हिंदी दिवस पर कुछ ऐसी पंक्तियां जिन्हें आप नहीं भूल पाएंगे

  • तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के, पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के। हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक, वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक। रामधारी सिंह दिनकर

  • हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। दुष्यंत कुमार

  • मैं नीर भरी दु:ख की बदली! विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही उमड़ी कल थी मिट आज चली! महादेवी वर्मा

  • भूख से सूख ओठ जब जाते दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते? घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए! सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

  • नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो। जग में रह कर कुछ नाम करो। यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो। कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो, न निराश करो मन को। मैथिलीशरण गुप्त