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Hindi News हरियाणा हरियाणा के किस जिले में हैं सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें? यहां जानें सभी 22 जिलों के आंकड़े

हरियाणा के किस जिले में हैं सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें? यहां जानें सभी 22 जिलों के आंकड़े

हरियाणा में पहले एक अक्टूबर को वोटिंग होनी थी और नतीजे 4 अक्टूबर को आने थे लेकिन तारीखों में परिवर्तन के बाद अब 5 अक्टूबर को मतदान होगा जबकि नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे।

Haryana Assembly Elections, Haryana Elections, Haryana Elections News- India TV Hindi Image Source : PTI/ECI हरियाणा में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं।

चंडीगढ़: चुनाव आयोग ने बिश्नोई समुदाय के सदियों पुराने त्योहार को ध्यान में रखते हुए शनिवार को हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीख 1 अक्टूबर से बढ़ाकर 5 अक्टूबर कर दी था। आयोग ने कहा था कि जम्मू कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनावों की मतगणना अब 4 अक्टूबर के बजाय 8 अक्टूबर को होगी। इसके साथ ही हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर वोटिंग 4 दिन आगे खिसक गई। आइए, आपको बताते हैं कि हरियाणा की इन 90 सीटों में से सबसे ज्यादा और सबसे कम सीटें किन जिलों में है।

हिसार में हैं सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें

हरियाणा के हिसार जिले में सबसे ज्यादा 7 विधानसभा सीटें हैं। इसके अलावा सोनीपत और फरीदाबाद में 6-6 सीटें हैं। करनाल, जींद और सिरसा 5-5 विधानसभा सीटों वाले जिले हैं। 4 सीटों वाले जिलों की संख्या सबसे ज्यादा है और इनमें अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल, पानीपत, भिवानी, रोहतक, झज्जर, महेंद्रगढ़ और गुरुग्राम शामिल हैं। इस तरह देखा जाए तो इन 16 जिलों में सूबे की 74 विधानसभा सीटें आती हैं और बाकी के बचे 6 जिलों से कुल 16 सीटें हैं।

सबसे कम सीटें पंचकूला, चरखी दादरी में

फतेहाबाद, रेवाड़ी, नूंह और पलवार 4 ऐसे जिले हैं जहां 3-3 विधानसभा सीटें हैं। वहीं, पंचकूला और चरखी दादरी में सबसे कम 2-2 विधानसभा सीटें हैं। बता दें कि इस बार के हरियाणा विधानसभा चुनावों में किसानों से जुड़े मुद्दे प्रमुखता से उठाए जा रहे हैं। वहीं, अग्निवीर स्कीम, महंगाई, बेरोजगारी और पहलवानों से जुड़े मुद्दे भी इस बारे के चुनावों में छाए हुए हैं। एक तरफ जहां बीजेपी की कोशिश लगातार तीसरी बार सत्ता में आने की है, वहीं कांग्रेस भी सीएम की कुर्सी तक पहुंचने का प्रयास कर रही है।

पिछले चुनावों में 40 सीटें जीती थी बीजेपी

पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने तब 40 सीटें जीती थीं और 10 सीटें जीतने वाली जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बनाई थी। हालांकि लोकसभा चुनाव में सीट साझेदारी को लेकर असहमति के बाद यह गठबंधन टूट गया था। बाद में BJP ने निर्दलीय विधायकों के समर्थन के दम पर अपनी सरकार बचा ली। वहीं, कांग्रेस ने उन चुनावों में 31 सीटों पर अपना परचम लहराया था।