नई दिल्ली: अफगानिस्तान की स्थिति पर भारत सरकार करीबी नजर बनाए हुए है। हालांकि, भारत सरकार वहां से बाहर निकलने वाले लोगों को ई-विजा की सुविधा दे रही है। ऐसे में भारत आने के लिए तकरीबन 1650 नागरिकों ने अनुरोध किया है। लोगों को लाने के लिए कॉमर्शियल चार्टर प्लेन का इस्तेमाल किया जाएगा। कतर एयरलाइंस के प्लेन भी लिए जा सकते हैं। क्योंकि, सिर्फ एयर रूट से ही लोगों को लाना संभव है।
भारत अपने लोगों को अफगानिस्तान से निकालने लगा है। भारत ने सोमवार को ताजिकिस्तान के AYNI एयरपोर्ट पर प्लेन रखा था। इसके बाद भारत के NSA ने अपने अमेरिकी समकक्ष से बातचीत की थी, जिसके बाद भारत के प्लेन को काबुल एयरपोर्ट पर ग्रीन सिग्नल मिला। ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि काबुल एयरपोर्ट अमेरिका के नियंत्रण में है।
गौरतलब है कि तालिबान के मामले में भारत अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है। तालिबान वैधानिक और समावेशी लोकतांत्रिक मूल्यों पर जाता है या नहीं, यह भी देखना होगा। क्योंकि, तालिबान के आने से अगर अफगानिस्तान इस्लामिक रेडिकलाइजेशन का केंद्र बना तो यह ISIS हो या अल कायदा की तुलना में ज्यादा खतरनाक स्थिति हो सकती है।
भारत को इस स्थिति में कश्मीर को लेकर सतर्कता की जरूरत है। हालांकि, सुरक्षा एजेंसियां निश्चिन्त कर रही हैं कि चुनौती आई तो आसानी से निबट लेंगे। तालिबान का फोकस कश्मीर पर होने की संभावना कम है। भारत की प्राथमिकता पाकिस्तान के ISI की भूमिका को एक्सपोज करते रहना है। क्योंकि, ISI कमजोर तालिबान चाहेगा, जिससे वो अपना एजेंडा चला सके लेकिन तालिबान खुद मजबूत होना चाहेगा।
हालांकि, तालिबान के सामने कई चुनौतियां हैं। जैसे- सत्ता का संघर्ष, कर्मचारियों को वेतन कैसे देंगे और इसके साथ ही यह भी बड़ी समस्या है कि दुनिया के सामने वैधानिक होने के लिए कैसे लोकतांत्रिक मूल्यों को लागू किया जाए।
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