जानलेवा हो सकता है डेंगू का ये खतरनाक वेरिएंट, दिन के 6 घंटे एक्टिव घूमता है इसका मच्छर
Den2 dengue: देशभर में डेंगू के मामले तेजी से बढ़े हैं। स्थिति ऐसी है कि सिर्फ गाजियाबाद और नोएडा में 4 दिनों में 3 लोगों की मौत हो गई है और इसका कारण इस नए डेंगू वेरिएंट को बताया जा रहा है।
Den2 dengue: डेंगू के मामलों में इन दिनों तेजी से बढ़ोतरी हुई है। स्थिति ऐसी है कि पिछले दिनों पूरे यूपी से 3400 से ज्यादा मामले सामने आए हैं जिनमें से 1100 मामले तो लखनऊ, नोएडा और गाजियाबाद से हैं। बीचे 4 दिनों में यहां इससे 3 लोगों की मौत हुआ है। लेकिन, चिंता की बात ये है कि इसका कारण Den2 dengue मच्छर है जिसे डेंगू का टाइगर मच्छर (dengue tiger mosquito) भी कहा जाता है। इस मच्छर को सबसे ज्यादा जानलेवा बताया जा रहा है। क्यों और कैसे, जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
डेंगू का ये नया वेरिएंट है क्या-What is den 2 dengue in hindi
डेंगू एक मच्छर जनित वायरल इंफेक्श है और जिस वायरस से यह बीमारी होती है उसे डेंगू वायरस (DENV) कहा जाता है। डेंगू वायरस के चार सीरोटाइप हैं DENV-1, DENV-2, DENV-3 और DENV-4, जिसका अर्थ है कि आप अलग-अलग डेंगू वेरिएंट से बार-बार संक्रमित हो सकते हैं। मुख्य रूप से ये वायरस मादा मच्छर एडीसेजिप्टी (Aedesaegypti) और एल्बोपिक्टस (Albopictus) के काटने से फैलाता है। ये मच्छर चिकनगुनिया, पीला बुखार और जीका वायरस भी फैलाते हैं। DENV-2 को सबसे गंभीर प्रकार माना जाता है और इसका टाइगर मच्छर (dengue tiger mosquito) दिन में 6 घंटे एक्टिव घूमता है। यानी कि सुबह के 3 घंटे और शाम के तीन घंटे। ऐसे में बाकी की तुलना में ये अधिक संक्रामक हो जाता है और तेजी से लोगों को अपना शिकार बना सकता है।
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डेंगू DENV-2 के लक्षण
इस स्ट्रेन को हल्के लक्षण पैदा करने के लिए भी जाना जाता है, लेकिन इसे DENV-1 से अधिक गंभीर माना जाता है। जिनमें आपको ये लक्षण नजर आ सकते हैं। जैसे
-मसूड़ों या नाक से खून आना
-पेट में तेज दर्द
-लगातार उल्टी होना
-तेजी से सांस लेने
-थकान और बेचैनी
यानी कि यह सामान्य डेंगू संक्रमण के दो से अधिक अन्य लक्षण पैदा कर सकता है और घातक हो सकता है। समय पर इलाज न मिलने पर कई बार व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।
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DENV-2 का इलाज
DENV-2 का इलाज से पहले वायरोलॉजिकल और सीरोलॉजिकल टेस्टिंग की जाती है। बीमारी के पहले सप्ताह के दौरान एकत्र किए गए रोगी के सैंपल की सीरोलॉजिकल और वायरोलॉजिकल यानी आरटी-पीसीआर टेस्टिंग भी की जाती है। इसके बाद दवाओं के साथ इलाज शुरू होता है।