दिल्ली के सुल्तान का अनसुना सच, 'पद्मावती' से पहले अलाउद्दीन खिलजी की असली कहानी
सुल्तान खिलजी ने क़रीब 20 साल तक दिल्ली की गद्दी पर राज किया। इतिहास भले ही अलाउद्दीन खिलजी को जैसे भी याद करे लेकिन लोककथाओं की रूमानियत में वो सिर्फ एक खलनायक है। उसके दिलो-दिमाग़ में चितौड़गढ़ की रानी पद्मावती को अपनी हरम की चांदनी बनाने का फितूर
नई दिल्ली: अलाउद्दीन खिलजी को लेकर आज पूरे देश में घमासान मचा हुआ है। 700 साल पहले मर चुके खिलजी की अचानक से सियासत में एंट्री हो गई है और उसके नाम पर राजनीति होने लगी है। वो चुनाव का मुद्दा बन गया है। हिंदुस्तान के कई सूबे सुलगने लगे हैं। राजपूत समाज विरोध प्रदर्शन कर रहा है। हर तरफ खिलजी को खलनायक बताया जा रहा है और इसकी वजह है फिल्म पद्मावती जो चित्तौड़गढ़ की महारानी पद्मावती की कहानी बताई जा रही है। उसी फिल्म के साथ खिलजी को लेकर फसाद भी बढ़ता जा रहा है। क्या खिलजी एक खलनायक था या एक कामयाब शासक? क्या उसने चित्तौड़गढ़ की महारानी पद्मावती को जौहर करने के लिए मजबूर किया था? फिल्म पद्मिनी में अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती की जो कहानी सामने आ रही है उससे राजपूत एक बार फिर रण में उतर आए हैं। सियासी पार्टियां भी अपनी विचारधारा से अलग फिल्म के विरोध पर उतर आई हैं और खिलजी को खलनायक बताने लगी हैं।
खिलजी एक ऐसा बादशाह था जिसने अपनी सल्तनत का दायरा बढ़ाने की सनक में लाशों के ढेर लगा दिए। इतिहास के इसी खलनायक सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की एक प्रेम कहानी भी है। इस प्रेम कहानी के केंद्र में हैं चितौड़गढ़ की बेपनाह ख़ूबसूरत महारानी पद्मावती। कहा जाता है कि करीब 700 साल पहले पद्मावती को पाने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने फरेब, धोखा और क्रूरता का ऐसा ताना-बाना बुना कि उसे जानकर किसी का भी कलेजा कांप जाए।
सुल्तान खिलजी ने क़रीब 20 साल तक दिल्ली की गद्दी पर राज किया। इतिहास भले ही अलाउद्दीन खिलजी को जैसे भी याद करे लेकिन लोककथाओं की रूमानियत में वो सिर्फ एक खलनायक है। उसके दिलो-दिमाग़ में चितौड़गढ़ की रानी पद्मावती को अपनी हरम की चांदनी बनाने का फितूर सवार हुआ और इसके बाद जो कुछ हुआ, उसने राजस्थान की धरती को खून से रंग दिया।
इतिहास में दर्ज किस्से-कहानियों के मुताबिक अलाउद्दीन के ज़माने में रानी पद्मावती की बला की ख़ूबसूरती की चर्चा चितौड़ के किले की दीवारों के बाहर भी थी। यही कहानी जब दिल्ली के सुल्तान के कानों में पड़ी तो अलाउद्दीन खिलजी बेचैन हो उठा। उसने तलवार के जो़र पर चित्तौड़ की महारानी पद्मावती को हासिल करना चाहा। पद्मावती के लिए अलाउद्दीन खिलजी की यही ज़िद चितौड़ के किले से बाबस्ता है, जिसमें रानी पद्मावती की बहादुरी, बलिदान और खलनायक अलाउद्दीन खिलजी की एक-एक हक़ीक़त दर्ज है।
ये किस्सा है तेरहवीं सदी का तब के चित्तौड़गढ़ के किले पर राजा रतन सिंह का राज था। रतन सिंह के शौर्य और स्वाभिमान की कहानियां जितनी मशहूर थीं उतनी ही मशहूर थी उनकी दूसरी रानी पद्मिमी की बेइंतहा खूबसूरती। उस वक्त तक किसी को अंदाज़ा नहीं था कि चित्तौड़गढ़ की रानी की बेपनाह खूबसूरती राजपूताना रियासत पर आफत बन कर टूटने वाली है।
कहा जाता है कि चित्तौड़गढ़ राजघराने के एक गद्दार पुरोहित राघव चेतन ने रानी पद्मावती की ख़ूबसूरती का बखान अलाउद्दीन खिलजी से किया था क्योंकि राघव चितौड़गढ़ के राजा रतन सिंह से बदला लेना चाहता था। उसे बखूबी पता था कि दिल्ली का सुल्तान शबाब का कितना शौकीन है। अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए राघव चितौड़ से सीधा दिल्ली दरबार पहुंचा। उसने खिलजी से मुलाकात की और रानी पद्मावती की खूबसूरती का बखान किया। सुल्तान के दिमाग़ में ये भी भर दिया कि बिना धोखे या तलवार की ज़ोर से रानी पद्मावती को हासिल करना नामुमकिन है।
रानी पद्मावती की एक झलक पाने के लिए अलाउद्दीन खिलजी तड़पने लगा और फौरन दिल्ली से एक दूत को चित्तौड़गढ़ रवाना किया। राजा रतन सिंह को पैग़ाम भिजवाया कि चितौड़ की सलामती के लिए वो रानी पद्मावती को सुपुर्द कर दे। अलाउद्दीन खिलजी के पैग़ाम ने राजा रतन सिंह के राजपूती लहू को गरम कर दिया। उन्होंने अलाउद्दीन के दूत को बैरंग लौटाते हुए सुल्तान से दोबारा ऐसी गुस्ताखी नहीं करने की ताकीद कर दी। जब रतन सिंह का ये फ़रमान अलाउद्दीन के पास पहुंचा तो ताकत के नशे में चूर वो बौखला उठा। उसने फौरन अपनी फ़ौज को चित्तौड़गढ़ कूच करने का हुक्म दे दिया।
अलाउद्दीन की फौज ने चित्तौड़गढ़ के किले के बाहर डेरा डाला लेकिन चितौढ़गढ़ के राजा की ताक़त भी कम नहीं थी। अलाउद्दीन समझ गया कि शमशीरों के दम पर पद्मावती को हासिल करना नामुमकिन है इसलिए कहा जाता है कि दिल्ली के सुल्तान ने धोखे और मक्कारी का सहारा लिया। उसने क़िले के भीतर फ़रेब से दाख़िल होने की तरक़ीब भिड़ाई। कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने राजा के पास दोस्ती का पैगाम भिजवाया। अपने पैगाम में उसने ख़ूबसूरत रानी पद्मावती के दीदार की ख़्वाहिश ज़ाहिर की। चूंकि राजपूताना परंपरा आमने-सामने दीदार की इजाज़त नहीं देती थी, लिहाज़ा अलाउद्दीन ने एक आइने में रानी को देखने की पेशकश की। पहले तो राजा रतन सिंह आग बबूला हुए लेकिन अलाउद्दीन की फौजी ताक़त और जंग के ख़ून-ख़राबे से अपनी जनता को बचाने के लिए वो तैयार हो गए।