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Hindi News हेल्थ कोरोना की दवा से दुनिया कितनी दूर?, जानें डाक्टर्स से हर एक सवाल का जवाब

कोरोना की दवा से दुनिया कितनी दूर?, जानें डाक्टर्स से हर एक सवाल का जवाब

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन के अलावा कई और दवाएं है जिनका इस्तेमाल अन्य देशों में किया जा रहा हैं। क्या वास्तव में ये दवाएं कोरोना वायरस से निजात दिलाने में कारगर है। इसी सवाल को लेकर इंडिया टीवी के खास शो 'कोरोना की दवा से दुनिया कितनी दूर?' में चीन से डॉक्टर संजीव चौबे से।

कोरोना वायरस के कारण देश-दुनिया में डर का माहौल फैला हुआ हैं। भारत, अमेरिका, चीन आदि देशों के वैज्ञानिक लगातार इसकी वैक्सीन खोजने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भारत में उत्पादन की जाने वाली दवा 'हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन ' से कोरोना के मरीज काफी हद तक ठीक हो रहे हैं। दूसरी ओर भारत में उत्पादन की जाने वाली दवा 'हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन ' से कोरोना के मरीजों के के ट्रीटमेंट में सहायता मिल रही है। इसी वजह से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी भारत से इस दवा की मांग की है। 
 
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन  के अलावा कई और दवाएं है जिनका इस्तेमाल अन्य देशों में किया जा रहा हैं। क्या वास्तव में ये दवाएं कोरोना वायरस से निजात दिलाने में कारगर है। इसी सवाल को लेकर इंडिया टीवी के खास शो 'कोरोना की दवा से दुनिया कितनी दूर?' में चीन से डॉक्टर संजीव चौबे,  न्यूयार्क से समर धवन, भारत से डॉक्टर गौरव और  अपोलो हॉस्पिटल की डॉक्टर रुचा मेहता से इस बारे में पूछा गया। जानें इनका जवाब।  

ऑस्ट्रेलिया में  एंटी पैरसाइट 'इवरमेक्टिन'
इस एंटी-पैरासाइट दवा के बारे में चीन के शंघाई से डॉक्टर संजीव चौबे का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिकों ने लैब में इस दवा को लेकर कई रिसर्च की हैं। जिसके बाद दावा किया गया कि इस एंटी पैरासाइट से मात्र 48 घंटे में असर मिल जाता है। अभी तक ऑस्ट्रेलिया में इस दवा से 91 प्रतिशत लोग ठीक हो रहे हैं। आमतौर पर ये दवा  डेंगू, एचआईवी और इंफ्लुएंजा  जैसी खतरनाक बीमारियों में दी जाती हैं। 

हाइड्रोक्लोक्वीन टैबलेट
इस बारे में डॉक्टर चौबे का कहना कि हां ये भारत के मरीजों को फायदेमंद साबित हो रही हैं।  शोधकर्ताओं ने कोई पुख्ता सबूत नहीं पेश किया है। इस दवा को बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं खाना चाहिए। इससे सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। 

आपको बता दें कि  हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन  का इस्तेमाल आमतौर में मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी में कारगर है। हर साल भारत में बड़ी संख्या में लोग मलेरिया की चपेट में आ जाते हैं। जिसके कारण भारतीय दवा कंपनियां बड़े स्तर पर इसका उत्पादन करने का काम करतीं हैं। अब यह दवा कोरोना वायरस से लड़ने में कारगर सिद्ध हो रही है। 

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