश्मीरी जनता का असली प्रतिनिधि बताती है।
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