Explainer: आंध्र प्रदेश में फिर साथ क्यों आईं BJP-TDP? विधानसभा और लोकसभा चुनाव की कितनी सीटों पर होगा असर
आंध्र प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा दोनों के चुनाव होने हैं। ऐसे में चुनाव से पहले बीजेपी और टीडीपी एक बार फिर से गठबंधन के तहत एक साथ एक मंच शेयर करते हुए नजर आएंगे। वहीं इन दोनों दलों के दोबारा साथ आने की क्या वजह है और इसका चुनाव में क्या असर होगा, ये जानने के लिए पढ़े पूरी रिपोर्ट...
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में सभी दल खुद को मजबूत करने में जुटे हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी भी खुद को दक्षिण भारत के राज्यों में मजबूत करने की हर जुगत लगाने में जुटी हुई है। इसी क्रम में हम बात करेंगे आंध्र प्रदेश की। यहां पर फिलहाल वाईएसआरसीपी (YSRCP) की सरकार है, जिसके मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश में एक और महत्वपूर्ण दल तेलुगु देशम पार्टी (TDP) है जिसका नेतृत्व चंद्रबाबू नायडू करते हैं। एक समय में चंद्रबाबू नायडू भी NDA गठबंधन का ही हिस्सा थे, लेकिन आज से 7 साल पहले उन्होंने NDA से किनारा कर लिया था। वहीं अब एक बार फिर से वह NDA गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने जा रहे हैं। ऐसे में BJP और TDP का एक साथ आना उन्हें चुनाव में मजबूती देगा या ये सिर्फ उनकी मजबूरी है।
क्या है गठबंधन की वजह
सही मायनों में देखा जाए तो बीजेपी आंध्र प्रदेश में बहुत ज्यादा सीटों पर मजबूत स्थिति में नहीं है वहीं TDP को भी भाजपा के साथ आने में कोई खास फायदा नहीं था लेकिन ऐसी क्या वजह थी कि दोनों दलों को साथ आना पड़ा। ऐसा माना जा रहा है कि इस गठबंधन के पीछे एक तरफ जहां भाजपा खुद आंध्र प्रदेश के जरिए दक्षिण भारत में आधार बनाने के प्रयास में जुटी है, तो वहीं TDP के भी अपने निजी फायदे हैं। एक तरफ जहां TDP ने खुद को एनडीए से ये बात कह कर अलग किया कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा रहा है, लेकिन कहीं ना कहीं नायडू को घोटाले में गिरफ्तार होने के बाद केंद्रीय एजेंसियों का डर भी सता रहा था। उन्हें लगता है कि NDA के साथ जाने के बाद वह सुरक्षित रहेंगे। इसके साथ ही वह गठबंधन के जरिए राज्य की सत्ता में भी दोबारा वापसी करने की उम्मीद में भी हैं।
आंध्र प्रदेश की सीटों का गणित
आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 जबकि विधानसभा की 175 सीटें हैं। इनमें से भाजपा ने लोकसभा के लिए 6-8, जबकि विधानसभा चुनाव के लिए 15 सीटों की मांग की है। फिलहाल TDP, भाजपा को 4 लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है। वहीं ये भी कहा जा रहा है कि BJP विधानसभा सीटें कम करने को तैयार है लेकिन लोकसभा सीटों को कम करने के मूड में नहीं है।
पिछले चुनावों में हार-जीत के आंकड़े
बता दें कि इससे पहले जब TDP भी एनडीए का हिस्सा थी तब 2014 के चुनाव में TDP ने 15 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा को 2 सीटों पर जीत मिली। वहीं अलग होने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में TDP को मात्र 3 सीटें ही मिल पाईं, जबकि भाजपा तो शून्य पर आ गई। वहीं विधानसभा चुनावों की बात करें तो 2014 में जब दोनों दल एक साथ थे तो TDP ने 102 सीटें जीती थी, जबकि भाजपा को 4 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं अलग होने के बाद 2019 के चुनाव में टीडीपी को विधानसभा चुनाव में 23 जबकि भाजपा को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।
गठबंधन में पवन कल्याण की भूमिका
वहीं इस कहानी का एक और हिस्सा हैं अभिनेता से राजनेता बने पवन कल्याण। माना जा रहा है बीजेपी और TDP को एक साथ लाने में पवन कल्याण की अहम भूमिका रही है। पवन कल्याण भी TDP और बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी जनसेना पार्टी लोकसभा और विधानसभा दोनों ही चुनावों में गठबंधन के साथ है। इस गठबंधन में TDP ने पवन कल्याण की JSP को पहले ही विधानसभा की 24 जबकि लोकसभा की 3 सीटें दे दी हैं।
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