Explainer: क्या है 'परिसीमन' जो महिला आरक्षण में है बाधा, क्यों दक्षिण राज्यों को इस पर है आपत्ति, यहां जानें सबकुछ
संसद के विशेष सत्र में केंद्र सरकार ने महिला आरक्षण बिल पेश किया जिसे नारी शक्ति नंदन अधिनियम नाम दिया गया है। लोकसभा में ये बिल पास हो गया है। हालांकि, इस बिल के पास होने के बाद भी महिलाओं को आरक्षण मिलने में कई बाधाएं हैं। आइए जानते हैं...
केंद्र सरकार की ओर से बुलाए गए संसद के विशेष सत्र में ऐतिहासिक निर्णय लिए जा रहे हैं। विशेष सत्र में नए संसद भवन में एंट्री ली गई और नए संसद भवन में पहला ही बिल राजनीति में महिलाओं को आरक्षण देने के लिए लाया गया। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस बिल को समर्थन देने के साथ ही इसमें जुड़े प्रावधानों पर सवाल उठा दिए हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि महिला आरक्षण बिल के दोनों सदनों से पास होने के बाद भी 'परिसीमन' के प्रावधान के कारण आरक्षण लागू होने में काफी देरी होगी। लेकिन ये 'परिसीमन' होता क्या है और क्या है इसके नियम? क्यों इसे लेकर होता है विरोध? आइए जानते हैं इस खबर के माध्यम से...
क्या है विपक्ष का आरोप?
कांग्रेस, बसपा समेत विभिन्न राजनीतिक दलों ने सरकार पर महिला आरक्षण बिल के नाम पर महिलाओं की आंखों में धूल झोंकने का आरोप लगाया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि जब तक परिसीमन नहीं होता तब तक महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलेगा और परिसीमन होने में काफी वक्त है। ऐसे में महिला आरक्षण बिल को लागू होते-होते 15-16 साल तक का समय लग सकता है।
क्या होता है परिसीमन?
अगर देश की जनसंख्या बढ़ती है तो समय-समय पर देश के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं भी दोबारा से निर्धारित की जाती हैं। इसके पीछे का कारण है कि लोकतंत्र में पूरी आबादी को सही तरीके से प्रतिनिधित्व और सभी को समान अवसर मिल सके। इस प्रक्रिया में लोकसभा और विधानसभा की सीटों के क्षेत्रों का दोबारा से निर्धारण किया जाता है। इसी प्रक्रिया को परिसीमन कहा जाता है। परिसीमन के दौरान अनुसूचित वर्गों को ध्यान में रखते हुए आरक्षित सीटों का भी निर्धारण करना होता है।
क्या कहता है संविधान?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-82 में हमें परिसीमन की प्रक्रिया का जिक्र मिलता है। भारत के राष्ट्रपति के आदेश पर चुनाव आयोग अपनी देखरेख में परिसीमन का काम करवाता है। संविधान के अनुसार, हर 10 साल पर जब जनसंख्या का डेटा सामने आए तो परिसीमन की प्रक्रिया पर विचार किया जा सकता है। हालांकि, साल 2002 में संसद में पास हुए कानून के मुताबिक, फिलहाल साल 2026 से पहले परिसीमन को नहीं शुरू किया जा सकता है।
क्या है परिसीमन में बाधा?
भारत में परिसीमन को शुरू करना इतना भी आसान काम नहीं है। संविधान के अनुच्छेद-81 में निर्धारित किया गया है कि लोकसभा में सदस्यों की संख्या अधिकतम 550 ही हो सकती है। देश में पहले आम चुनाव के वक्त लोकसभा सीटों की संख्या 489 थी। इसके बाद 1971 की जनगणना के आधार पर 1976 में परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा किया गया था। इसके परिसीमन के बाद लोकसभा सीटों की संख्या 489 से बढ़ाकर 543 कर दी गई थी। हालांकि, संविधान के अनुसार, हर 10 लाख की आबादी पर एक सांसद होने की बात भी कही गई है। जबकि वर्तमान में संसदीय क्षेत्रों में आबादी 10 लाख से कहीं अधिक है।
कब होगी जनगणना?
भारत में हर 10 सालों में एक बार जनगणना की जाती रही है। पिछली बार जनगणना साल 2011 में की गई थी। हालांकि, 11 साल बाद भी अब तक जनगणना दोबारा शुरू नहीं हुई है। अब तक इस बात का खुलासा भी नहीं हुआ है कि जनगणना कब शुरू की जाएगी। अब जब तक जनगणना नहीं होगी तब तक परिसीमन शुरू नहीं हो सकता। इसके बाद परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के भंग होने का इंतजार करना होगा। तब जाकर महिला आरक्षण लागू होगा।
उत्तर-दक्षिण राज्यों में विवाद
परिसीमन की प्रक्रिया को शुरू कराने में एक और बड़ी बाधा दक्षिण भारत के राज्यों की आपत्ति है। दक्षिण राज्यों के राजनीतिक दलों को इस बात की चिंता है कि परिसीमन हुआ तो उन्हें घाटा होगा। फिलहाल दक्षिण भारत के राज्यों व केंद्रशासित प्रदेश से कुल 130 लोकसभा सांसद चुन कर आते हैं। जबकि उत्तर भारत में केवल यूपी, बिहार और झारखंड से ही 134 सांसद हो जाते हैं। उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण भारत में आबादी भी कम है या घटी है। ऐसे में अगर आबादी के हिसाब से परिसीमन लागू होता है तो दक्षिण भारत के राज्यों के हिस्से में कम सीटें आएंगी। ऐसे में परिसीमन का विरोध हो सकता है।
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