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Hindi News Explainers Explainer: क्या है BRICS समिट, जिसपर टिकी है पश्चिमी देशों की नजर, जानिए अमेरिका क्यों है घबराया?

Explainer: क्या है BRICS समिट, जिसपर टिकी है पश्चिमी देशों की नजर, जानिए अमेरिका क्यों है घबराया?

BRICS ब्लॉक में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका आते हैं। यह दुनिया की 42 फीसदी आबादी और 27 फीसदी ग्लोबल जीडीपी का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रिक्स की ख्याति दुनिया में बढ़ रही है। दुनिया के कई देशों की इस समिट पर नजर रहेगी।

BRICS Summit- India TV Hindi Image Source : FILE BRICS Summit

BRICS Summit 2024: हाल के समय में दुनिया पर नजर डालें तो हालात बेहतर तो बिलकुल भी नहीं कहे जा सकते हैं। दुनिया के कई हिस्सों में जंग चल रही है या फिर जंग जैसे हालात नजर आ रहे हैं। ऐसे समय में विश्व के पटल पर भारत की भूमिका भी बेहद अहम हो जाती है। यही कारण है कि रूस में हो रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन पर पश्चिमी देशों सहित कई अन्य देशों की भी निगाहें हैं। ब्रिक्स की बढ़ती भूमिका और प्रभाव से यह साफ है कि आने वाले वर्षों में यह समूह वैश्विक मंच पर और भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। पीएम नरेंद्र मोदी रूस के शहर कजान में इसी के सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे है। तो चलिए आपको बताते हैं कि यह संगठन क्या है, क्यों पश्चिमी देशों की नजर इस सम्मेलन पर है, अमेरिका पर इस सम्मेलन का क्या प्रभाव पड़ने वाला है। तो चलिए सबसे पहले आपको बताते हैं कि ब्रिक्स है क्या। 

ब्रिक्स क्या है?

ब्रिक्स (BRICS) पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका  का एक समूह है। ब्रिक्स शब्द इन पांच देशों के अंग्रेजी नामों के प्रथम अक्षरों से मिलकर बना है। ब्रिक्स की शुरुआत 2006 में हुई जब ब्राजील, रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक न्यूयॉर्क में हुई थी। 2010 में दक्षिण अफ्रीका को इस समूह में शामिल किया गया, जिसके बाद यह 'ब्रिक्स' के नाम से जाना जाने लगा।

ब्रिक्स का उद्देश्य

ब्रिक्स का मुख्य उद्देश्य आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है। यह समूह वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में सुधार, विकासशील देशों की आवाज को मजबूत करने, और सदस्य देशों के बीच आपसी व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करने का काम करता है।

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन सदस्य देशों के नेताओं की वार्षिक बैठक है, जिसमें आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा की जाती है। यह शिखर सम्मेलन प्रत्येक वर्ष अलग-अलग सदस्य देश में आयोजित किया जाता है। शिखर सम्मेलन में विभिन्न मुद्दों पर सहमति बनाने के लिए चर्चा होती है और विभिन्न पहलुओं पर समझौते किए जाते हैं।

प्रमुख विषय

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आमतौर पर निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर चर्चा होती है।

- वैश्विक आर्थिक स्थिति: आर्थिक विकास, वित्तीय स्थिरता और आर्थिक सुधार।

- व्यापार और निवेश: आपसी व्यापार को बढ़ावा देना और निवेश के अवसरों को प्रोत्साहित करना।

- सुरक्षा: आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और सीमा पार अपराध।

- स्वास्थ्य और शिक्षा: सदस्य देशों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा प्रणाली में सहयोग।

- पर्यावरण: जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण।

Image Source : fileBRICS Summit

उपलब्धियां

ब्रिक्स समूह ने पिछले कुछ वर्षों में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं

न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): ब्रिक्स देशों ने 2014 में न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना की, जिसका उद्देश्य बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

आपसी सहयोग: सदस्य देशों के बीच विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि और इनोवेशन के क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ावा मिला है।

वैश्विक प्रभाव: ब्रिक्स देशों ने संयुक्त राष्ट्र, G20 और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विकासशील देशों की आवाज को मजबूत किया है।

अभी तक आपने जाना कि ब्रिक्स क्या है, यह कब बना, कौन से देश इसमें शामिल हैं और इसका उद्देश्य क्या है। चलिए अब आपको बताते हैं कि रूस में होने वाले ब्रिक्स समिट पर दुनिया भर के देशों खासकर पश्चिमी देशों की नजर क्यों हैं।

ब्रिक्स समिट पर क्यों है पश्चिमी देशों की नजर?

रूस में हो रहे ब्रिक्स समिट पर दुनिया भर के देशों की नजरें हैं लेकिन खासकर पश्चिमी देश इस सम्मेलन पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। इसके पीछे कई कारण भी हैं। पहले तो अमेरिका और यूरोप रूस के खिलाफ यूक्रेन के समर्थन में हैं और उन्होंने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। पश्चिमी देश भारत को भी रूस के खिलाफ खड़ा होते देखना चाहते हैं, जबकि भारत और रूस के बीच दोस्ती मजबूत बनी हुई है। इसी तरह अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की चीन से भी तनातनी है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा सम्मेलन को लेकर पश्चिमी देशों का रुख क्या रहता है। 

भारत-चीन संबंध पर नजर

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में रूस के साथ रिश्तों को मजबूत करने साथ ही भारत और चीन के बीच भी बातचीत होने की उम्मीद है। पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिन की मुलाकात भी हो सकती है। इस मुलाकात पर भी दुनिया की नजर है। इसके अलावा मध्य पूर्व के देशों के भारत के रिश्ते ज्यादा स्पष्ट और मजबूत होने की संभावना जताई जा रही है। इजरायल ईरान संघर्ष के बीच भारत का रुख क्या हो सकता है इस पर भी अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की नजर रहेगी। 

Image Source : fileBRICS Summit In Russia

क्यों घबराया है अमेरिका? 

रूस में हो रहे ब्रिक्स समिट में कई बड़े फैसलों को अमलीजामा पहनाया जा सकता है, जिसके भविष्य में बड़े प्रभाव हो सकते हैं। इनमें से एक है- ब्रिक्स करेंसी। ब्रिक्स देश एक ऐसी रिजर्व करेंसी शुरू करना चाहते हैं, जो डॉलर के प्रभुत्व को टक्कर दे सके। ऐसे में इस बार ब्रिक्स समिट में बड़ा फैसला देखने को मिल सकता है। चीन के साथ अमेरिकी ट्रेड वॉर, रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच अगर ब्रिक्स देशों के बीच इस नई करेंसी को लेकर रजामंदी हो जाती है तो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सिस्टम ही बदल सकता है।  

अमेरिकी डॉलर में होता है 90 फीसदी कारोबार

मौजूदा समय में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सिस्टम में अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व है। दुनिया भर में लगभग 90 फीसदी कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता है। हाल के समय की वैश्विक वित्तीय चुनौतियों और अमेरिका की आक्रामक विदेश नीतियों की वजह से ब्रिक्स देशों को एक साझा नई करेंसी की जरूरत समझ आ रही है। ब्रिक्स देश चाहते हैं कि वो अमेरिकी डॉलर और यूरो पर वैश्विक निर्भरता कम कर आर्थिक हितों के लिए एक नई साझा करेंसी शुरू करें। 

पुतिन ने कही थी यह बात

यहां यह भी बता दें कि, सबसे पहले 2022 में 14वें ब्रिक्स समिट के दौरान नई करेंसी की जरूरत पर पहली बार बात हुई थी। उस समय रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि ब्रिक्स देश नई वैश्विक रिजर्व करेंसी शुरू करने की योजना बना रहे हैं। इसके बाद अप्रैल 2023 में ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा ने ब्रिक्स करेंसी के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा था कि ब्रिक्स बैंक जैसे संस्थान के पास ब्राजील और चीन या फिर ब्राजील या अन्य ब्रिक्स देशों के बीच ट्रेड करने के लिए नई करेंसी क्यों नहीं हो सकती।

अमेरिकी पर ऐसे पड़ेगा असर

अमेरिकी डॉलर का विश्व पर वर्चस्व रहा है। यूएस फेडरल रिजर्व के मुताबिक, 1999 से 2019 के बीच अमेरिका में 96 फीसदी अंतर्राष्ट्रीय कारोबार डॉलर में,  एशिया प्रशांत क्षेत्र में 74 फीसदी कारोबार डॉलर में और बाकी दुनिया में 79 फीसदी कारोबार अमेरिकी डॉलर में हुआ।  हालांकि, हाल के कुछ सालों में डॉलर का रिजर्व करेंसी शेयर घटा है क्योंकि यूरो और येन की लोकप्रियता भी बढ़ी है। बावजूद इसके डॉलर अभी भी वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है। अब ऐसे में अगर ब्रिक्स देश डॉलर के बजाए नई ब्रिक्स करेंसी का इस्तेमाल करने लगेंगे तो इससे प्रतिबंध लगाना अमेरिका के लिए आसान नहीं होगा। डॉलर का मूल्य भी जरूर घटेगा, संभव है कि इससे अमेरिका में घरेलू स्तर पर भी प्रभाव देखने को मिले।  

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