चंडीगढ़। चंडीगढ़ में कोविड-19 के प्रसार का पता लगाने के लिए पीजीआईएमईआर द्वारा किए गए सीरो सर्वेक्षण के प्रारंभिक आंकड़ों से पता चला है कि 7.6 प्रतिशत परीक्षण किए गए नमूनों में वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी थे। इसकी घोषणा शनिवार को की गई। पीजीआईएमईआर के निदेशक जगत राम ने कहा, "हम अध्ययन के बहुत प्रारंभिक चरण में हैं, जिसका उद्देश्य समुदाय स्तर पर कोविड -19 की सीरो प्रसार की पहचान करना और ट्रांसमिशन रुझानों पर निगरानी रखना है।"
उन्होंने आगे कहा, "किसी भी बात को निर्णायक रूप से कहना बहुत जल्दबाजी होगी। मुद्दे पर एक निश्चित परिणाम तक पहुंचने के लिए और अधिक अध्ययन और सबूतों को एकत्र करने की जरूरत है।" अध्ययन का नेतृत्व कर रहे वायरोलॉजी विभाग के मिनी पी. सिंह ने कहा कि विभाग ने कोविड-19 से उबरे 80 रोगियों पर परीक्षण किया। इनमें संस्थान को प्लाज्मा दान करने वाले मरीज और स्वास्थ्य सेवा श्रमिक थे।
मीनी पी. सिंह ने कहा, "80 परीक्षण में से 66 यानी 82.5 प्रतिशत में आईजीजी एंटीबॉडी पाए गए, जिसका अर्थ है कि उन्होंने विकसित एंटीबॉडी को कोविड-19 से ठीक होने के बाद हासिल किया।" उन्होंने आगे कहा, "एक अन्य परीक्षण में ऑक्सफोर्ड वैक्सीन परीक्षण के लिए 59 वॉलेंटियर्स के साथ-साथ सात स्वास्थ्य कार्यकर्ता (गैर-कोविड) यानी कुल 66 स्वस्थ प्रतिभागी, जिनमें कोविड का कोई भी लक्षण नहीं था, उन्होंने आईजीजी एंटीबॉडी टेस्ट कराया।"
उन्होंने आगे कहा, "66 परीक्षण में से पांच यानी 7.6 प्रतिशत को आईजीजी एंटीबॉडी टेस्ट के लिए पॉजीटिव पाया गया, यह स्पष्ट रूप से संकेत करता है कि वे कोविड-19 संक्रमण के संपर्क में आए थे, लेकिन उनमें इसका कोई लक्षण नहीं था और इसलिए उनमें एंटीबॉडी विकसित हुई।" मीनी पी. सिंह ने आगे कहा, "यह डेटा बताता है कि कोविड-19 से उबरे अधिकांश लोगों ने एंटीबॉडी विकसित किए हैं। हालांकि स्वस्थ आबादी के बीच सीरो पॉजीटिविटी सिर्फ 7.6 प्रतिशत पाई गई, जिसका अर्थ है कि अधिकांश त्रिस्तरीय-शहर वाली आबादी अभी भी वायरस के संपर्क में नहीं आई है। हालांकि, यह बहुत प्रारंभिक डेटा है और बड़े पैमाने पर इसका अध्ययन बाकी है।"
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