Explainer : क्या है MUDA स्कैम? कैसे इस भंवर में फंसे कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया, अब चलेगा केस
दरअसल यह मामला 3.14 एकड़ जमीन के टुकड़े के आवंटन से जुड़ा है। मूडा मैसूर शहर के विकास कार्यों के लिए एक स्वायत्त संस्था है। जमीनों के अधिग्रहण और आवंटन का जिम्मा इसी के पास है।
बेंगलुरु: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मुश्किलों से घिरते नजर आ रहे हैं। राज्यपाल ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा साइट आवंटन में कथित अनियमितताओं के लिए उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। वहीं भारतीय जनता पार्टी कथित भूमि घोटाले को लेकर मुख्यमंत्री और सिद्धारमैया की सरकार के खिलाफ अभियान चला रही है और उनके इस्तीफे की मांग कर रही है। सिद्धारमैया ने अपने और अपनी पत्नी बीएम पार्वती के खिलाफ सभी आरोपों से इनकार किया है।
तीन एक्टिविस्ट प्रदीप कुमार, टीजे अब्राहम और स्नेहमयी कृष्णा ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत से मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया था। भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता टीजे अब्राहम ने राज्यपाल को दी गई अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि करोड़ों रुपये के इस घोटाले से राज्य के खजाने को भारी नुकसान हुआ है। कर्नाटक भाजपा ने राज्यपाल की मंजूरी का स्वागत किया, जबकि कांग्रेस ने इसे "राजनीति से प्रेरित साजिश" बताया। पिछले महीने राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को "कारण बताओ नोटिस" जारी किया था और उनसे सात दिनों के भीतर जवाब देने को कहा था कि उन पर मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए। कर्नाटक सरकार ने राज्यपाल को नोटिस वापस लेने की सलाह दी थी और इसे राज्यपाल के "संवैधानिक कार्यालय का घोर दुरुपयोग" बताया था।
क्या है MUDA स्कैम?
मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि घोटाला विवाद सिद्धारमैया की पत्नी को हुए जमीन आवंटन से संबंधित है। जब यह आवंटन हुआ उस समय सिद्धारमैया सत्ता में थे। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाया। बताया जाता है कि इससे राज्य के खजाने को करोड़ों का नुकसान हुआ है। मामले में MUDA और राजस्व विभाग के शीर्ष अधिकारियों का भी नाम है।
यह मामला 3.14 एकड़ जमीन के टुकड़े जुड़ा है। मूडा मैसूर शहर के विकास कार्यों के लिए एक स्वायत्त संस्था है। जमीनों के अधिग्रहण और आवंटन का जिम्मा इसी के पास है। मूड ने वर्ष 1992 में रिहायशी इलाकों को विकसित करने के लिए कुछ जमीनें किसानों से ली थी। बाद में 198 में इस जमीन का कुछ हिस्सा मूडा ने किसानों को वापस कर दिया था। किसानों के पास वापस आते ही ये जमीनें पहले की तरह कृषि की जमीन हो गईं। फिर 2004 में सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई बीएम मल्लिकार्जुन ने 3.16 एकड़ जमीन खरीदी। इस दौरान राज्य में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार थी। सिद्धारमैया उस समय डिप्टी सीएम थे। इसी दौरान सामने आया कि इसी जमीन को एक बार फिर से कृषि की भूमि से अलग किया गया था, लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक लेने के लिए सिद्धरमैया की फैमिली पहुंची तब तक वहां लेआउट विकसित हो चुका था।
क्या हैं आरोप
आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3.16 एकड़ जमीन मूडा द्वारा अधिग्रहित की गई और इस जमीन के बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें उन्हें आवंटित की गईं। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी। मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती ने आवेदन किया जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित कीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं।
क्या है सीएम सिद्धारमैया का दावा?
सीएम सिद्धारमैया का दावा है कि जिस जमीन के टुकड़े के लिए उनकी पत्नी को मुआवजा मिला था, वह उनके भाई मल्लिकार्जुन ने 1998 में गिफ्ट की थी। लेकिन RTI कार्यकर्ता कृष्णा ने आरोप लगाया कि मल्लिकार्जुन ने इसे 2004 में अवैध रूप से हासिल किया था। सरकारी और राजस्व अधिकारियों की मदद से जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करके इसे रजिस्टर्ड कराया था। इस जमीन को 1998 में खरीदा गया दिखाया गया था, 2014 में जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे, तब उनकी पत्नी पार्वती ने इस जमीन के लिए मुआवजे की मांग की थी।