B'day Spl: फकीर से मिली प्रेरणा और नाई से बन गए लेजेंडरी सिंगर, जानें मोहम्मद रफी से जुड़ी 5 खास बातें
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सुरों के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी की आज 100वीं जयंती है। मोहम्मद रफी वो सुरों की दुनिया के वो जादूगर थे, जिनकी आवाज कानों में मिश्री की तरह घुल जाती है और सीधे दिल पर असर करती है। उनके गानों में जो वर्सेटैलिटी थी, उसे आज तक कोई टक्कर नहीं दे पाया है। वह हिंदी सिनेमा के वो कलाकार थे, जिनकी जगह ना तो कोई ले सका था और ना ही ले पाएगा।
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रफी साहब ने अपने करियर में हिंदी गानों से तो हिंदी सिनेमा को गुलजार किया ही, साथ ही कोंकणी से लेकर अंग्रेजी, पारसी तक में अपनी आवाजा का जादू बिखेरा। आज मोहम्मद रफी की 100वीं जयंती है तो चलिए आपको इस मौके पर उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं।
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मोहम्मद रफी का जन्म ब्रिटिश पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह में 24 दिसंबर 1924 को हुआ था। रफी साहब को बचपन में लोग फीको कहकर बुलाते थे। उनका संगीत से बचपन से ही लगाव सबके सामने आ गया था और 13 साल की उम्र में उन्होंने सिंगर के तौर पर अपनी पहली प्रस्तुति दी थी।
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रफी साहब का संगीत में इंटरेस्ट तब आया जब उन्होंने एक सूफी फकीर को गाते सुना। वह अक्सर ही उसकी नकल करते और गाने की कोशिश करते। इसके बाद उन्होंने लाहौर से मुंबई का रुख कर लिया और प्लेबैक सिंगिंग में करियर बनाने का फैसला किया। उन्होंने शंकर जयकिशन के साथ-साथ एस डी बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकारों तक के साथ काम किया।
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रफी साहब ने के एल सहगल के साथ काम किया और अपनी पहचान बनाई। 1944 में जब जीनत बेगम के साथ उन्होंने अपना पहला गाना गाया तो देखते ही देखते हर तरफ छा गए। 'सोनिये नी, हीरिये नी' से मोहम्मद रफी के प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत हुई थी।
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मोहम्मद रफी ने अपने करियर में 28 हजार के करीब गाने गाए। उन्होंने हिंदी से लेकर कोंकणी, भोजपुरी, पारसी तक में हजारों गानों को आवाज दी और रोमांस से लेकर इमोशनल, देशभक्ति, कव्वाली, भजन, शास्त्रीय संगीत सब में जादूगरी बिखेरी।
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मोहम्मद रफी ने अपने करियर में छह फिल्मफेयर पुरस्कार और एक राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम किया। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार की ओर से 1967 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।