अहमदाबाद। आज के समय मे बच्चे टीवी और मोबाइल जैसी चीजों के आदी हो गए मगर इस माहौल में कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो आधुनिक दुनिया से दूर और सांसारिक सुखों का त्याग कर दीक्षा ले रहे हैं। सूरत में अहमदाबाद की जैन परिवार की बेटी ने महज 8 साल की उम्र में सांसारिक सुखों का त्याग कर आज दीक्षा ग्रहण की है।
जैन साध्वी के रूप में एक छोटी सी महज 8 साल की बच्ची आंगी आज सूरत के अडाजन इलाके के राम पावन भूमि में सांसारिक परिधनों को छोड़ साध्वी के रूप में नजर आ रही है। आंगी ने अपने पिता दिनेश जैन, माता संगीत जैन और अपनी 6 साल की बहन को छोड़कर सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया। दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली आंगी जब कोरोना के समय स्कूल बंद थे तब अपने गुरु के साथ विहार करने निकल पड़ी थी। तीन साल के विहार में आंगी ने सैकड़ो किलोमीटर की पैदल यात्रा की, तीन साल के विहार में आंगी ने वो सब सीख लिया जो उन्हें दीक्षा लेने के बाद करना था।
आज दीक्षा लेने के पहले आंगी की शोभायात्रा भी निकली जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए थे। जैन भगवंतों के सानिध्य में जैन शासन की ओर शांति समय की राह पर चल पड़ी है। आंगी के पिता अहमदाबाद में नौकरी करते हैं। अहमदाबाद की 6 वर्षीय आंगी की दीक्षा पंडिट विजय हेमचंद्र सुरीश्वरजी के सानिध्य में हुई है।
विजय हेमचंद्र महाराज से जब पूछा गया कि इतनी छोटी उम्र में आप दीक्षा क्यूं देते हैं तो उन्होंने कहा कि 8 साल की उम्र में दीक्षा लेना परमात्मा की पहली आज्ञा है, आत्मा की पवित्रता होती है, आत्मा में परमात्मा का स्वरूप रहता है। दीक्षार्थी जब बड़े होते हैं तब पूरी दुनिया को देखते हैं, तब उनकी आत्मा अपवित्र होती जाती है। छोटी उम्र में दीक्षा लेने वाले का मन पवित्र वातावरण में रहने से वैसा ही रहता है। उनका कहना है कि छोटी उम्र में आज के बच्चों को जो जानकारी होती है वो बड़े लोगों में भी नहीं होती है। हमारे बड़े-बड़े भगवंतों ने भी छोटी उम्र में दीक्षा ली है इसलिए छोटी उम्र में दीक्षा लेना गलत नहीं है।
आंगी के माता पिता दिनेश और संगीता का कहना है कि हमारे घर में पूरा धार्मिक वातावरण है और आंगी इसी वातावरण में बड़ी हुई है। जैन धर्म के सभी नियमों का वो बचपन से ही पालन करती थी। हमें गर्व है कि हमारी बेटी जैन साध्वी बनी। दीक्षा लेने के बाद आंगी अब हेमांगी रत्न श्री श्री बाल साध्वी के रूप में जानी जाएगी।