Gujarat News: भारत का ये एक मात्र शहर, हर साल 1100 से ज्यादा लोगों की बचाता है जिंदगियां
Gujarat News: अहमदाबाद हमेशा से गर्मी का सामना करता आया है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और धीमी गति से आगे बढ़ रहे चक्रवात के दौरान 2010 में उसे भीषण लू का प्रकोप झेलना पड़ा था।
Highlights
- अहमदाबाद 12 साल पहले भीषण लू का गवाह बना
- अधिकतम तापमान 48 डिग्री के पार चला गया था
- बड़ी संख्या में पक्षियों- चमगादड़ों ने भी गंवाई जान
Gujarat News: भारत का ये शहर जिसकी पहल के तहत सामुदायिक पहुंच और विशेष निर्माण पद्धति के जरिए हजारों जिंदगियां बचाने में मदद मिली है। पश्चिमी भारत का प्रमुख शहर अहमदाबाद 12 साल पहले भीषण लू का गवाह बना था। मई 2010 के एक घातक सप्ताह में वहां अधिकतम तापमान 48 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया था और लगभग 800 लोगों की मौत हो गई थी।
अस्पतालों पर मरीजों के बढ़ते बोझ को देखते हुए प्राधिकारियों ने लोगों को दिन में बाहर नहीं निकलने की सलाह जारी की थी। उस दौरान बड़ी संख्या में पक्षियों और चमगादड़ों ने भी जान गंवाई थी। अहमदाबाद हमेशा से गर्मी का सामना करता आया है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और धीमी गति से आगे बढ़ रहे चक्रवात के दौरान 2010 में उसे भीषण लू का प्रकोप झेलना पड़ा था। उस घातक सप्ताह के बाद अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) ने गर्मी से निपटने के लिए भारत की पहली कार्य योजना तैयार करने के लिए भारतीय जन स्वास्थ्य संस्थान-गांधीनगर (आईआईपीएच-जी) और प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद (एनआरडीसी) से हाथ मिलाया।
यह कार्य योजना 23 राज्यों के 100 से ज्यादा शहरों और जिलों में लागू
वर्ष 2013 में इस कार्य योजना के क्रियान्वयन के बाद अहमदाबाद में हर साल औसतन 1,190 जिंदगियां बचाने में मदद मिली है। यही नहीं, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के जरिए यह कार्य योजना 23 राज्यों के 100 से ज्यादा शहरों और जिलों में लागू की जा चुकी है। गर्मी से निपटने से जुड़ी कार्य योजना के तहत समुदायों के बीच जागरूकता फैलाने, उन्हें मौसम के अनुकूल ढालने के उपाय करने, विशेष निर्माण पद्धतियां अपनाने, अग्रिम चेतावनी के लिए एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाने और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों में क्षमता निर्माण करने पर जोर दिया जाता है।
झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग और निम्न आय वाले समुदाय खासतौर पर संवेदनशील होते हैं, क्योंकि घनी बस्ती के चलते उनके घर ज्यादा हवादार नहीं होते और इन्हें ठंडा रखने के उपाय करना भी मुश्किल होता है। तथाकथित 'कूल रूफ' गर्मी से निपटने की कार्य योजना का एक प्रमुख घटक है। यह एक विशेष परत या सामग्री होती है, जो सूर्य की रोशनी को परावर्तित करती है, जिससे छतें गर्म नहीं होतीं। इलाके के हिसाब से 'कूल रूफ' पारंपरिक छतों (आमतौर पर टिन या एसबेस्टस की चादर से निर्मित छतें) के मुकाबले भवन के अंदर के तापमान को दो से पांच डिग्री सेल्सियम तक कम रखने में सक्षम हैं।
झुग्गी-झोपड़ियों की छतों को 'कूल रूफ' से बदलने की योजना
वर्ष 2017 की एक पायलट योजना की सफलता को देखते हुए अहमदाबाद ने 2020 में 15,000 झुग्गी-झोपड़ियों और एक हजार सरकारी इमारतों की छतों को 'कूल रूफ' से बदलने की योजना घोषित की। पायलट योजना पर्चों, होर्डिंग व अन्य संवाद सामग्री के जरिए जन जागरूकता फैलाने पर केंद्रित थी, ताकि लोगों को बताया जा सके कि 'कूल रूफ' क्या है, यह कैसे भवन के अंदर के तापमान को कम रखती है और इसके निर्माण में किन-किन सामग्री का इस्तेमाल किया जा सकता है। अहमदाबाद की इस पहल में महिला हाउसिंग ट्रस्ट ने बड़ा योगदान दिया है।
संस्था ने कम आय वाले समुदायों के बीच सौ 'कूल रूफ' स्थापित किए हैं, जो 'सोलर रिफ्लेक्टिव पेंट' (सूर्य की रोशनी को परावर्तित करने वाला पेंट) और 'मोडरूफ' (नारियल की भूसी और रद्दी कागज से स्थानीय स्तर पर तैयार ईको-फ्रेंडली सामग्री) की मदद से बनाए गए हैं। देश के अन्य हिस्सों में भी 'कूल रूफ' स्थापित करने का चलन जोर पकड़ रहा है। 2020 में महिला हाउसिंग ट्रस्ट ने एनआरडीसी के साथ मिलकर जोधपुर, भोपाल, सूरत और अहमदाबाद की 460 से अधिक झुग्गी-झोपड़ियों की छत पर 'सोलर रिफ्लेक्टिव पेंट' से पोताई की थी। दोनों संस्थाओं ने 13,587 परिवारों और 67,935 लोगों को 'सोलर रिफ्लेक्टिव पेंट' की खूबियों से वाकिफ भी कराया था।