क्या है वक्फ बोर्ड कानून, क्यों पड़ी संशोधन की जरूरत? विपक्ष के विरोध करने की क्या है वजह
वक्फ बोर्ड कानून में संसोधन का कई पार्टियों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। इस कानून में 40 संसोधन किए जा सकते हैं। अन्य विपक्षी दलों के साथ सपा भी इस संसोधन का विरोध कर सकती है।
नई दिल्ली। वक्फ बोर्ड को मिले असीमित अधिकारों को कम करके इसकी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड कानून में संसोधन करने जा रही है। इसमें मुस्लिम महिलाओं समेत मुस्लिम समाज के अन्य पिछड़े वर्ग, शिया, सुन्नी, बोहरा और आगाखानी जैसे वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के लिए केंद्र सरकार दो महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में पेश करने जा रही है। आइए जानते हैं वक्फ बोर्ड कानून क्या है और इसमें संसोधन की जरुरत क्यों पड़ी। विपक्ष इसका विरोध क्यों कर रहा है।
बिल में कितने संसोधन होंगे
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पहले बिल के जरिए वक्फ कानून 1955 में महत्वपूर्ण संशोधन लाए जाएंगे, वहीं दूसरे बिल के जरिए मुसलमान वक्फ कानून 1923 को समाप्त किया जाएगा। इसके बेहतर कामकाज और संचालन के लिए 44 संशोधन पेश करके 1995 के वक्फ अधिनियम की संरचना में बदलाव किया जाएगा। प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य बोर्डों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना भी है।
क्यों पड़ी संशोधन की जरुरत
सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन करके केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस के माध्यम से वक्फ के पंजीकरण के तरीके को सुव्यवस्थित करना है। इसमें कहा गया है कि किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज करने से पहले सभी संबंधितों को उचित नोटिस के साथ राजस्व कानूनों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार का कहना है कि संशोधन विधेयक के पीछे का मकशद वक्फ बोर्डों के कामकाज में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाना है। इन निकायों में महिलाओं की अनिवार्य भागीदारी सुनिश्चित करना है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि यह संसोधन मुस्लिम समुदाय की मांग पर किया जा रहा है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि अखिल भारतीय सूफी सज्जादानशीं परिषद (एआईएसएससी) प्रतिनिधिमंडल ने जिसमें देश के कई दरगाजों के प्रमुख शामिल हैं ने इस कानून का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने पीएम मोदी के कामकाज की भी तारीफ की।
वक्फ बोर्ड कानून क्या है? इसका क्या रोल है
वक्फ बोर्ड कानून 2013 संसोधन में वक्फ बोर्डों को व्यापक शक्तियां प्रदान की गई थी। तब से यह विवादास्पद हैं। वक्फ अधिनियम, 1995 (2013 में संशोधित) की धारा 3 के तहत परिभाषित किया गया है, वक्फ या वक्फ का अर्थ है मुस्लिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए किसी भी चल या अचल संपत्ति का किसी भी व्यक्ति द्वारा दान देना। वक्फ अधिनियम, 1995, एक 'वकीफ' (वह व्यक्ति जो मुस्लिम कानून द्वारा धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए संपत्ति समर्पित करता है) द्वारा 'औकाफ' (दान की गई और वक्फ के रूप में अधिसूचित संपत्ति) को रेगुलेट करने के लिए लाया गया था।
वक्फ बोर्ड के कानूनी अधिकार
1995 अधिनियम 1995 की धारा 32 कहती है कि किसी राज्य में सभी वक्फ संपत्तियों का सामान्य पर्यवेक्षण राज्य/केंद्र शासित प्रदेश वक्फ बोर्डों (एसडब्ल्यूबी) के पास निहित है और वक्फ बोर्ड को इन वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करने का अधिकार है। 1954 का अधिनियम जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान वक्फ के कामकाज के लिए एक प्रशासनिक संरचना प्रदान करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था। तब वक्फ बोर्डों के पास शक्तियां थीं, जिनमें ट्रस्टियों और मुतवल्लियों (प्रबंधकों) की भूमिकाएं भी शामिल थीं।
इससे पहले भी कई बार कानून में हो चुका है संसोधन
1954 अधिनियम को 1964, 1969 और 1984 में संशोधित किया गया था। आखिरी बार 2013 में वक्फ संपत्तियों के अवैध हस्तांतरण को रोकने और अतिक्रमण हटाने के लिए प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए कड़े उपाय शामिल किए गए थे।
विपक्ष क्यों कर रहा संसोधन का विरोध
वक्फ बोर्ड कानून के संशोधन का समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की तरफ से संसद में विरोध किया जा सकता है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कह कहा कि वक़्फ़ बोर्ड’ का ये सब संशोधन भी बस एक बहाना है। रक्षा, रेल, नज़ूल लैंड की तरह ज़मीन बेचना निशाना है। वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीनें, डिफ़ेंस लैंड, रेल लैंड, नज़ूल लैंड के बाद ‘भाजपाइयों के लाभार्थ योजना’ की शृंखला की एक और कड़ी मात्र हैं। अखिलेश ने कहा कि इस बात की लिखकर गारंटी दी जाए कि वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीनें बेची नहीं जाएंगी।
ओवैसी ने अभी हाल में कहा था कि इससे पता चलता है कि मोदी सरकार बोर्ड की स्वायत्तता छीनना चाहती है और उसके कामकाज में दखल देना चाहती है। यह स्वयं धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है। हैदराबाद के सांसद ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा शुरू से ही इन बोर्डों और वक्फ संपत्तियों के खिलाफ रही है और वे 'हिंदुत्व एजेंडे' पर काम कर रहे हैं। अब यदि आप वक्फ बोर्ड की स्थापना और संरचना में संशोधन करते हैं, तो प्रशासनिक अराजकता होगी, वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता खत्म हो जायेगी और यदि वक्फ बोर्ड पर सरकार का नियंत्रण बढ़ जायेगा, तो वक्फ की स्वतंत्रता खत्म हो जायेगी।