नई दिल्ली: डीडीए फ्लैट पाने का एक परिवार का 39 साल का इंतजार जल्द ही खत्म होने वाला है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विकास प्राधिकरण के रवैये की आलोचना करते हुए उसे तुरंत फ्लैट का कब्जा देने को कहा है। अदालत ने परिवार का फ्लैट आवंटन रद्द करने करने को गैरकानूनी तथा विधि के विरूद्ध बताते हुए कहा कि इस मुकदमें में स्पष्ट हुआ है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) रेकॉर्ड संभल कर रखने में असफल रहा है।
दिल्ली निवासी जे . सी . मदान में 1979 में एमआईजी फ्लैट के लिए आवेदन किया था , जिसके आवंटन में उसे सफलता मिली। लेकिन 1984 में मदान की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी और बेटा इस फ्लैट का कब्जा पाने के लिए डीडीए के साथ लगातार संपर्क में रहे। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम . सिंह ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता 1 (पत्नी कौशल्या) के पति और याचिकाकर्ता 2 के पिता का आवेदन 1979 का है। आवेदन को 39 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है। दस्तावेज डीडीए जैसे प्राधिकरणों के लापरवाह रवैये के बारे में बहुत कुछ कहते हैं। अदालत ने इस मामले में मदान की पत्नी कौशल्या के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि डीडीए 10.16 लाख रुपये का भुगतान लेकर 31 जुलाई तक द्वारका सेक्टर 13 में उन्हें फ्लैट का कब्जा दे।
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