नई दिल्ली: 13 अप्रैल का दिन इतिहास के पन्नों में बेहद खास है। इस दिन कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं। उसमें सियाचिन पर कब्जे की शुरुआत महत्वपूर्ण है। जानिये उस ऑपरेशन के बारे में, जिसके जरिये सियाचिन पर भारत ने अपना तिरंगा लहराया था। आज ही के दिन 1984 में कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए सशस्त्र बलों ने अभियान छेड़ा था। इसे ऑपरेशन मेघदूत का नाम दिया गया। यह सैन्य अभियान अनोखा था क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सैनिक पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण हासिल कर रहे थे।(‘बेगम जान’ की जमीन की कहानी जहां टके में बिकती है बच्चियां...)
ऑपरेशन मेघदूत के 33 साल बाद आज भी रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लैशियर पर भारत का कब्जा है। यह विजय भारतीय सेना के शौर्य, नायकत्व, साहस और त्याग की मिसाल है। विश्व के सबसे ऊंचे और ठंडे माने जाने वाले इस रणक्षेत्र में आज भी भारतीय सैनिक देश की संप्रभुता के लिए डटे रहते हैं।
ये ऑपरेशन 1984 से 2002 तक चला था यानि पूरे 18 साल तक। भारत और पाकिस्तान की सेनाएं सियाचिन के लिए एक दूसरे के सामने डटी रहीं। जीत भारत की हुई। आज भारतीय सेना 70 किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर, उससे जुड़े छोटे ग्लेशियर, 3 प्रमुख दर्रों (सिया ला, बिलाफोंद ला और म्योंग ला) पर कब्जा रखती है। इस अभियान में भारत के करीब 1 हजार जवान शहीद हो गए थे। हर रोज सरकार सियाचीन की हिफाजत पर करोड़ो रुपये खर्च आती है।
यह उत्तर पश्चिम भारत में काराकोरम रेंज में स्थित है। सियाचिन ग्लेशियर 76।4 किमी लंबा है और इसमें लगभग 10,000 वर्ग किमी विरान मैदान शामिल हैं। सियाचिन के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साई चीन इस इलाके को छूती है। ऐसे में अगर पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन पर कब्जा कर लिया होता तो पाकिस्तान और चीन की सीमा मिल जाती। चीन और पाकिस्तान का ये गठजोड़ भारत के लिए कभी भी घातक साबित हो सकता था। सबसे अहम ये कि इतनी ऊंचाई से दोनों देशों की गतिविधियों पर नजर रखना भी आसान है।
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