Explainer:ईरान के SCO का सदस्य बनने से भारत पर होगा क्या असर, जानें क्यों टेंशन में आया अमेरिका और रूस हुआ गदगद?
ईरान के एससीओ का सदस्य बनने से रूस की स्थिति ग्लोबल पोजिशनिंग के हिसाब से मजबूत होगी। वहीं अमेरिका और ईरान में 36 का आंकड़ा होने से वह टेंशन में है। ईरान यूक्रेन युद्ध में भी रूस की मदद कर रहा है। एससीओ का सदस्य बनने के बाद रूस-ईरान की करीबी और बढ़ेगी। भारत को ईरान के चाबहार पोर्ट से आर्थिक, सामरिक फायदे होंगे।
शंघाई शिखर सहयोग संगठन (एससीओ) में अभी तक भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, किर्गिस्तान ही सदस्य थे। मगर अब रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने ईरान को भी इसमें शामिल करा लिया है। इस प्रकार अब एससीओ के ईरान समेत कुल आठ सदस्य हो गए हैं। ईरान के SCO का सदस्य बनने से भारत पर क्या असर होगा और रूस को इसका कितना फायदा होगा। इस ऐलान से अमेरिका टेंशन में क्यों आ गया है। पाकिस्तान, चीन समेत दूसरे सदस्य देशों को ईरान के आने से कितना फायदा या नुकसान होगा। आइए आपको क्रमवार समझाते हैं।
ईरान को एससीओ का सदस्य बनाए जाने से पहले यह समझना जरूरी है कि यह संगठन है क्या और इसकी महत्ता कितनी अधिक है। आपको बता दें कि एससीओ शिखर की स्थापना वर्ष 2001 में रूस व चीन ने उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान जैसे देशों को साथ लेकर की थी। यह महत्वपूर्ण क्षेत्रीय प्रभावशाली और आर्थिक सुरक्षा ब्लॉक है। इस अंतरराष्ट्रीय संगठन का भारत और पाकिस्तान को वर्ष 2017 में सदस्य बनाया गया। रूस के राष्ट्रपति पुतिन के प्रस्ताव पर भारत और चीन की सिफारिश पर पाकिस्तान को इसका सदस्य बनाया गया। एससीओ का भारत जब से सदस्य बना, तब से पीएम मोदी ने इस संगठन की उपयोगिता को बहुत ऊपर पहुंचा दिया। क्योंकि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2018 में पहली बार एससीओ का असली उद्देश्य बताया।
एससीओ का उद्देश्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के एससीओ का सदस्य बनने के बाद पहली बार इसे सिक्योर (SECURE) नाम दिया। प्रधानमंत्री ने इसका अर्थ S-से सुरक्षा, E-से इकोनॉमिकल डेवलपमेंट, C- से कनेक्टिविटी, U- से यूनिटी (एकता), R- Respect for territorial integrity यानि क्षेत्रीय अखंडता के लिए सम्मान और संप्रभुता, E-से एनवायरमेंट यानि पर्यावरण संरक्षण। इस प्रकार पीएम मोदी ने एससीओ शिखर सम्मेलन का स्वरूप और परिभाषा ही बदल दिया। इससे रूस के राष्ट्रपति पुतिन समेत उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देश भी पीएम मोदी के कायल हो गए। एससीओ अब पीएम मोदी के मंत्र के अनुसार बताए उद्देश्यों की पूर्ति के लिए काम कर रहा है।
ईरान को एससीओ का सदस्य बनाने से रूस को क्या फायदा?
अब सबसे पहला सवाल यह है कि ईरान को एससीओ का सदस्य बनाने का रूस ने प्रस्ताव क्यों रखा। आखिरकार पुतिन को ईरान के एससीओ का सदस्य बनने से क्या फायदा होने वाला था और ईरान को इस संगठन में शामिल होने से क्या लाभ होगा। दरअसल रूस इस दौरान यूक्रेन युद्ध के चलते पूरी दुनिया से अलग-थलग पड़ गया है। यूरोप व समस्त पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह का प्रतिबंध लगा दिया है, जिसका पालन में यूरोप व पश्चिमी देशों द्वारा किया जा रहा है। रूस की निजी सेना वैगनर समूह का विद्रोह भले ही बाद में ठंडा पड़ गया हो, लेकिन इस घटना ने भी दुश्मन को मजबूत होने और पुतिन को कमजोर साबित करने का मौका दिया है।
ऐसे में राष्ट्रपति पुतिन के पास एससीओ एकमात्र ऐसा अंतरराष्ट्रीय एशियाई संगठन है, जिसके माध्यम से वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सकते हैं। एससीओ का कुनबा जितना बढ़ेगा, पुतिन और रूस की ताकत भी उतनी ही बढ़ेगी। वजह साफ है कि एससीओ के सभी सदस्य देश रूस के परम मित्रों में हैं। भारत, चीन, पाकिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और अब ईरान के रूस से बहुत ही मधुर संबंध हैं। ऐसे में ये सभी देश यूक्रेन युद्ध के समय में भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में पुतिन के साथ खड़े रहे हैं। इसलिए अब ईरान के आने से पुतिन की ताकत और बढ़ी है।
ईरान के सदस्य बनने से बौखलाए अमेरिका और यूक्रेन
एससीओ के माध्यम से राष्ट्रपति पुतिन ने पश्चिमी देशों को अपनी ताकत का एहसास कराया है। रूस द्वारा ईरान को एससीओ का सदस्य बनाए जाने से यूक्रेन और अमेरिका इस कदर बौखला गए हैं कि जिसकी कोई सीमा नहीं है। यूक्रेन की बौखलाहट का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जिस वक्त राष्ट्रपति पुतिन वीडियो क्रॉन्फ्रेंसिंग के जरिये एससीओ में शामिल हो रहे थे, उसी दौरान यूक्रेन ने रूस पर हमला कर दिया। यूक्रेन ने रूस की राजधानी मास्को पर कई ड्रोन बम बरसाए। हालांकि रूसी अधिकारियों के अनुसार यूक्रेन के ड्रोन हमलों को नाकाम कर दिया गया।
वहीं अमेरिका के बौखलाहट की वजह भी साफ है। ईरान रूस का परम मित्रा है और अमेरिका से इन दोनों ही देशों का 36 का आंकड़ा है। ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईशी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की दोस्ती जग जाहिर है। इतना ही नहीं ईरान यूक्रेन युद्ध में रूस की मदद हथियार और ड्रोन देकर भी कर रहा है। ईरान के पास काफी अत्याधुनिक हथियार और ड्रोन हैं। इससे अमेरिका और यूक्रेन घबराए हैं। ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रमों से भी अमेरिका को टेंशन दे रखा है। यूक्रेन युद्ध में ईरान एक मात्र ऐसा देश है जो रूस को खुलकर हथियारों की सप्लाई कर रहा है।
ईरान के एससीओ में आने से भारत पर असर
भारत की कूटनीति का यह सबसे स्वर्णिम दौर चल रहा है। पीएम मोदी के करिश्माई नेतृत्व का नतीजा है कि जो देश एक दूसरे के दुश्मन हैं, उन दोनों को ही भारत ने अपना दोस्त बना रखा है। यही हाल ईरान के साथ भी है। ईरान व इजराइल में भयंकर दुश्मनी है और ईरान व अमेरिका में भी 36 का आंकड़ा है। इसके बावजूद ये तीनों ही देश भारत के दोस्त हैं। ईरान के एससीओ का सदस्य बनने से रूस के साथ भारत की स्थिति भी और मजबूत होगी। डिफेंस क्षेत्र में ईरान की अत्याधुनिक तकनीकियों का भारत को फायदा होगा।
ईरान का चाबहार बंदरगाह भारत के लिए वरदान
ईरान का एससीओ का सदस्य बनने से भारत के साथ उसकी नजदीकी और बढ़ेगी। अभी दोनों देशों के संबंध सामान्य हैं, लेकिन बहुत गहरे नहीं हैं। भारत को सबसे बड़ा फायदा चाबहार बंदरगाह से मिलने वाला है। यह भारत के लिए आर्थिक, सामरिक और व्यापारिक रूप से महत्वपूर्ण है। इसमें दो अलग-अलग बंदरगाह शाहिद कलंतरी और शाहिद बेहेश्टी हैं। इनमें से शाहिद बेहेश्टी का परिचालन एक भारतीय फर्म कर रही है। यह पोर्ट मध्य एशियाई देशों में संपर्क के लिए सीधा समुद्री मार्ग है। इससे भारत को अपनी सप्लाई चेन मजबूत करने में आसानी होगी। यह भारत को अफगानिस्तान से भी सीधा जोड़ता है।
चीन के खिलाफ रणनीतिक हथियार
चाबहार बंदरगाह भारत के लिए चीन के खिलाफ रणनीतिक और सामरिक हथियार की तरह है। दरअसल चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के साथ-साथ अरब सागर में चीन की उपस्थिति का मुकाबला करने में भी भारत के लिए यह पोर्ट बेहद फायदेमंद होगा। जबकि चीन ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने में पाकिस्तान की मदद कर रहा है। ताकि भारत को सामरिक दृष्टि से घेर सके। चाबहार पर यदि भारत की पकड़ और मजबूत हो जाती है तो यह ग्वादर से सिर्फ 72 किलोमीटर दूर है। यहां से चीन को टार्गेट करने में काफी आसानी होगी। चीन और ईरान के संबंध भी जटिल हैं। उसका झुकाव भारत की ओर अधिक है। ईरान-पाकिस्तान के संबंध भी बहुत बेहतर नहीं हैं। अन्य सदस्य देशों के साथ ईरान के सामान्य संबंध हैं।