स्मार्ट फोन की लत बच्चों को बना रही मायोपिया का शिकार, 20 वर्ष में 3 गुना बढ़े मामले
कई घंटे तक स्मार्ट फोन देखते रहने की लत ने बच्चों की आंखों में मायोपिया की बीमारी बढ़ा दी है। गत 20 वर्षों में मायोपिया के मामले बच्चों में 3 गुना बढ़ गए हैं। वर्ष 2011 से 2021 के बीच सबसे ज्यादा केस बढ़े हैं। एम्स की रिपोर्ट के अनुसार कोविड के बाद बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ने से यह समस्या ज्यादा सामने आ रही है।
अगर आपके भी बच्चे घंटों-घंटों तक मोबाइल, टीवी और लैपटॉप की स्क्रीन पर डटे रहते हैं तो सावधान हो जाइये, क्योंकि यही लत उन्हें मायोपिया का शिकार बना रही है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 20 वर्षों में छोटे-छोटे बच्चों में मायोपिया की बीमारी 3 गुना तक बढ़ गई है। रिपोर्ट के अनुसार 2001 में अकेले दिल्ली में मायोपिया के 7 फीसदी केस थे। मोबाइल का चलन बढ़ने पर 2011 में 13.5 फीसदी केस हो गए और अब 2021 तक 21 फीसदी बच्चे मायोपिया के शिकार हैं। डॉक्टरों के अनुसार मायोपिया का समय रहते इलाज नहीं किया गया तो यह आगे चलकर बच्चों में अंधेपन की वजह भी बन सकता है।
यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें देर तक छोटी स्क्रीन (स्मार्ट फोन) को देखते रहने से बच्चों की आंख की पुतली का साइज बढ़ जाता है। ऐसे में उन्हें दूर की वस्तुएं साफ नहीं दिखाई देती। ऐसे में बच्चों को निकट दृष्टि दोष हो जाता है। नोएडा में सेक्टर 51 स्थित विजन प्लस आई सेंटर की निदेशक और आई सर्जन डॉ. रितु अरोड़ा ने बताया कि स्मार्ट फोन की लत से बच्चों में मायोपिया के केस काफी संख्या में सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास आने वाला हर चौथा बच्चा मायोपिया का शिकार है।
मायोपिया को नजरअंदाज करने से खतरा
डॉ. रितु अरोड़ा ने कहा कि कोविड के बाद बच्चों में डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल ऑनलाइन क्लास की वजह से काफी बढ़ा है। बच्चे गेम और वीडियो भी देर तक मोबाइल में देखते हैं। बच्चों को पैरेंट्स कम उम्र में ही मोबाइल पकड़ा देते हैं। इससे बच्चों की आंखों पर असर ज्यादा आ गया है। स्क्रीन पर अधिक समय गुजारने से पुतली का साइज बढ़ जाता है। इससे यह समस्या होती है। आंख के पर्दे में मायोपिया होने पर छेद हो सकता है या पर्दा कमजोर हो सकता है। मायोपिया ज्यादा समय तक रहने से आंखों में काला या सफेद मोतिया हो सकता है।
किन्हें ज्यादा रिश्क
- छोटी स्क्रीन पर अधिक समय गुजारने वाले बच्चों को।
- स्मार्ट मोबाइल पर वीडियो देखने और गेम खेलने से।
- लेट कर या झुककर पास से मोबाइल देखने या अन्य छोटी स्क्रीन पर समय गुजारने से।
- जिनके मां-बाप को चश्मा लगा है, उनके बच्चों को मायोपिया हो सकता है।
लक्षण
- बच्चा यदि किताब पढ़ते या कॉपी में लिखते समय उसे बहुत नजदीक से देखे।
- क्लास रूम पीछे बैठा बच्चा बोर्ड पर लिखी चीजें साफ नहीं दिखाई देने की शिकायत करे।
- बच्चा सिरदर्द, आंखों में खुजली होने, पानी आने या जलन की शिकायत करे।
- बच्चों को दूर का अक्षर पढ़ने में परेशानी हो रही हो।
- बच्चा अपनी आंखों को बार-बार मसलता हो।
ऐसे करें बचाव
- बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करें।
- उन्हें स्मार्ट मोबाइल फोन से दूर रखें।
- रोजाना एक दो घंटे कि लिए बाहर पार्क में खेलने के लिए भेजें।
- आंखों की विशेष एक्सरसाइज डॉक्टर से पूछ कर कराएं।
- लक्षण दिखते ही कुशल नेत्र चिकित्सक के पास जाएं।
- इलाज में देरी करने से चश्मे का नंबर बढ़ सकता है।
- पढ़ाने का तरीका सही कराएं। उन्हें लेटकर या झुककर न पढ़ने दें।
- पढ़ाई करने के लिए टेबल और चेयर दें।
- खाने-पीने में हरी सब्जियां, मौसमी फल, जूस ड्राई फ्रूट अधिक दें।
- शुरू में मायोपिया आंखों की एक्सरसाइज से ठीक हो सकता है।
- बच्चों का चश्मा 18, 19 वर्ष की उम्र बाद लेजर से उतर सकता है।