नेफ्रोलॉजिस्ट एसोसिएशन ने गलत आंकड़े पेश कर सरकार को ब्लैकमेल करने का किया प्रयास, फिर पड़ गया झुकना; ये है पूरा मामला
एसोसिएशन के ऐलान को देखकर लग रहा था कि प्राइवेट नेफ्रोलोजिट्स की हड़ताल से डायलिसिस पेशंट्स के लिए बड़ी विकट परिस्थिति हो जाएगी, पर ऐसा कुछ हुआ नहीं, क्योंकि सरकारी व्यवस्थाएं सुचारु रूप से स्थापित हों, तो फिर कोई भी ताकत सिस्टम को हिला नहीं सकती।
गुजरात सरकार ने 11 जुलाई 2023 से PMJAY के तहत प्रति डायलिसिस रेट 2000 से घटाकर 1650 कर दिया था, जिस पर प्राइवेट नेफ्रोलॉजिस्ट रेट 2200 रुपये करने की मांग के साथ हड़ताल पर उतर गए, लेकिन हड़ताल सफल नहीं होने पर सरकार के पास वार्ता के लिए गए और 22 अगस्त को 1900 रुपये के रेट पर काम करने के लिए तैयार हो गए। जिन्हें 2000 रुपये प्रति डायलिसिस में भी नुकसान हो रहा था, वो अब 1900 प्रति डायलिसिस पर मान गए।
पिछले दिनों गुजरात में हुई एक अद्भुत घटना ने ये साबित कर दिया कि यदि सरकारी व्यवस्थाएं सुचारु रूप से स्थापित की जाएं, तो फिर कोई भी ताकत सिस्टम को हिला नहीं सकती। 14-16 अगस्त के बीच गुजरात के नेफ्रोलॉजिस्ट एसोसिएशन ने ऐलान किया कि वो PMJAY के तहत प्राइवेट अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधा ले रहे पेशेंट्स के डायलसिस सेशन के रेट 2300 से घटाकर 1950 किए जाने के विरोध में काम बंद कर देंगे और उन्होंने मांग रखी की रेट घटाने की बजाए और बढ़ाए जाएं। गुजरात सरकार ने उनकी बात नहीं मानी तो वो तय कार्यक्रम के अनुसार हड़ताल पर उतर गए।
सालाना 540000 डायलसिस सेशंस किए जाते हैं
हैरानी की बात ये है कि इसके बावजूद पूरे गुजरात में कहीं से भी डायलिसिस पर चल रहे किसी भी पेशेंट की कोई फरियाद नहीं आई। इसकी सबसे बड़ी वजह रही गुजरात में 2012 में शुरू हुआ गुजरात डायलिसिस प्रोग्राम (अब A-ONE DIALYSIS PROGRAM के नाम से जाना जाता है), जिसके तहत अब पूरे गुजरात में 272 सेंटर्स कार्यरत हैं और उसमें हर महीने करीब 45000 यानी सालाना लगभग 540000 डायलसिस सेशंस किए जाते हैं। जैसे ही सरकार को पता चला कि एसोसिएशन नहीं मान रहे हैं, इन सेंटर्स की कैपेसिटी बढ़ा दी गई और इंट्रेस्टिंगली PMJAY के तहत डायलिसिस सेवाओं का लाभ ले रहे सभी पेसेंट्स को डिपार्टमेंट की तरफ से रेग्युलर कॉल करके मॉनिटर किया गया कि कोई भी लाभार्थी तकलीफ में ना रहें।
पहली बार ऐसा हुआ कि प्राइवेट नेफ्रोलॉजिस्ट की धमकियों के बावजूद सरकारी सिस्टम सबकुछ सही तरह मैनेज कर पाया, वर्ना भूतकाल में हमने देखा है कि प्राइवेट डॉक्टर्स के हड़ताल से पूरी व्यवस्था चरमरा जाती है। जिस तरह से हड़ताल के पहले एसोसिएशन की ओर से घोषणाएं की गई थीं और जो आंकड़े पेश किए गए थे उन्हें देखकर लग रहा था कि प्राइवेट नेफ्रोलोजिट्स की हड़ताल से डायलिसिस पेशंट्स के लिए बड़ी विकट परिस्थिति हो जाएगी, पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। आखिर इस हड़ताल का गुब्बारा क्यों फूटा। इस पर आंकड़ों की पड़ताल में पता चला कि ये आंकड़े इस कदर बढ़ा चढ़ाकर बताए गए थे जैसे देश के 3/4 डायलिसिस सेवा लेने वाले पेशेंट्स सिर्फ गुजरात में ही हों। बाकायदा ये आंकड़े प्रेस कॉन्फ्रेंस करके रिलीज किए गए और अखबारों ने छाप भी दिए कि किसी भी इन्हें वेरिफाई करने की कोशिश तक नहीं की, क्योंकि ये नेफ्रोलॉजिस्ट ऐसोसिएशन की ओर से आधिकारिक रूप से दिए गए थे, पर सत्य तो कुछ और ही है और उसे देखकर लगता है कि महज अपनी मांगों को जायज ठहराने के लिए ये आंकड़े पेश किए गए थे। आइये इन आंकड़ों की सच्चाई को भी समझते हैं-
अख़बारों में छपे नेफ्रोलॉजिस्ट के दावे के अनुसार-
1- गुजरात में PMJAY के तहत हर साल 1.3 करोड़ डायलिसिस सेशन होते हैं, जिनमें से करीब 1.02 करोड़ सेशन प्राइवेट सेंटर्स में होते हैं।
2- सरकार के पास कुल 272 सेंटर्स हैं, जबकि प्राइवेट में 900 से ज्यादा सेंटर्स हैं। साथ ही ये भी क्लेम किया गया कि गुजरात में डायलिसिस की सेवा लेने वाले कुल मरीजों की संख्या 1.3 लाख है।
3- इसके अलावा ये भी क्लेम किया गया गुजरात में सरकार सिंगल यूज डायलाइजर का इस्तेमाल ही अलाउ करती है, जबकि दूसरे राज्यों में वही डायलाइजर 3-4 बार यूज किया जाता है। इसके अलावा सिंगल यूज डायलाइजर से बायो-मेडिकल वेस्ट की समस्या भी बढ़ेगी।
इन दावों की जब पड़ताल की गई तो ये फैक्ट्स सामने आए-
- प्राइवेट नेफ्रोलॉजिस्ट एसोसिएशन का दावा है कि PMJAY के तहत गुजरात में सालाना 1.3 करोड़ डायलिसिस होते हैं, जबकि सरकारी रिकॉर्ड्स बताते हैं कि गुजरात में PMJAY के तहत 11914 लाभार्थी डायलिसिस सेवा का लाभ ले रहे हैं ( 3226 सरकारी सेंटर्स और 8868 प्राइवेट सेंटर्स में), तो ये कैसे संभव है कि 11914 पशेंट्स को साल में 1.3 करोड़ डायलिसिस सेशंस की जरूरत पड़ती है।
- कल्पना कीजिए यदि इन सभी 11914 लाभार्थियों को एक हफ्ते में 3 बार डायलिसिस करवाना पड़े तो एक महीने में 12 बार डायसलिसिस की जरुरत पड़ेगी (जो कि संभव नहीं है कोई पेशेंट एक बार कोई दो बार और कोई तीन बार डायलिसिस करवाता है) तो भी ये संख्या होगी 11914 (कुल PMJAY लाभार्थी) X12 (प्रति मरीज प्रति माह) X 12 (पूरा साल) = 17,15,616 तब भी आंकड़ा 1.3 करोड़ से अतिशय ज्यादा कम है, जबकि रियलिटी में राज्य में PMJAY के तहत इस समय 12-13 लाख डायलिसिस होने का अनुमान है।
- यदि पिछले में सरकार की ओर से PMJAY के तहत सेवा देने वाले सेंटर्स को किए गए पेमेंट देखें, तो भी साफ हो जाएगा कि प्राइवेट के आंकड़े कितने गलत हैं। पिछले साल सरकार ने कुल पेमेंट किया था 276 करोड़ रुपये का यानी 2300 रुपये प्रति डायलिसिस के हिसाब से देखें, तो पिछले साल गुजरात में PMJAY के तहत 12 लाख डायलिसिस हुए थे। ये फैक्ट भी प्राइवेट डॉक्टर्स के आंकड़ों को समर्थन नहीं देता है।
- चलिए राज्य में डायलिसिस की कुल मशीनों की संख्या से अंदाजा लगाते हैं कि असली परिस्थिति क्या है। राज्य में PMJAY योजना का लाभ देने वाले सरकार के 272 डायलिसिस सेंटर्स में कुल 1257 डायलिसिस की मशीनें हैं और जबकि 253 प्राइवेट सेंटर्स में हैं कुल 1903 मशीने, PMJAY के अलावा कई प्राइवेट अस्पताल पेड डायलिसिस सेवा भी देते हैं, एक अनुमान के हिसाब से उनमें करीब 400 मशीनें यानी राज्य में कुल मिलाकर होंगी 1257+1903+400 = 3560 मशीनें, चलिए हम 3600 मशीनें मान लेते हैं।
- अगर ये 3600 मशीनें अपनी फूल कैपेसिटी में चलें तो भी क्या राज्य में साल भर में 1.3 करोड़ डायलिसिस होते हैं। एक बार कॅल्क्युलेट करके देखते हैं। उदाहरण के तौर पर एक डायलिसिस करने में 4 घंटे लगते हैं और मशीन की सफाई में 1 घंटा, इस हिसाब से अगर 1 मशीन अपनी फूल कैपेसिटी में भी चले, तो भी 24 घंटे में 4 डायलिसिस ही होंगे। अब देखते हैं कि 3600 मशीनें यदि पूरे साल फुल कैपेसिटी में चलें तो 3600 X 4 (1 मशीन प्रति दिन) X 30 (1 महीना) X 12 (1 साल)= 51,87,160 मैग्जिमम डायसलिसिस सेशन ही होंगे। तब भी दावे के मुताबिक, 1.3 करोड़ के आधे से भी कम संख्या होती है। वैसे ये प्रैक्टिकली संभव भी नहीं है। मतलब साफ है कि अपनी मांगों को जस्टिफाई करने के लिए नेफ्रोलॉजिस्ट एसोसिएशन की ओर से आंकड़ों को कई गुना बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया।
- इसके अलावा PMJAY के तहत चलाए जा रहे डायलिसिस के सेंटर्स की संख्या भी अखबारों में बढ़ा-चढ़ाकर बताई गईं, जबकि सरकरी आंकड़े चेक करने पर पता चला कि सरकारी सेंटर्स की संख्या 272 है और दावे के मुताबिक प्राइवेट सेंटर्स की संख्या 900 से ज्यादा के मुकाबले 253 ही है। उसमें भी प्राइवेट सेंटर्स की मौजूदगी कॉर्पोरेशन एरिया में कई गुना ज्यादा है और ग्रामीण इलाके में बहुत ही कम डांग और नर्मदा जैसे आदिवासी जिलों में तो प्राइवेट सेंटर्स हैं ही नहीं।
- इतना ही नहीं नेफ्रोलॉजिस्ट एसोसिएशन के हवाले से मीडिया में रिपोर्ट हुआ कि गुजरात में करीब 1.3 लाख किडनी के मरीजों को डायसलिसिस की आवश्यकता है। ये आंकड़े भी कई गुना बढ़ाकर पेश किए गए हैं। विशेषज्ञों के हिसाब से गुजरात में डायलिसिस की आवश्यकता वाले किडनी पेशेंट्स की संख्या 16-17 हजार के बीच होगी, जिनमें से करीब 80% PMJAY के लाभार्थी हैं और सरकारी आंकड़ों के हिसाब से PMJAY के लाभार्थियों की संख्या 11914 है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार के आंकड़ों के हिसाब से देश में हर साल 1.75 लाख किडनी पेशेंट्स को ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है। उस हिसाब से 1.3 लाख के बताए गए फिगर के मुताबिक, देश कुल ट्रांसप्लांट की जरूरत वालों के 74% से ज्यादा पेशेंट्स सिर्फ गुजरात में ही ही हैं। प्राइवेट डॉक्टर्स दावा है कि डायलाइजर को 4 बार रियूज करने की परमिशन दी जानी चाहिए, क्योंकि इससे बायोमेडिकल वेस्ट की समस्या सॉल्व होगी। वैसे हेल्थ हैजार्ड्स को देखते हुए इंटरनैशनली डायलिजर वन टाइम ही यूज होना चाहिए। खैर उसकी चर्चा कभी और पर यदि इन डॉक्टर्स को पर्यावरण की इतनी ही चिंता है, तो इन्हें प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये भी बताना चाहिए था कि एक डायलिजर को दोबारा उपयोग में लाने के एक बार साफ करने के लिए 20 लीटर RO WATER की जरूरत होती है और यदि चार बार रियूज के डायलाइजर को साफ करना हो, तो 80 लीटर RO WATER चाहिए और उसे बनाने के लिए 160 लीटर टंकी का पानी यूज होगा। इंटेस्टिंगली 350 रुपये घटाते ही डायलिसिस के लिए सबसे प्राइमरी जरूरत में ही कटौती की मांग की जा रही है।
दरअसल, यहां मुद्दा प्रॉफिस्टस का है और पेशेंट्स शिफ्ट होने के डर का है, क्योंकि जब सरकार केंद्रों पर मरीजों को प्राइवेट से बेहतर सुविधाएं मिलने लगीं हैं, तो उन्हें लगता कि प्राइवेट की सुप्रीमेसी खत्म हो जाएगी। वैसे तीन दिन की हड़ताल में नेफ्टोलॉजिस्ट एसोसिएशन को रियलिटी चेक भी मिल गया होगा, क्योंकि सरकार की तरफ से इन तीन दिनों में लगातार PMJAY लाभार्थियों की मॉनिटरिंग की जा रही थी। सबसे बड़ी बात सरकार के पास सुविधाएं थीं। 2012 में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब गुजरात डायसलिसिस प्रोग्राम लॉन्च किया था, तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि इसके दूरगामी परिणाम इतने सुखद होंगे।