अहमदाबाद: वर्ष 2008 के अहमदाबाद सीरियल बम ब्लास्ट में जीवित बचे व्यक्तियों और उक्त घटना में जान गंवाने वालों के परिजनों ने दोषियों को मौत की सजा के साथ-साथ उम्रकैद की सजा सुनाने के अदालत के फैसले का स्वागत किया। अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने शहर में 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में 38 दोषियों को शुक्रवार को मौत और 11 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनायी। इन धमाकों में 56 लोगों की मौत हो गयी थी और 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे।
‘मैं अदालत के फैसले से खुश हूं’
जब यह घटना हुई थी तब छात्र यश व्यास 9 साल के थे। उस समय वह असरवा इलाके स्थित सिविल अस्पताल के ट्रॉमा वार्ड में हुए बम विस्फोट के बाद गंभीर रूप से झुलस गए थे। उन्होंने कहा कि वह और उनकी मां पिछले 13 सालों से इस फैसले का इंतजार कर रहे थे। यश (22) वर्तमान में बीएससी द्वितीय वर्ष के छात्र हैं। उन्होंने कहा, ‘मुझे खुशी है कि अदालत ने मेरे पिता और भाई सहित निर्दोष लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार 38 व्यक्तियों को मौत की सजा सुनाई।’
साइकिल सिखाने गए थे यश के पिता
यश ने कहा, ‘जिन 11 व्यक्तियों को उम्रकैद की सजा दी गई हैं उन्हें भी मौत की सजा मिलनी चाहिए थी। ऐसे लोगों के लिए कोई दया नहीं होनी चाहिए।’ उन्होंने अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में 4 महीने बिताए थे। वह उक्त घटना में 50 प्रतिशत झुलस गए थे। यश के पिता, दुष्यंत व्यास सिविल अस्पताल परिसर स्थित एक कैंसर चिकित्सा इकाई में एक लैब तकनीशियन थे और उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन, अपने 2 बेटों को साइकिल चलाना सिखाने के लिए अस्पताल के एक खुले मैदान में ले गए थे।
‘पिता लोगों की मदद करने गए थे’
यश ने कहा, ‘शाम लगभग 7.30 बजे, जब मेरे पिता ने देखा कि कुछ विस्फोट पीड़ितों (शहर के एक अन्य क्षेत्र में हुई एक घटना के) को एम्बुलेंस में लाया जा रहा है तो उन्होंने मदद करने का फैसला किया। जैसे ही हम सिविल अस्पताल के ट्रॉमा वार्ड के पास पहुंचे, एक विस्फोट हुआ जिसमें मेरे पिता और 11 वर्षीय भाई की मौके पर ही मौत हो गई।’ शहर के अन्य हिस्सों में हुए विस्फोटों में घायल हुए लोगों को जब सिविल अस्पताल में लाया जा रहा था, तब ट्रॉमा सेंटर में 2 विस्फोट हुए थे जिसमें मरीजों, उनके परिजनों, चिकित्सा कर्मचारियों और अन्य व्यक्तियों की मौत हो गई।
‘सभी 49 दोषियों को फांसी होनी चाहिए थी’
पीड़ितों में सिविल अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर प्रेरक शाह और उनकी गर्भवती पत्नी किंजल शामिल थे। वे किंजल की चिकित्सकीय जांच के लिए सिविल अस्पताल के स्त्री रोग वार्ड गए थे। प्रेरक के पिता एवं मोडासा कस्बे के निवासी रमेश शाह ने कहा, ‘मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं। मुझे हमेशा पुलिस और न्यायपालिका पर भरोसा था कि एक दिन मुझे न्याय मिलेगा। हालांकि, मुझे लगता है कि सभी 49 दोषियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए थी। फिर भी, मैं संतुष्ट हूं कि 38 को फांसी दी जाएगी।’
‘मैंने विस्फोट में अपनी पत्नी को खो दिया था’
पुराने शहर के रायपुर चकला क्षेत्र में अपने ठेले पर सैंडविच बेचने वाले जगदीश कादिया ने अपनी पत्नी हसुमती कादिया को अपनी गाड़ी के पास हुए विस्फोट में गंवा दिया था। 65 वर्षीय व्यक्ति ने कहा, ‘विस्फोट की वजह से मेरी पत्नी के शरीर में छर्रे घुस गए थ। मैं अपनी पत्नी को हर रोज याद करता हूं और तब से अकेले ही जीवन जी रहा हूं। मेरा मानना है कि जिन 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी गई है, उन्हें भी फांसी की सजा दी जानी चाहिए।’ (भाषा)