कोरोना से बचाव के लिए स्वास्थ्यकर्मियों व अन्य के प्रयोग में लाए जा रही पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट (पीपीई किट) की बड़ी भूमिका है। विशेषज्ञों का मानना है कि पीपीई किट यदि ठीक से डिस्पोजल नहीं हुआ तो यह पर्यावरण और संक्रमण को भी बढ़ावा दे सकती है। अस्पतालों, एम्बुलेंस, एयरपोर्ट और यहां तक कि श्मशान घाटों तक पर खुले में फेंकी गई पीपीई किट के बारे में चिकित्सकों का साफ कहना है कि ऐसा करके हम खुद को बचा नहीं रहें हैं, बल्कि अपने साथ ही दूसरों को भी मुश्किल में डालने का काम कर रहे हैं।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ़ सूर्यकान्त का कहना है कि इस्तेमाल की गयी पीपीई किट से कम से कम दो दिन तक संक्रमण का पूरा खतरा रहता है। इसलिए किट का चाहे मास्क हो या गाउन उसको कदापि इधर-उधर न फेंके, बल्कि उसके लिए निर्धारित ढक्कन बंद पीली डस्टबिन में ही डालें और अस्पतालों को भी चाहिए कि इस बायो मेडिकल वेस्ट (अस्पताल के कचरे) के निस्तारण की व्यवस्था दुरुस्त रखें।
उन्होंने बताया कि ऐसा देखने में आया है कि कुछ लोग किट को इस्तेमाल करने के बाद इधर-उधर फेंक देते हैं जो कि बहुत ही गंभीर मामला है। ऐसे लोगों के खिलाफ आपदा अधिनियम के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि इससे संक्रमण के साथ पर्यावरण पर भी असर पड़ता है।
अस्पतालों ने वैसे इस काम को एजेंसियों के जिम्मे कर रखा है जो कि कचरे को निस्तारित करने के लिए इन्सीनरेटर मशीन लगा रखी हैं, जहां पर इसका समुचित निस्तारण होता है ताकि किसी तरह के प्रदूषण का खतरा न रहे।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के एनेस्थीजीआलजी एंड क्रिटिकल केयर विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तन्मय तिवारी का कहना है कि इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बाकायदा गाइड लाइन जारी की है कि पीपीई किट के इस्तेमाल और निस्तारण में किस तरह से सावधानी बरतनी है। उसके मुताबिक ही इसके निस्तारण में सभी की भलाई है।
उन्होंने बताया कि देश में इस समय रोजाना लाखों पीपीई किट का इस्तेमाल हो रहा है और यह एक बार ही इस्तेमाल के लिए हैं। इसलिए इस्तेमाल के बाद इसको मशीन के जरिये ही नष्ट किया जाना सबसे उपयुक्त तरीका है।
(इनपुट आईएएनएस)
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