नई दिल्ली: आज तमाम भारत माता के वीर सपूतों की तरह देश ने उस वीर सपूत को भी भुला दिया है जिसने पाकिस्तानी पैटन टैंकों के एक एक कर अपने गोलों से परखच्चे उड़ा दिये थे।
जी हां, हम बात कर रहे हैं भारत के वीर सपूत अब्दुल हमीद की जिनकी बेमिसाल बहादुरी ने 1965 युद्ध में खोद डाली थी पाकिस्तान टैंकों की कब्र।
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मगई नदी के किनारे बसे छोटे से गांव धामपुर के एक बहुत ही गरीब परिवार में 1 जुलाई सन् 1933 को अब्दुल हमीद का जन्म हुआ था। अब्दुल हमीद को बचपन से ही लाठी, काठी और कुश्ती का बहुत शौक था और वे अपने सुडौल शरीर के कारण वो आसपास के गांवों में भी मशहूर थे।
बताया जाता है कि एक बार उनके गांव के ही एक व्यक्ति की फसल काटने के लिये गांव के जमींदार के 50 लोग लाठी डन्डों-गडासों से लैस होकर जब खेत में पहुंचे तो निडर अब्दुल हमीद ने उन्हें ललकारा। अब्दुल हमीद की चेतावनी सुनकर पचास के पचास लोग भाग खडे हुए। उस वक्त हमीद के साथ केवल तीन लोग और थे।
वो सन् 1954 में घर से रेलवे में भर्ती होने की बात कह कर सेना में भर्ती हो गये और 1960 तक जम्मू-कश्मीर में ही रहे। उस समय जम्मू-कश्मीर बॉर्डर पर पाकिस्तानी घुसपैठिये वेश बदल कर कश्मीर के रास्ते भारत में घुस कर उत्पात मचाते थे।
एक बार अब्दुल हमीद ने भारत में प्रवेश करते हुए इनायत नामक कुख्यात आतंकी को पकडकर अपने उच्च अधिकारियों को सौपा। इस बहादुरी भरे काम के लिये हमीद की तरक्की हुई और वो लांसनायक बना दिये गये।
1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो हमीद नेफा की सीमा पर तैनात थे जहां उन्हें पहली बार प्रत्यक्ष रूप से युद्व में भाग लेने का अवसर मिला।
Latest India News