विस चुनाव: पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सल्तनत बरक़रार

  • पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का दौबारा सत्ता में आना लगभग तय नज़र आ रहा है और शुरुआती रुझान के मुताबिक ममता की पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल गया है हालंकि अभी गिनती का काम जारी है। वहीं दूसरी तरफ वाममोर्चा और कांग्रेस गठबंधन ममता-आंधी को रोकने में नाकाम नज़र आ रहा है।

  • पश्चिम बंगाल सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है और उसने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं वाममोर्चा एवं कांग्रेस के बीच गठबंधन है जहां वाममोर्चा मोटे तौर पर 200 सीटों पर और कांग्रेस करीब 80 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

  • लगता है कि तृणमूल कांग्रेस पर शारदा घोटाले और पार्टी के कुछ नेताओं के कथित नारद स्टिंग में फंसने जैसे मुद्दे का कोई असर नहीं पड़ा। तृणमूल के प्रतिद्वन्द्वी दलों ने इसे प्रचार का मुद्दा बनाया था। कोलकाता शहर में बीचोंबीच एक फ्लाईओवर का गिर जाना भी चुनावी मुद्दा रहा।

  • तृणमूल कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में सड़क निर्माण, बिजली की अच्छी उपलब्धता, छात्राओं को साइकिल और दो रुपये में एक किलो चावल जैसे कार्यक्रम चलाए थे जिसका उसे फ़ायदा मिला।

  • ममता जब बहुत छोटी थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया था। अपने स्कूली दिनों से ही राजनीति से जुड़ी ममता कांग्रेस से लम्बे समय तक जुड़ी रहीं। सत्तर के दशक में उन्हें राज्य महिला कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। उस समय में वे कॉलेज में पढ़ ही रही थीं।

  • राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी का कभी ऐसा समय भी था जब उन्हें ग़रीबी से संघर्ष करते हुए दूध बेचने का काम भी करना पड़ा। उनके लिए अपने छोटे भाई-बहनों के पालन-पोषण में अपनी विधवा माँ की मदद करने का यही अकेला तरीका था।

  • ममता का राजनीतिक सफर 1970 में शुरू हुआ, जब वे कांग्रेस पार्टी की कार्यकर्ता बनीं। 1976 से 1980 तक वे महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं। 1984 में ममता ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर लोकसभा सीट से हराया।

  • उन्हें देश की सबसे युवा सांसद बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ। उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। मगर 1989 में कांग्रेस विरोधी लहर के कारण जादवपुर लोकसभा सीट पर ममता को मालिनी भट्टाचार्य के खिलाफ हार का स्वाद चखना पड़ा।

  • 1991 का चुनाव उन्होंने कलकत्ता दक्षिण संसदीय सीट से लड़ा और जीता भी। उन्होंने दक्षिणी कलकत्ता (कोलकाता) लोकसभा सीट से माकपा के बिप्लव दासगुप्ता को पराजित किया और वर्ष 1996, 1998, 1999, 2004 व 2009 में वह इसी सीट से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुईं।

  • 1991 में कोलकाता से लोकसभा के लिए चुनी गईं। नरसिम्हा राव सरकार में मानव संसाधन विकास, युवा मामलों और महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्यमंत्री बनीं। नरसिम्हां राव सरकार में खेल मंत्री बनाई गईं।

  • इससे पहले वे केन्द्र में दो बार रेलमंत्री बन चुकी हैं। रेलमंत्री बनने वाली वे पहली महिला थीं। वे केन्द्र में कोयला, मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री, युवा मामलों और खेल तथा महिला व बाल विकास की राज्यमंत्री भी रह चुकी हैं। वर्ष 2012 में टाइम पत्रिका ने उन्हें विश्व के 100 प्रभावी लोगों की सूची में स्थान दिया था।

  • अपने समूचे राजनीतिक जीवन में ममता ने सादा जीवन शैली अपनाई और वे हमेशा ही परम्परागत बंगाली सूती की साड़ी (जिसे तंत कहा जाता है) पहनती रही हैं। उन्होंने कभी कोई आभूषण या श्रृंगार प्रसाधन की चीज नहीं अपनाई। वे अपने जीवन में अविवाहित रही हैं। उनके कंधे पर आमतौर पर एक सूती थैला लटका नजर आता है जो कि उनकी पहचान बन गया है।

  • अप्रैल 1996 में उन्होंने कांग्रेस पर बंगाल में माकपा की कठपुतली होने का आरोप लगाया। और इसके अगले ही वर्ष 1997 में उन्होंने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस बनाई। वे पार्टी की अध्यक्ष बनीं। आमतौर पर उन्हें 'दीदी' कहकर बुलाया जाता है। 2011 के राज्य विधानसभा चुनावों में उन्होंने माकपा और वामपंथी दलों की सरकार को 34 वर्षों के लगातार शासन के बाद उखाड़ फेंका था।

  • वर्ष 1999 में उनकी पार्टी भाजपा के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार का हिस्सा बन गई और उन्हें रेलमंत्री बना दिया गया। वर्ष 2002 में उन्होंने अपना पहला रेल बजट पेश किया और इसमें उन्होंने बंगाल को सबसे ज्यादा सुविधाएं देकर सिद्ध कर दिया कि उनकी दृष्टि बंगाल से आगे का नहीं देख पाती है।

  • 2011 में टीएमसी ने भारी बहुमत से विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की और ममता राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। इस बार उन्होंने राज्य से वामपंथी मोर्चे का सफाया कर दिया था और लगातार 34 वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद वामपंथी सत्ता से बाहर हो गए।

  • ममता बैनर्जी एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवयित्री भी हैं। उनकी कविता में अपने मूल्य खो चुकी राजनीति के बदलाव (पोरीबर्तन) की पीड़ा साफ झलतकी है। 'राजनीति' शीर्षक से उनकी एक कविता काफी चर्चित रही।